
Bear in Rajasthan: राजस्थान में भारतीय वन अधिनियम के तहत भालू को प्रथम श्रेणी और द्वितीय श्रेणी के वन्यजीवों में शामिल करने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है। प्रथम श्रेणी में दुर्लभ वन्यजीव आते हैं, वहीं द्वितीय श्रेणी में साधारण वन्यजीव। ऐसे में दो श्रेणी के बीच फंसा भालू वन अधिनियम की डुगडुगी पर नाच रहा है।
वन्यजीवों की प्रमुखता और उनकी संख्या के आधार पर भारतीय वन अधिनियम में वन्यजीवों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। इसमें विलुप्त होती प्रजाति को प्रथम व इसके बाद द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के वन्यजीवों को उनकी उपलब्धता के आधार पर स्थान दिया गया है, लेकिन भालू को वन अधिनियम में प्रथम श्रेणी में 31-सी स्थान पर और द्वितीय श्रेणी के भाग दो में पांचवें स्थान पर जोड़ा गया है।
बरसों पहले भालू को द्वितीय श्रेणी का वन्यजीव माना जाता था, लेकिन संख्या में कमी होने पर इसे प्रथम श्रेणी में शामिल कर लिया, जबकि भालू द्वितीय श्रेणी में भी बना हुआ है। ऐसी हालत में कई बार शिकारी बच जाते हैं।
वन अधिनियम 1971 के तहत प्रथम श्रेणी में शामिल सभी वन्य जीवों का शिकार करने पर तीन से सात साल तक की सजा व 25 हजार तक जुर्माने का प्रावधान है। इसमें शिकार के मामलों में जमानत तक नहीं होती। वहीं द्वितीय श्रेणी में शामिल वन्यजीवों के लिए सजा में थोड़ा नियम सरल हैं। इसमें शिकार के आरोपी जमानत तक करा लेते हैं और छूट जाते हैं।
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वन अधिनियम में कोई भी बदलाव होने पर वन विभाग को इसकी जानकारी दी जाती है। वन अधिनियम 1971 में अब तक तीन बार बदलाव किए जा चुके हैं। आखिरी बाद वन अधिनियम में बदलाव 2006 में किया गया था। उस समय भालू को दोनों श्रेणियों में दर्शाया गया था।
भालू कानूनी प्रक्रिया के तहत प्रथम और द्वितीय दोनों श्रेणी में शामिल है। ऐसे में कई बार कानूनी दांव-पेंच आड़े आ जाते हैं। वन अधिनियम में दो श्रेणियों में दर्शाने के बारे में कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। इसको दुरुस्त करना सरकार का काम है।
Updated on:
21 Jan 2025 08:43 am
Published on:
21 Jan 2025 08:41 am
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