
Shivling which is very special for your According to the zodiac signs
सनातन धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक भगवान शिव के अनेक मंदिर पूरे देश में स्थापित हैं और इन मंदिरों की मान्यताएं भी अलग-अलग होती हैं। इस बात को तो सब जानते ही हैं भगवान की पूजा शिवलिंग के रूप में भी होती है।
मान्यता हैं कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने से ही व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। इसके साथ ही अगर कोई इंसान किसी भी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का दर्शन करता है तब भी उसकी हर कामना पूर्ण हो जाती है।
इसी के साथ ही आज हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके शिवलिंग की स्थापना को लेकर कई मान्यताएं हैं।
दरअसल तमिलनाडु के तिरुवनमलाई जिले में ऐसा शिवलिंग है, जिसका वर्णन शिवपुराण में भी बताया जाता है। कई लोग इसे भगवान शिव का प्रथम-लिंग रूप में प्राकट्य भी मानते हैं। जहां भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
तमिलनाडु के अन्नामलाई पर्वत के पास ही भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। जिसे अरुणाचलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां मंदिर पहाड़ की तराई में है। वास्तव में यहां अन्नामलाई पर्वत ही शिव का प्रतीक है। पर्वत की ऊंचाई 2668 फीट है। यह पर्वत अग्नि का प्रतीक है।
मंदिर के पास ही पर्वत पर नवंबर दिसंबर के बीच एक त्योहार मनाया जाता है जिसे कार्तिगई दीपम के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां भक्तों की खासी भीड़ देखने को मिलती है। इसी के साथ इस दिन पर्वत के शिखर पर घी का एक अग्नि पुंज जलाया जाता है जो शिव के अग्नि स्तंभ का प्रतीक होता है।
अलग अलग राशियों से जुड़े हैं ये शिवलिंग
अरुणाचलेश्वर मंदिर के 8 दिशाओं में 8 शिवलिंग स्थापित हैं जो अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं और साथ ही इन्हें अलग-अलग राशियों से जोड़ा जाता है। जैसे कि
: इंद्रलिंगम का संबंध वृष राशि से,
: अग्नि-लिंगम का संबंध सिंह राशि,
: यम-लिंग का वृश्चिक राशि से,
: नैऋत्य-लिंगम का संबंध मेष राशि से,
: वरुण-लिंगम का मकर और कुंभ से,
: वायु-लिंगम का कर्क राशि से,
: कुबेर-लिंगम का धनु और मीन से,
: ईशान-लिंगम का संबंध मिथुन और कन्या राशि से है।
लोग अपनी राशि के अनुसार ग्रहों के दोष दूर करने के लिए इनकी पूजा करते हैं।
अरुणाचलेश्वर मंदिर को लेकर पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती ने खेल-खेल में अपने हाथों से शिवजी की आंखें बंद कर ली थीं। उस वक्त पूरे ब्रह्मांड में अंधियारा हो गया था। कई वर्षों तक पूरे जगत में अंधकार ही बना रहा।
उसके बाद माता पार्वती के साथ अन्य देवताओं ने मिलकर तपस्या की। तब शिवजी अग्निपुंज के रूप में अन्नामलाई पर्वत ही इस श्रृंखला पर प्रकट हुए, जिसे अब अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा को अपनी शक्ति का परिचय करवाने के लिए इस स्थान पर प्रभु शिव ने अखंड ज्योति स्थापित की थी।
इस कथा के अनुसार- एक बार प्रभु विष्णु और ब्रह्मा में अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद उठ गया। वे भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे इस तथ्य की पुष्टि चाही। शिव ने उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया।
उन्होंने इस स्थान पर अखंड ज्योति स्थापित करके इन दोनों के समक्ष यह शर्त रखी कि जो व्यक्ति पहले उनका आदि या अंत खोज लेगा, वही अधिक श्रेष्ठ होगा।
भगवान विष्णु ने वराह अवतार का रूप धरने के बाद भूमि खोदकर शिव का अंत (पांव का अंगूठा) खोजने का अथक प्रयास किया। वहीं भगवान ब्रह्मा हंस रूप में उनका आदि स्वरूप (शीश) खोजने के लिए आकाश में उड़ चले। दोनों ने कठोर प्रयास किया, परंतु दोनों ही शिव का आदि और अंत खोजने में असफल रहे।
ऐसे पहुंचे यहां:
चेन्नई से तिरुवनमलाई की दूरी 200 किलोमीटर है। चेन्नई से यहां बस से भी पहुंचा जा सकता है। ट्रेन से जाने के लिए चेन्नई से वेल्लोर होकर या फिर चेन्नई से विलुपुरम होकर जाया जा सकता है। आप विलुपुरम या वेल्लोर में भी ठहर सकते हैं और तिरुवनमलाई मंदिर के दर्शन करके वापस लौट सकते हैं।
Published on:
01 Jun 2020 09:06 am
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