
Dussehra festival traditions in India|फोटो सोर्स – Freepik
Vijayadashami 2025: दशहरा (Dussehra 2025) या विजयादशमी, भारत देश में एक प्रमुख त्योहारों में से एक है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था, जो बुराई पर अच्छाई की मिसाल बन गई। भारत के विभिन्न हिस्सों में दशहरा मनाने की अपनी-अपनी परंपराएं हैं। कहीं बाहर के कुछ हिस्सों में रामलीला के रंगीन मंच सजते हैं, तो कहीं दुर्गा पूजा के भव्य पंडाल लगाए जाते हैं, और कहीं रावण के पुतले जलाए जाते हैं। अगर आप जानना चाहते हैं कि भारत के किन-किन राज्यों में दशहरा कैसे मनाया जाता है, तो यहां आपको विस्तार से जानकारी दी गई है।
पश्चिम बंगाल में दशहरा दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। शहरभर में भव्य पंडाल सजते हैं, जहाँ देवी दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। विजयादशमी के दिन विवाहित महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर “सिंदूर खेला” की परंपरा निभाती हैं। इसके बाद देवी प्रतिमाओं का विसर्जन हुगली नदी में किया जाता है।
हिमाचल का कुल्लू दशहरा दुनिया भर में मशहूर है। यह उत्सव रघुनाथ जी की आराधना से शुरू होता है और इसमें दूर-दराज़ के गांवों से देवी-देवताओं की पालकियां शामिल होती हैं। सांस्कृतिक झलक, लोकनृत्य और संगीत इसे अनोखा बनाते हैं। इस बार का आयोजन आपदा प्रभावित परिवारों को समर्पित किया गया है।
गुजरात में दशहरे का रंग नवरात्रि के गरबा और दांडिया से जुड़ा है। अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा जैसे शहरों में लोग पारंपरिक परिधानों में रातभर नृत्य करते हैं। ढोल की थाप और लोकगीत इस पर्व को और भी जीवंत बना देते हैं।
राजधानी दिल्ली में दशहरा का मतलब है भव्य रामलीला। शहर के अलग-अलग मैदानों में रामायण की कथा मंचित होती है। अंतिम दिन रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है। लालकिला मैदान, द्वारका और रामलीला मैदान पर हजारों की भीड़ उमड़ती है। यह दृश्य अच्छाई की जीत का प्रतीक बन जाता है।
मैसूर दशहरे का महत्व ऐतिहासिक है। मैसूर पैलेस रोशनी से जगमगाता है और "जंबो सवारी" नामक पारंपरिक जुलूस निकलता है, जिसमें हाथियों की भव्य सवारी, बैंड और नृत्य दल शामिल होते हैं। यह आयोजन दस दिनों तक चलता है और कर्नाटक की सांस्कृतिक पहचान को उजागर करता है।
बस्तर दशहरा भारत का सबसे लंबा उत्सव माना जाता है, जो करीब 75 दिनों तक चलता है। यहां देवी दंतेश्वरी की पूजा की जाती है और जनजातीय परंपराओं जैसे पाटा यात्रा, निशा यात्रा और मुरिया दरबार का आयोजन होता है। यह पर्व आदिवासी संस्कृति और आस्था का अद्भुत संगम है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी, लखनऊ और कानपुर में दशहरा रामलीला के मंचन और रावण दहन से जुड़ा है। स्थानीय कलाकार भगवान राम और अन्य पात्रों का अभिनय करते हैं। अंतिम दिन पुतलों का दहन होता है, जिसे देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित होते हैं।
Published on:
29 Sept 2025 03:02 pm
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