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Sawan 2021 रतलाम में भी विराजमान हैं महाकाल, उज्जैन मंदिर तक है गुफा

locationरतलामPublished: Aug 03, 2021 01:53:21 pm

Submitted by:

deepak deewan

– 1200 शताब्दी में बने धराड़ के मंदिर में स्थापित हैं पंचमुखी शिवलिंग
 

Dharad Mahakal Mandir Ratlam Mahakal Temple Sawan Mass Mahakal Sawari

Dharad Mahakal Mandir Ratlam Mahakal Temple Sawan Mass Mahakal Sawari

रतलाम. जिला मुख्यालय से करीब 11 किमी दूर लेबड़ नयागांव फोरलेन पर धराड़ गांव में स्थित महाकाल मंदिर अति प्राचीन होने के साथ—साथ कई धार्मिक विशेषताओं को समेटे हुए है। 12वीं शताब्दी में परमार राजाओं द्वारा बनाए गए इस मंदिर के गर्भगृह में न सिर्फ पंचमुखी शिवलिंग स्थापित हैं बल्कि गर्भगृह से उज्जैन के महाकाल मंदिर तक जाने के लिए गुफा मार्ग भी है।

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इस मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1952 में संत सुंदर गिरी महाराज के मार्गदर्शन में ग्रामीणजनों के सहयोग से कराया गया था। अगस्त 1977 में राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को अधिग्रहित किया गया था। विगत 49 वर्षो से प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर पंचकुंडात्मक महारुद्र यज्ञ व सावन में विशेष शाही सवारी निकाली जाती है। इस बार भी सावन के अंतिम सोमवार को शाही सवारी निकाली जाएगी। सावन के अंतिम दिवस महाप्रसादी का आयोजन होगा।

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मन्दिर पुजारी सत्यनारायण बैरागी ने बताया कि 12 वीं सदी में निर्मित मंदिर के पोल व मंदिर के आस-पास बनी आकृतियां देखने लायक हैं। गर्भगृह में पंचमुखी शिवलिंग है। उसके ऊपर महाकाल विराजित हैं। यहां मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय, हनुमान भी विराजित हैं। मंदिर में जो खंबे हैं उन्हें अभी तक एक बार में कोई नहीं गिन पाया है। जब भी गिने जाते हैं तो उनकी गिनती अलग—अलग आती है।

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पहले गांव वाले इसे फूटला मंदिर के नाम से जानते थे। बड़े पेड़ और झाडिय़ां होने से यहां आने में लोग डरते थे। इसी बीच संत सुंदर गिरी सन 1950 में धराड़ पहुंचे। उन्होंने शिव मंदिर में जाने की इच्छा प्रकट की थी। मंदिर की स्थिति देख वे दुखी हुए और उन्होंने प्रण लिया कि जब तक मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं होगा तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे।

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इसके बाद ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। दो साल में (1952) में जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण हुआ था। संतश्री के गुरु आए थे तब उन्होंने मूंग की दाल से व्रत पूर्ण करवाया। रतलाम की बसावट ही धराड़ से हुई थी। सबसे पहले महाराजा रतनसिंह धराड़ आए थे। यहां का मंदिर सालों पुराना होकर चमत्कारी है। महादेव पाप नाशक हैं।

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यह मंदिर साधना—स्थल के रूप में भी जाना जाता है। शिखर के नीचे साधना स्थल बना हुआ है। महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष रूप से पंचमुखी महादेव मंदिर पर आराधना करने से सभी पापों का नाश होता है। जनमान्यता है कि उक्त मंदिर उड़कर आया था। यह प्रदेश का दूसरा महाकाल मंदिर है।

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