इससे पहले संसद ने एससी-एसटी कानून के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ चुनिंदा सुरक्षा उपाय करने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्णय को निष्प्रभावी बनाने के लिए राष्ट्रपति ने नौ अगस्त को विधेयक को मंजूरी दी थी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति संशोधन विधेयक लोकसभा में छह अगस्त को पारित हुआ था। विधेयक में एससी-एसटी के खिलाफ अत्याचार के आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत के किसी भी संभावना को खत्म कर कर दिया। संशोधन विधेयक के जरिए यह सुनिश्चित किया गया है कि आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए किसी प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है और इस कानून के तहत गिरफ्तारी के लिए किसी प्रकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
आपको बता दें कि शीर्ष अदालत ने इस कानून का सरकारी कर्मचारियों के प्रति दुरुपयोग होने की घटनाओं का जिक्र करते हुए 20 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि इस कानून के तहत दायर शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। न्यायालय ने इस संबंध में अनेक निर्देश दिए थे। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि एससी-एसटी कानून के तहत दर्ज ममलों में लोक सेवक को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बाद ही गिरफ्तार किया जा सकता है। उससे पहले केवल किसी की शिकायत के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार के संशोधन विधेयक के खिलाफ ही सवर्णों ने पहले अगस्त में और अब छह सितंतबर को देशव्यापी हड़ताल का आयोजन किया था। आंदोलनकारियों की मांग है कि सवर्णों के उत्पीड़न से संबंधित प्रावधान वापस लिए जाएं।