नासा ने अपने ***** नए मिशन का नाम ‘आर्टेमिस’ तय किया है। यह यूनान के पौराणिक पात्रों में चांद की देवी का नाम है जो देवता अपोलो की जुड़वा बहन थी। इतना ही नहीं आर्टेमिस युवा लड़कियों की रक्षक भी थी। नासा के इस नाम को रखने के पीछे का कारण भी बहुत दिलचस्प है। दरअसल 1969 में अमरीका के पहले मानव चंद्र मिशन अपोलो 11 ने इतिहास रचा था और अमरीका को विश्व शक्ति बनने में मदद की थी। इसी मिशन से पहली बार इंसान ने नील आर्मस्ट्रॉन्ग और अज एड्रिन के रूप में चांद पर कदम रखा था। इसलिए जुड़वा बहन होने के नाते नासा को इस मिशन की सफलता की भी पूरी उम्मीद है। क्योंकि 52 साल बाद अमरीका दोबारा चांद पर लौटेगा और बार कदम रखने वाली पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हो सकती है। इसके लिए सहयोगी एजेंसियां पूरे देश में काम कर रही हैं।
नासा का कहना है कि वे पहले 2024 में 52 साल बाद चांद पर एक पुरुष और पहली अंतरिक्ष यात्री को उतारने पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हें। इसके बाद वे 2028 में पूर्णतया महिलाओं के लिए स्थायी चंद्र मिशन लॉन्च करेंगे। आर्टेमिस के साथ नासा चंद्रमा पर मनुष्यों की स्थायी उपस्थिति के लिए साल 2022 तक नासा चांद के चारों ओर कक्षा में एक छोटा-सा स्पेस स्टेशन बनाएगा। नासा इस अभियान के लिए खास ओरियन स्पेस क्रॉफ्ट तैयार कर रहा है जिस पर अभी तक 65 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। अभियान के साथ-साथ नासा नई पीढ़ी के वैज्ञानिकों को भी तैयार कर रहा है। 2024 में एक महिला अंतरिक्ष यात्री के चांद पर पहला कदम रखने के साथ ही अंतरिक्ष में भी लैंगिक समानता की ओर यह पहला महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
जहां अमरीका के पहले महिला चंद्र मिशन में अभी पांच साल हैं वहीं भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो 2021 में जाने वाले पहले मानवयुक्त गगनयान मिशन के साथ ही महिला अंतरिक्ष यात्री भेजने की भी तैयारी कर रहा है। इसरो का प्रयास चार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक महिला यात्री को भेजना है। इसरो प्रमुख के. सिवन ने इस बारे में बैंगलुरू में बताया है। इसके लिए एजेंसी भारतीय वायु सेना से संभावित अंतरिक्ष यात्रियों का चुनाव करेगी। चुने हुए लोगों को इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन, बैंगलुरू में प्रशिक्षण दिया जाएगा। वहीं अंतरिक्ष मिशन की एडवांस ट्रेनिंग विदेशी स्पेस एजेंसियों के सहयोग से की जाएगी। इस मिशन पर करीब 10 हजार करोड़ रुपए का खर्च आने की संभावना है।