
शादाब अहमद
नई दिल्ली। राजस्थान का सत्ता संग्राम ( Rajasthan Political Crisis ) शुद्ध रूप से सियासी है। भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का क्राइसिस मैनेजमेंट ( Congress Crisis Management ) एक बार फिर कमजोर साबित हुआ है। यही वजह है कि इस सियासी लड़ाई ( Political battle ) को कांग्रेस ने पहले कानूनी लड़ाई ( Legal battle ) में बदल दिया। हालांकि पार्टी में इस पर मतभेद सामने आने के बाद कांग्रेस ने देशभर में इसको मुद्दा बनाने की रणनीति बनाई। उधर, सियासी संकट ( Political Crisis ) को दूर करने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता पर्दे के पीछे भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र की तरह खुलकर सामने नहीं आए हैं।
राजस्थान में जिस तरह से कांग्रेस सरकार बचाने में जुटी हुई है, उस पर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। भाजपा ने सधी रणनीति के साथ राजस्थान में कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े को उभारा। इसके चलते सचिन पायलट जैसे नेता बागी बन गए। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि जब महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी थी, तब कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता मैदान में उतार दिए गए थे। जबकि राजस्थान में ऐसा दिखाई नहीं दे रहा है। हालांकि प्रियंका गांधी, अहमद पटेल, पी.चिदंबरम जैसे नेता पर्दे के पीछे से भूमिका निभा रहे हैं। दूसरी ओर हाल के दिनों में भाजपा को मणिपुर में सत्ता बचाने की जुगत करनी पड़ी थी।
-पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं होने का दिख रहा असर
कांग्रेस में पिछले करीब एक साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। सोनिया गांधी बतौर अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर कामकाज संभाल रही है। पार्टी में गाहे-बाहे इस तरह के संकट आने पर अध्यक्ष का खुलकर सामने नहीं आने का असर भी पार्टी की रणनीति पर दिख रहा है। इसके चलते फैसले लेने में देरी हो रही है।
-तीसरी बार कोशिश, फिर भी 19 विधायक चले गए
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का कहना है कि पिछले चार महीने में सरकार गिराने की तीन बार कोशिश हुई। मध्यप्रदेश में उलटफेर के साथ 22 मार्च को पहली दफा यह कोशिश की गई थी। कांग्रेस नेताओं को इसकी जानकारी होने के बावजूद पायलट को रोकने के गंभीर प्रयास नहीं किए गए।
-मणिपुर से लेनी चाहिए सीख
कांग्रेस को क्राइसिस संभालने की सीख मणिपुर में भाजपा की सरकार बचाने की रणनीति से लेना चाहिए। जहां कई मंत्रियों के इस्तीफे होने से सरकार संकट में आई। ऐसे में भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व ने राष्ट्रीय पीपुल्स पार्टी के बागी विधायकों को मनाने के ुलिए मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा और असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा को मैदान में उतार दिया। दोनों नेताओं ने नाराज विधायकों के पास जाकर बात की और फिर उन्हें दिल्ली लाकर राष्ट्रीय नेतृत्व से मिलाया गया। हालांकि इस संकट के दौरान मेघालय में भी कांग्रेस नेताओं के यहां छापेमारी जरूर हुई थी।
-यह दिख रही रणनीतिक चूक
1. जनता के बीच जाने की बजाय चले गए कोर्ट
भाजपा ने राजस्थान में कांग्रेस को घेरन के लिए चारों ओर से जाल बिछाया। कांग्रेस ने इससे बाहर निकलने के लिए जनता का साथ लेने की बजाय सुप्रीम कोर्ट चली गई। हालांकि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की सलाह के बाद सुप्रीम कोर्ट से स्पीकर की एसएलपी वापस ली गई।
2. महाराष्ट्र की तरह रणनीति नहीं
राजस्थान में संकट टालने के लिए महाराष्ट्र की तरह कांग्रेस की रणनीति नहीं रही। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खडग़े, मुकुल वासनिक, के.सी.वेणुगोपाल समेत कई नेताओं की फौज को उतार दिया था। सधी रणनीति के साथ बड़े मतभेदों के बावजूद शिवसेना के साथ सरकार बनाने में कांग्रेस कामयाब हुई। राजस्थान में संकट के शुरुआत में कांग्रेस ने ऐसी आक्रमकता दिखाई, लेकिन दिन बीतने के साथ दिग्गज नेताओं की भूमिका खास नहीं रही।
3. कोई फॉर्मूला नहीं
संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल, प्रभारी अविनाश पांडे, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेजवाला और अजय माकन ने राजस्थान में डेरा डाल रखा है। यह जग जाहिर है कि पांडे के पायलट से रिश्ते अच्छे नहीं है। जबकि माकन पहले भी राजस्थान के प्रभारी रहने के चलते गहलोत से उनकी नजदीकी रही है। वही वेणुगोपाल और सुरजेवाला ही अहम कड़ी बने रहे। कांग्रेस की ओर से जाहिर तौर पर पायलट को मनाने का कोई फॉर्मूला नहीं बताया गया, सिर्फ यह कहा जा रहा है कि हरियाणा की भाजपा सरकार के संरक्षण को छोडक़र बातचीत का रास्ता अपनाया जाए। पायलट को उनकी समस्याओं के समाधान का वादा किया जा रहा है। जबकि पायलट खेमा इससे अधिक आश्वासन चाहता है।
Updated on:
29 Jul 2020 08:09 am
Published on:
29 Jul 2020 07:00 am
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