9 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पाक-साउदी रक्षा समझौता से भारत पर क्या पड़ेगा असर, जानिए भारतीय विदेश मंत्रालय ने क्या कहा

साउदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौता होने के बाद भारत के खाड़ी देशों में प्रभाव कम होने की आशंका जाहिर की जाने लगी है। भारत ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। जानिए क्या भारत ने भी कभी किसी देश के साथ ऐसा समझौता किया है?

4 min read
Google source verification
Impact of Saudi Arabia-Pakistan Defence Agreement on India

साऊदी अरब-पाकिस्तान रक्षा समझौते का भारत पर असर (फोटो-IANS)

Pakistan Saudi defense agreement: साऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके मुताबिक यदि किसी एक देश पर हमला होता है तो वह साथ मिलकर दुश्मन मुल्क पर धावा बोलेंगे। पाकिस्तान और साउदी अरब के बीच हुए इस रक्षा समझौते को इस्लामिक नाटो के गठन की कवायद से भी जोड़कर देखा जा रहा है। वहीं, इससे खाड़ी के देशों में भारत (India) के प्रभाव के कम होने की आशंका भी जाहिर की जा रही है। भारतीय विदेश मंत्रालय (Indian Foreign Ministry) ने इस पर बयान भी दिया है।

हमें इस समझौते के बारे में पहले से पता था

भारत में विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल (Randhir Jaiswal) ने इस पूरे मामले पर कहा कि हमने सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर की खबरें देखी हैं। सरकार को इस बात की जानकारी थी कि यह घटनाक्रम, जो दोनों देशों के बीच एक दीर्घकालिक समझौते को औपचारिक रूप देता है, विचाराधीन था। हम अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर इस घटनाक्रम के प्रभावों का अध्ययन करेंगे। केंद्र सरकार भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा और सभी क्षेत्रों में व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

साउदी और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौता होने के बाद साउदी अरब के एक अधिकारी ने कहा कि हमारे भारत के साथ संबंध मजबूत हैं। दोनों देशों के बीच के रिश्ते सौहार्दपूर्ण बने रहेंगे। उन्होंने आगे कहा कि पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दशकों से घनिष्ठ व्यापारिक और सैन्य संबंध रहे हैं। 1967 से पाकिस्तान ने 8,200 से ज्यादा सऊदी सशस्त्र बलों के जवानों को प्रशिक्षित किया है और दोनों पक्षों ने कई संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किए हैं।

क्या भारत ने भी कभी किया था ऐसा समझौता?

1970 के दशक में भारत ने इसी तरह का समझौता USSR के साथ किया था। 9 अगस्त 1971 को नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह और सोवियत विदेश मंत्री एंड्री ग्रोमिको ने शांति मित्रता और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि के अनुच्छेद 9 में स्पष्ट था कि यदि भारत पर कोई हमला होता है, तो सोवियत संघ को इसे अपने ऊपर हमला मानना होगा और सहायता प्रदान करनी होगी। इसका फायदा भारत को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मिला था।

3 दिसंबर 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान पर हमला बोला, तो अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा (यूएसएस एंटरप्राइज) बंगाल की खाड़ी में भेजा। USSR ने फिर समझौते के तहत भारत का साथ देते हुए पेसिफिक फ्लीट के क्रूजर, डिस्ट्रॉयर और परमाणु-सशस्त्र पनडुब्बी तैनात की। जिसने अमेरिकी नौसेना के बेड़े को आगे बढ़ने से रोक दिया। इसके कारण भारत ने पाकिस्तान के दो टुकड़े करके पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराकर बांग्लादेश बनाया।

क्या पाकिस्तान ने इससे पहले कभी किया है इस तरह का समझौता?

पाकिस्तान ने साऊदी अरब जैसा रक्षा समझौता अमेरिका के साथ भी किया था, लेकिन यह समझौता 1979 में टूट गया था। म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस एग्रीमेंट (1954), MDAA के बाद पाकिस्तान ने साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (SEATO-1954) और बगदाद पैक्ट (बाद में CENTO- 1954) में शामिल हुआ था। इसमें भी किसी एक देश पर हमले का मतलब था कि संधि में शामिल अन्य देश मदद के लिए आगे आएंगे और सामूहिक हमला करेंगे, लेकिन साल 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद हुए सेंटो के विघटन के बाद ये समझौते भी टूट गए। हालांकि, इस दौरान 1965 और 1971 में भारत पाक जंग में अमेरिका ने कभी भी पाकिस्तान को सीधी सैन्य मदद नहीं की। अमेरिका ने इसे क्षेत्रीय विवाद माना, न कि गठबंधन के तहत सामूहिक रक्षा का मामला।

आखिर पाकिस्तान इस समझौते से क्या दिखाना चाहता है?

कतर पर इजरायली हमले के बाद पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों के संगठनों की बैठक में इस्लामिक नाटो बनाने की सलाह दी थी। पाकिस्तान इकलौता परमाणु शक्ति संपंन्न मुस्लिम राष्ट्र है। वह मुस्लिम उम्मा में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए हमेशा से संयुक्त इस्लामिक आर्मी की बात करता आया है। वहीं, सैन्य संपंन्नता के मामले में OIC सिर्फ तुर्की ही उसके नजदीक बैठता है, अन्य राष्ट्र अमेरिकी सहयोग पर निर्भर हैं। खासकर खाड़ी के देश, साउदी अरब, कतर, ओमान, बहरीन, यूएई। लेकिन, कतर पर हुए इजरायली हमले के बाद वह सिर्फ अमेरिकी सहयोग पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं।

क्या पाकिस्तान की सेना को यमन में भेजेगा साउदी?

क्या पाकिस्तान के लिए यह समझौता क्या नासूर बनेगा? यह सवाल भी उठने लगा है, क्योंकि इस समझौते के तहत साउदी अरब पाकिस्तानी सेना को यमन में किराए के सैनिक के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। दरअसल, साउदी अरब सालों से यमन में विद्रोही गुट हूतियों को हटाने में जुटा है, लेकिन हर बार नाकाम रहा है। हूतियों ने कई बार साउदी के रणनीतिक ठिकानों पर बमबारी भी की है। ऐसे में यदि ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने साउदी पर फिर से हमला किया तो पाकिस्तान को नए समझौते के तहत मजबूरन अपनी सेना को यमन में उतारनी पड़ेगी। साल, 2015 में भी इसी तरह की नौबत पाकिस्तान सेना के सामने आई थी। हालांकि, तब हूतियों के खिलाफ जंग के लिए सऊदी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन में शामिल होने से पाकिस्तान ने इनकार कर दिया था।