
यहां आइसक्रीम बेचकर गुजारा कर रहा है नेशनल चैंपियन, दिव्यांग खिलाड़ी ने एथलेक्टिस में जीता है ब्रॉन्ज
रीवा. मध्य प्रदेश के रीवा में रहने वाला दिव्यांग नेशनल चैंपियन सचिन अपनी आजीविका चलाने के लिए हाथ ठेले पर आइसक्रीम बेचने को मजबूर है। आपको बता दें कि, 4 साल कड़ी मेहनत करके उसने ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित कलिंगा स्टेडियम में एथलेटिक्स की 20वीं नेशनल चैंपियशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया था।
21 वर्षीय दिव्यांग खिलाड़ी सचिन साहू ने 400 मीटर रेस 1.17 सेकंड में पूरी ब्रांज मेडल पर कब्जा जमाया था। प्रतियोगिता 28 मार्च से 31 मार्च के बीच आयोजित हुई थी। उसकी सफलता का राह यूं ही आसान नहीं थी। उसके पास प्रैक्टिस करने के लिए जूते तक नहीं थे। नंगे पैर कंकड़-पत्थरों वाले मैदान में दौड़ दौड़कर उसने अभ्यास किया। देश का गौरव बढ़ाते सफलता के इस मुकाम पर पहुंचने के बावजूद आज सचिन को अपनी आजीविका चलाने के लिए किस तरह संघर्ष करना पड़ रहा है, आइये जानते हैं..।
प्रतियोगिता के संसाधन जुटाने के लिए बेचता है कुल्फी
मीडिया बातचीत के दौरान सचिन ने बताया कि, उसके परिवार की माली हालत ठीक नहीं है। हद तो ये है कि, अभ्यास करने के लिए उसके पास कोई जूते तक नहीं है। हालांकि, दिव्यांगता और आर्थिक परिस्थितयों के बावजूद भी सचिन ने कभी हार नहीं मानी। जूतों के लिए रुपए नहीं थे तो शहर केउबड़-खाबड़ मैदान में बिना जूतों के ही अभ्यास करना शुरु किया। चार साल के संघर्ष के बाद देश के लिए मेडल लाने का गौरव प्राप्त हुआ। सचिन का कहना है कि, वो जब भी प्रतियोगिता में जाता है तो अब भी किराये भाड़े की दिक्कतों से खासा जूझना पड़ता है। यही वजह है कि, दोपहर और रात में कुल्फी बेचकर इस रकम को इकट्ठा करने में जुटा रहता है।
दिव्यांग के संघर्श की कहानी
वर्ष 2015 से 2019 के बीच क्रिकेट खेलता रहा, लेकिन दिव्यांग होने के कारण क्रिकेट में कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई। फिर सोशल मीडिया के जरिए ग्वालियर के एथलेटिक्स कोच बीके धवन से संपर्क किया। उन्होंने एथलेटिक्स में किस्मत आजमाने की सलाह दी। एथलेटिक्स की डगर बड़ी कठिन रही। सबसे पहले ग्वालियर में ट्रायल हुआ। वहां से स्टेट टीम में सिलेक्शन होने पर टीटी नगर भोपाल स्टेडियम पहुंचा। कई दौर के प्रशिक्षण के बाद 2020 में नेशनल क्वालीफाई किया, लेकिन कोविड के कारण प्रतियोगिता रुक गई। यही प्रतियोगिता 2021 में हुई, लेकिन 100 मीटर की रेस में चौथी रैंक आई।
किस तरह बदला सपना
2021 में हुई स्पर्धा में चौथी रैंक आने के बाद मैं हताश तो हुआ पर मैंने हार नहीं मानी। रीवा आकर सुबह 4 बजे से 7 बजे तक रेलवे स्टेशन के समीप ग्राउंड में रेस शुरू की। कुछ दिन रेलवे ने ग्राउंड में गिट्टी का ढेर रख दिया। इसके बाद भी कंकड़-पत्थर भरे मैदान में गिरता रहा, लेकिन इन चुनौतियों को कभी भी अपने लक्ष्य के सामने अहमियत नहीं दी और अभ्यास जारी रखा।
उमरिया से शुरु हुआ सफर
मूल रूप से उमरिया जिले के आसोढ़ के समीप पटना गांव में रहने वाले सचिन के परिवार में माता-पिता के साथ चार बहनें और दो भाई भी शामिल हैं। दो बहनों और बड़े भाई की शादी हो चुकी है। परिवार की माली हालत देखकर रिश्तेदार राजू साहू ने अपना मकान दिया। अब रीवा में उसी मकान में रहकर अपनी आजीविका चला रहे हैं।
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Published on:
30 Apr 2022 11:15 am
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