
श्रीनाथजी मंदिर। फोटो: पत्रिका
Shrinathji Temple: राजसमंद। देशभर में जन्माष्टमी श्रद्धा और उल्लास से मनाई जाती है, मगर नाथद्वारा में इसका रूप अनूठा होता है। श्रीनाथजी मंदिर की ओर से कान्हा के जन्म पर नर और मादा नामक दो तोपों से 21 बार गोले दागकर सलामी दी जाती है। यह परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है, जब मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने श्रीनाथजी को अपने राज संरक्षण में लिया। उसी समय प्रभु के सम्मान में पहली बार 21 तोपों की सलामी दी गई, जो तब से निरंतर जारी है।
रात्रि 12 बजे जैसे ही मंदिर में श्रीकृष्ण जन्म का संकेत दिया जाता है, पूरा वातावरण नंद के घर आनंद भयो के जयघोष और भजनों से गूंज उठता है। उसी क्षण 21 तोपों की गर्जना धरती और गगन को गुंजा देती है। हजारों श्रद्धालु इस दृश्य के साक्षी बनने नाथद्वारा पहुंचते हैं। मंदिर परिसर और पूरे नगर में ऐसी भीड़ होती है कि तिल रखने की जगह नहीं बचती। हवेली और मार्गों को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है और पूरा नगर ब्रज सा वातावरण धारण कर लेता है।
श्रीनाथजी मंदिर प्रबंधन की ओर से नर और मादा तोपों को विशेष रूप से तैयार किया जाता है। मध्यरात्रि में ये दोनों तोपें मिलकर 21 बार गर्जना करती हैं। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए रोमांचकारी होता है।
पुष्टिमार्गीय प्रधान पीठ प्रभु श्रीनाथजी की हवेली में इस अवसर पर विशेष सेवा पद्धतियां अपनाई जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन प्रभु को मंगला दर्शन में पंचामृत स्नान कराया जाता है। तत्पश्चात प्रभु को चाकदार केसरी वस्त्र और मोर चंद्रिका का अद्भुत श्रृंगार किया जाता है। श्रृंगार दर्शन में जन्म पत्रिका बांची जाती है और राजभोग में महाभोग अर्पित किया जाता है। रात 9 बजे से जन्म दर्शन खुलते हैं और ठीक 12 बजे 21 तोपों की गर्जना के साथ प्रभु के जन्म की सूचना संपूर्ण पुष्टि-सृष्टि को दी जाती है। इस समय प्रभु के गोद के ठाकुर श्रीलाड़ले लाल को भी पंचामृत स्नान कराया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्म के अगले दिन रविवार को नंद महोत्सव मनाया जाएगा। प्रभु के मंगला दर्शन के पश्चात तिलकायत एवं विशाल बावा द्वारा छठी की पूजा की जाएगी। इस दिन नन्हें कान्हा को बुरी नजर से बचाने और सुरक्षा का भाव रखा जाता है। छठी पूजन के बाद लाड़ले लाल नवनीत प्रियाजी को स्वर्ण पलने में झुलाया जाएगा। मंदिर के सेवक गोप-गोपी का रूप धारण कर नृत्य करेंगे और नगर में नंद घर आनंद भयो जय कन्हैयालाल की जैसे उद्घोष गूंजेंगे। दूध-दही और केसर का छिड़काव होगा और पूरा नगर कृष्णमय हो उठेगा। नाथद्वारा में जन्माष्टमी सिर्फ धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि परंपरा, आस्था और राजसी वैभव का जीता-जागता प्रतीक है।
Updated on:
16 Aug 2025 03:18 pm
Published on:
16 Aug 2025 03:17 pm
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