
टाटा ट्रस्ट में विवाद सामने आया है। (PC: Gemini)
रतन टाटा 9 अक्टूबर 2024 को यह दुनिया छोड़कर चले गए थे। उनके निधन को अभी पूरा 1 साल ही हुआ है और टाटा ट्रस्ट में मतभेद सामने आ गए हैं। हालत यह है कि सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है। टाटा ग्रुप भारत का सबसे बड़ा कारोबारी ग्रुप है। इसकी होल्डिंग कंपनी टाटा संस है और टाटा संस में टाटा ट्रस्ट की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है। टाटा ट्रस्ट में मतभेत सामने आए हैं। इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के वरिष्ठ मंत्री इस हफ्ते दिल्ली में ग्रुप के सीनियर लीडर्स के साथ मीटिंग करेंगे। इस बैठक का उद्देश्य टाटा ट्रस्ट के आंतरिक मतभेदों को सुलझाना है, जिससे देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के कामकाज पर असर न पड़े।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार के दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री इस हफ्ते टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन, टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन और टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी दारियस खंबाटा के साथ बैठक करेंगे। इस बैठक में हाल के उन घटनाक्रमों पर बात होगी, जिससे व्यापक चिंता पैदा हुई है।
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, टाटा ट्रस्ट की 11 सितंबर को हुई एक विवादास्पद बैठक से यह तनाव शुरू हुआ। यह बैठक दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन के लगभग एक साल बाद हुई और इसमें ट्रस्टीज के बीच गहरे मतभेद उजागर हुए। विवाद मुख्य रूप से टाटा संस पर ट्रस्ट के कंट्रोल सिस्टम को लेकर है। खास तौर पर नॉमिनी डायरेक्टर्स की नियुक्ति और बोर्ड की कार्यवाही से जुड़ी सूचनाओं के आदान-प्रदान की लिमिटेशंस पर विवाद हुआ।
टाटा सन्स के नॉमिनी डायरेक्टर और पूर्व रक्षा सचिव विजय सिंह को उनके पद से हटा दिया गया। उनकी बर्खास्तगी का नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने विरोध किया था। उसी समय, ट्रस्टी मेहली मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया, जिसे प्रमित झावेरी, दारियस खंबाटा और जहांगीर जहांगीर ने समर्थन दिया।
तनाव तब और बढ़ गया जब एक ट्रस्टी ने बाकी ट्रस्टीज को ईमेल भेजा, जिसे श्रीनिवासन को भी टाटा संस बोर्ड से उसी तरह हटाने की 'चेतावनी' के रूप में देखा गया, जैसे विजय सिंह को हटाया गया था। रिपोर्ट में अधिकारियों के हवाले से कहा गया कि इससे 'टाटा संस पर कब्जा करने' और कंट्रोल को केंद्रित करने की आशंका बढ़ी है, जो ग्रुप की ओवरऑल गवर्नेंस स्ट्रक्चर को बाधित कर सकती है।
रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया कि कुछ ट्रस्टी बोर्ड एजेंडा और बैठक के मिनट्स तक पहुंच की मांग कर रहे हैं। प्रमुख निर्णयों पर पूर्व-अप्रूवल पर जोर दे रहे हैं और स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति पर सवाल उठा रहे हैं। एक ट्रस्टी पर तो यहां तक आरोप लगा है कि उन्होंने कुछ ग्रुप कंपनीज के रणनीतिक फैसलों पर टाटा संस बोर्ड सदस्यों को निशाना बनाया। टाटा ट्रस्ट के भीतर यह असंतोष कई महीनों से धीरे-धीरे बढ़ रहा था और अब यह उस समय चरम पर है जब प्रमुख ट्रस्टीज का कार्यकाल रिन्यूअल के करीब है।
नई दिल्ली में होने वाली आगामी बैठक का उद्देश्य टाटा ट्रस्ट के सुचारु संचालन को सुनिश्चित करना और ग्रुप में किसी भी नकारात्मक असर को रोकना है। रिपोर्ट के अनुसार, बैठक में शामिल होने वाले अधिकारी फिलहाल किसी भी टिप्पणी से बच रहे हैं। यह आंतरिक अशांति टाटा समूह की कई कंपनियों में चर्चा का प्रमुख विषय बन गई है, खासकर ऐसे समय में जब कंपनी बोर्ड पुनर्गठन और ट्रस्टियों की नियुक्तियों की अनिश्चितता जैसी चुनौतियों से जूझ रही है।
बैठक ऐसे समय हो रही है जब टाटा संस एक अहम नियामकीय चरण के करीब है। आरबीआई द्वारा टाटा संस को अपर लेयर एनबीएफसी के रूप में क्लासिफाइड किये 3 साल पूरे हो गए हैं। इस क्लासिफिकेशन के तहत कंपनी को तीन साल के भीतर शेयर बाजार में लिस्ट होना अनिवार्य होता है। मार्च 2024 में टाटा संस ने RBI से डिरजिस्ट्रेशन का अनुरोध किया था, ताकि उसे लिस्टिंग की अनिवार्यता और संबंधित रेगुलेटरी फ्रेमवर्क से छूट मिल सके। RBI की इस पर प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है। इस बीच, कंपनी में 18.37% हिस्सेदारी रखने वाला शापूरजी पालोनजी समूह, जो भारी कर्ज के बोझ में है, लिक्विडिटी प्राप्त करने के लिए लगातार टाटा सन्स की लिस्टिंग की मांग कर रहा है।
Published on:
06 Oct 2025 02:44 pm
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