ऐसे आया बदलाव साल दर साल सराफा बाजार कारोबारी गोपाल सोनी के अनुसार जोधपुर राजवंश ने रतलाम की बसाहट जब की, तब वर्तमान थावरिया बाजार में ही रतलाम की टकसाल छपती थी। जोधपुर से सरकारी सुनार आए थे। स्वर्ण-चांदी की मोहर आदि का निर्माण होता था। इसकी शुरूआत महाराजा रतन ङ्क्षसह के समय पर हुई। इसके बाद नया सराफा बाजार करीब 200 साल पहले बना। जब आजाद चौक को आमजन की सभा आदि करने बनाया तब इसके आसपास सराफा कारोबार को बनाया। धीरे-धीरे बाजार के कारोबारियों ने अपने मधुर व्यवहार व गुणवत्ता वाले आभूषण के साथ साख कायम कर ली।
साढ़े तीन सौ साल से कायम रिश्तों की कहानी
रतलाम के चांदनीचौक व गोल बाजार में बना सराफा बाजार 350 साल से कायम रिश्तों की बागडोर को संभाले हुए है। यहां की हॉलमार्क ज्वेलरी की 50,000 से अधिक ज्वेलरी डिजाइन 100 प्रतिशत नेचुरल डायमंड, न्यूनतम मैकिंग चार्ज और बेस्ट शॉपिंग अनुभव दुकानों में उपलब्ध है। ग्राहक में पारदर्शिता बनी रहे इसलिए उन्हें ज्वेलरी की कीमत से जुड़ी पूरी जानकारी दी जाती है, जैसे – आभूषणों में लगे कुंदन, मोती या स्टोन्स का भाव और सोने का भाव अलग-अलग और बिङ्क्षलग में इन कीमत की जानकारी वह कैसे देख सकते हैं आदि। सराफा कारोबारी कीर्ति बडजात्या का कहना है कि बाजार को धनतेरस व दीपावली के दौरान पूरी रात खुला रखा जाता है। इसकी एक बड़ी वजह अलग-अलग राशि वाले अलग-अलग मुहूर्त पर खरीदी करना पसंद करते है। इस बार पुष्य नक्षत्र पर बाजार गुलजार हुआ व अब DhanTeras2024 को लेकर भी तैयार है।