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सबसे मीठे आम को मिल गया जीआइ टैग, अब दुनिया जानेगी इसकी खासियत

अब दुनियाभर में बढ़ेगी पहचान, देशभर में भी खूब मांग, सीएम ने प्रदेशवासियों को दी बधाई, रीवा के सुंदरजा आम को मिला जीआइ टैग

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रीवा

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deepak deewan

Mar 27, 2023

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अब दुनियाभर में बढ़ेगी पहचान

रीवा. मीठे रसीले आम भला किसे नहीं लुभाते! इसे फलों का राजा यूं ही नहीं कहा जाता हैं। इन आमों की भी कई वेरायटी हैं जिनकी अलग अलग खासियत होती हैं। इनमें रीवा के सुंदरजा आम भी शामिल हैं जिन्हें आमों का राजा कहा जाता है। इन आमों की अब देश दुनिया में भी पहचान बढ़ेगी। सबसे मीठे और अच्छे इन आमों को जीआइ ज्योग्राफिकल इंडिकेटर टैग मिल गया है। पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया अकाउंट पर सुंदरजा आम के साथ ही मुरैना की गजक और छत्तीसगढ़ के धमतरी के नागरी दूबराज चावल को जीआइ टैग मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त की है। सीएम शिवराज सिंह ने भी रीवा व मुरैना के साथ सभी प्रदेशवासियों को इस बात के लिए बधाई दी है। सीएम ने इस उपलब्धि के लिए पीएम और मंत्री गोयल का आभार माना है। रीवा कलेक्टर मनोज पुष्प के अनुसार सुंदरजा गोविंदगढ़ के बगीचों से निकलकर विदेश में भी महक बिखेर रहा है।

यहां बता दें कि सुंदरजा आम रीवा जिले के गोविंदगढ़ कस्बे में होता है। सुंदरजा आम अपनी खासियतों के लिए पूरे प्रदेश के साथ अब देश और विश्व में भी मशहूर हो गया है। जीआई टैग मिलने से अब इसे पुख्ता पहचान मिल गई है। इसकी प्रजाति 2 भी विकसित हो चुकी है। कुठुलिया फल व कृषि अनुसंधान केंद्र में सुंदरजा की प्रजाति 2 विकसित की गई है।

रेशे नहीं शर्करा कम लेकिन मिठास का कोई तोड़ नहीं
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश कुमार के अनुसार सुंदरजा 2 की भंडारण गुणवत्ता उत्कृष्ट है। सामान्य तापमान पर 10 से 12 दिन एवं फ्रीजिंग में 30 दिन तक भंडारण क्षमता रहती है। इससे निर्यात में दिक्कत नहीं होती। इस आम की कई विशेषताएं हैं। यूं तो सभी आम मीठे होते हैं और इनकी कुछ अलग ही गंध भी आती है लेकिन सुंदरजा आम की विशेष सुगंध और मिठास का तो कोई तोड़ ही नहीं है। यह बिना रेशे वाला और कम शर्करा वाला आम है। यही कारण है कि इसे शुगर के मरीज भी खा सकते हैं। यह एक जिला एक उत्पाद में शामिल है।

क्या होता है जीआइ टैग
क्षेत्रीय विशेष उत्पाद की ख्याति को प्रमाणित करने एवं उत्पाद को पहचान दिलाने एक प्रक्रिया होती है जिसे जियोग्राफिकल इंडीकेटर कहते हैं। हिंदी में इसे भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है।