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दिवाली में इस गांव के 300 घरों में नहीं होता ‘कलर’, न ही बनाई जाती ‘रंगोली’

MP News: सुनने में में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन ये सच है। यहां केवल सरकारी कार्यालय और मंदिरो को छोड़ कर पूरे गांव में कलर नहीं है।

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फोटो सोर्स: पत्रिका

फोटो सोर्स: पत्रिका

MP News: दिवाली पर्व या मांगलिक पर्व आते ही सभी अपने घरों सहित ऑफिस में साफ सफाई के साथ ही रंग रोगन करने लग जाते है। घर को सजाने में लग जाते है, लेकिन नगर से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर आलोट तहसील का एक गांव ऐसा है जहां घरों पर रंग रोगन ही नहीं होता है। हम बात कर रहे है गांव कछालिया की जो अपनी परंपराओं के लिए विख्यात है। जहां दीपावली पर्व पर हर कोई अपने ऑफिस हो चाहे घर हो या दुकान उसको रंग रोगन के कार्य के लिये करीब 1 महीने पहले से तैयारी में लग जाते है, लेकिन इस गांव की परंपराओं का पालन करने के लिए सभी ग्रामीण एकजुट है।

इसी परंपरा का पालन करते हुए इन ग्रामीणों ने आज तक घर का रंग रोगन नहीं किया। सुनने में में थोड़ा अजीब लगेगा, लेकिन ये सच है। यहां केवल सरकारी कार्यालय और मंदिरो को छोड़ कर पूरे गांव में कलर नहीं है। इस गांव में करीब 300 से अधिक मकान है, साथ ही यहां की जनसंख्या भी करीब 1500 होने के बावजूद परंपराओं का निर्वहन करते हुए ग्रामीणों ने अपने पक्के मकानों पर भी कलर नहीं करा रखा है।

दूल्हा घोड़ी पर बैठकर नहीं निकलता

मंदिर के पुजारी नाथूपूरी ओर चैनपूरी गोस्वामी ने बताया की कछालिया गांव में स्थित मंदिर काल भैरव मंदिर अति प्राचीन होकर विश्वसनीय है, यहां लोगों की अपनी मुरादे पूरी होती है सभी ग्रामीण भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर के सामने से कोई भी दूल्हा घोड़ी पर बैठकर नहीं निकलता है, ना ही कोई अर्थी मंदिर के सामने होकर निकलती है। गांव में कोई भी व्यक्ति अपने घर पर कलर करता है तो उसके घर में मौत होती है या फिर बीमार हो जाता है।

नहीं बनती रंगोली

कुछ दिनों बाद दिवाली आने वाली है हर कोई अपने घरों के आगे रंगोली बनाकर सजावट करता है, लेकिन कछालिया गांव में किसी भी घर के आगे रंगोली नहीं बनाई जाती है। पूरे गांव में कोई भी व्यक्ति काला कपड़ा नहीं पहनता है। ना ही गांव में कोई काला जूता पहननता है। घर के ऊपर कवेलू तक नहीं बिछाते हैं, ऐसा करने पर गांव के एक युवा की मौत भी हो चुकी है ऐसा ग्रामीण ही बताते हैं।

बिना छना पानी पीते हैं

गांव कछालिया के कोई भी ग्रामीण अपने घरों पर पानी इस्तेमाल करते हैं वो बिना छना हुआ होता है। गांव के ही नंदलाल चौहान ने बताया कि अगर कोई पानी छान लेता हैं तो उस पानी में कीड़े पड़ जाते हैं। इस कारण सभी बिना छना पानी ही पीते हैं ये बातें भले ही किसी फिल्म की कहानी या पुरानी मान्यताओं के समान लगती है, लेकिन आलोट से 10 किलोमीटर दूर ग्राम कछालिया एक गांव ऐसा है, जहां ये रिवाज परम्पराएं आज के इस आधुनिक युग में भी जारी हैं, जहां की मौजूदा धार्मिक मान्यताएं सोचने पर मजबूर कर देती है कि यहां कुछ तो है जो विज्ञान की दुनिया से परे हैं।

ग्रामीणों से चर्चा करने पर पता चला कि यहां किसी तरह का अंधविश्वास नही बल्कि सब लोग बाबा काल भैरव के सम्मान में सदियों से कर रहे हैं। कॉल भैरव को मान दिया जाता है, यहां सिर्फ मंदिर में रंगरोगन किया जाएगा ना कि किसी और के घर में।