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झारखंड विधानसभा चुनाव: क्‍या महाराष्‍ट्र और हरियाणा के परिणामों से सीख लेंगे बीजेपी नेता!

बीजेपी को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत सीट शेयरिंग और सत्‍ता पर पकड़ को लेकर नरम रवैया रहेगा बेहतर चुनावी चूक दोबारा न हो इस बात को लेकर उठाने होंगे कदम

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नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव 2019 का परिणाम आने के बाद हरियाणा में बीजेपी ने जेजेपी और निर्दलियों के साथ मिलकर सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली है, लेकिन महाराष्ट्र में सीएम पद को लेकर बीजेपी और शिवसेना में सियासी घमासान जारी है। इससे साफ है कि एनडीए गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों के नेता दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों से सीख लेने को तैयार नहीं हैं।

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अगर सत्ता में भागीदारी को लेकर खींचतान का सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो इसका नुकसान केवल भाजपा को न होकर सहयोगी दलों को भी विधानसभा चुनावों के दौरान उठाना पड़ सकता है।

फिलहाल, दोनों राज्यों संपन्न चुनाव परिणामों से साफ है कि बीजेपी ने अनुच्छेद 370, तीन तलाक, कालाधन उन्मूलन और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को विधानसभा चुनाव में जरूरत से ज्यादा जोर दिया। स्थानीय मुद़दों पर न तो केंद्रीय नेतृत्व ने और न ही राज्य स्तरीय नेताओं ने गौर फरमाया। केंद्रीय नेतृत्व का अति आत्मविश्वास में रहना भी पार्टी के लिए अनुकूल साबित नहीं हुआ। यानि पार्टी के शीर्ष नेताओं को आत्मविश्वा से बचने की जरूरत है।

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मतदाताओं के बीच नैरेटिव्स क्या बन रहा है इसका आकलन बीजेपी और उनके सहयोगी कुशलतापूर्वक नहीं कर सके। यही वो प्वाइंट है जिसे इस बार बीजेपी के चाणक्य भी नहीं पकड़ पाए।

इसलिए एनडीए में शामिल राजनीतिक पार्टियों व उनके नेताओं के लिए बेहतरी इसी में है कि वर्तमान जनादेश से सीख लेते हुए जरूरी कदम उठाएं। ऐसा करना इसलिए दो राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में जरूरी है। पहला, 2014 और 2019 के चुनाव परिणामों से साफ है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को लेकर मतदाताओं की सोच बदली है।

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दूसरा महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजों ने बीजेपी सहित एनडीए के सभी सहयोगी दलों के नेतृत्व को नए सिरे से सभी पहलुओं पर विचार करने का संदेश दिया है।


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