scriptएक्सप्लेनर : आज से 900 साल पहले ईरान में बनता था ’20वीं सदी का स्टेनलैस स्टील’ | Ancient Persians were making 20th-century chromium steel 900 years ago | Patrika News

एक्सप्लेनर : आज से 900 साल पहले ईरान में बनता था ’20वीं सदी का स्टेनलैस स्टील’

locationजयपुरPublished: Sep 24, 2020 07:43:54 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

प्राचीन पर्शिया आज के ईरान का एक संभ्रात इलाका था जिसे विज्ञान और तकनीक में महारथ हासिल थी, हाल ही मिली कुछ पत्थरों में स्टील के ऐसे टुकड़े मिले हैं जो आज के स्टेनलैस स्टील की ही तरह दिखते हैं जबकि कार्बन डेटिंग के अनुसार ये टुकड़े करीब 1000 साल पुराने हैं।

एक्सप्लेनर : आज से 900 साल पहले ईरान में बनता था '20वीं सदी का स्टेनलैस स्टील'

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आज के भारी-भरकम उद्योगों और लगभग हर ठोस मशीनरी में उपयोग होने वाला स्टील (क्रोमियम) इतना सशक्त इसलिए होता है क्योंकि इसे जंग लगने से बचाने और ऑक्सीकरण रोकने के लिए क्रोमियम मिलाया जाता है। यह तकनीक 20वीं सदी में उपयोग की जाने लगी थी। लेकिन ईरान (Ancient Persia) में 11वीं शताब्दी के पुरातात्विक स्थल से क्रूसिबल स्लैग (लावे से बनी चट्टान का टुकड़ा) का एक नमूना मिला है जिसमें क्रोमियम पाया गया है।
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क्या होता है क्रोमियम
क्रोमियम एक सामान्य रसायन है जिसे स्टील और स्टेनलैस स्टील जैसी सामग्री बनाने के लिए मिश्र धातुओं के साथ मिलाया जाता है। 19वीं और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका आविष्कार किया गया था। लेकिन अब पुरातत्वविदों ने पता लगाया है कि प्राचीन फारसियों ने क्रोमियम को 11वीं शताब्दी में ही विकसित कर लिया था जो आज से लगभग एक हजार साल पहले का समय है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (University College London) के शोधकर्ता राहिल अलीपुर के नेतृत्व में टीम ने कई मध्ययुगीन फारसी पांडुलिपियों का अध्ययन किया और दक्षिणी ईरान में ‘चाहक’ नामक पुरातात्विक स्थल की पहचान की जहां 11वीं सदी में प्राचीन फारसी इस्पात उत्पादन कारखाना हुआ करता था।

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फारसी पांडुलिपी में मिला नुस्खा
शोधकर्ता राहिल का एक पांडुलिपि ने विशेष रूप से ध्यान खींचा। इसका शीर्षक था ‘अल-जमाहीर फी मारिफह अल-जवाहिर’ जिसका अंग्रेजी में अनुवाद था ‘अ कम्पेंडियम टू नो द जेम्स’ यानी रत्नों को जानने का संग्रह। यह पांडुलिपी 10वीं या 11वीं शताब्दी ईस्वी में पोलीमैथ के जानकार अबू-रेहान बिरूनी द्वारा लिखी गई थी। महत्वपूर्ण रूप से इस पांडुलिपी में उच्च तापमान वाले क्रूसिबल से स्टेनलैस स्टील बनाने का एकमात्र ज्ञात नुस्खा लिखा हुआ था। लेकिन समस्या यह थी कि एक हजार साल पुराने इस नुस्खे को आज व्यवहारिक रूप से इस्तेमाल कर वैसा ही स्टील बना पाना आसान नहीं है।

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भाषाई बदलाव भी कारण
इस अध्ययन के एक और लेखक मार्कोस मार्टिन-टॉरेस का कहना है कि इस नुस्खे का इस्तेमाल कर आज बिल्कुल 1000 साल पहले जैसा स्टील बना मुश्किल है क्योंकि नुस्खे में वर्णित और स्टील के लिए क्रोमियम बनाने की विधि में उपयोग होने वाली सामग्री को ढूंढने की प्रक्रिया लंबी और जटिल हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि हजार साल के दौरान तकनीकी प्रक्रियाओं या सामग्रियों को रिकॉर्ड करने के लिए जिस भाषा, लिपी और मानक शब्दों का उपयोग किया जाता था वे अब सामान्य प्रचलन में उपयोग नहीं किए जाते हैं। एक परेशानी यह भी है कि आज के सदर्भ में उन शब्दों का अर्थ और संदर्भ आधुनिक विज्ञान में उपयोग किए जाने वाले शब्दों से अलग हो सकता है। इसके अलावा, उस समय लेखन का कार्य प्राचीन फारस के अभिजात वर्ग तक ही सीमित था, बजाय उस व्यक्ति के जिसने वास्तव में शिल्प को अंजाम दिया। इसलिए सही व्यक्ति द्वारा नुस्खे के न लिखे जाने के कारण इसमें त्रुटियां या चूक भी हो सकती हैं।

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वैज्ञानिक भी रह गए हैरान
पुरातत्वविदों को हैरानी तब हुई जब एक रासायनिक घटक जिसे फारसी में ‘रुसख्ताज’ कहा जाता है, की पहचान हुई। दरअसल, यह वह अयस्क खनिज क्रोमाइट था जिसका उपयोग आज क्रोमियम क्रूसिबल स्टील बनाने के लिए किया जाता है। महत्वपूर्ण रूप से इसकी पहचान चाहक साइट से खुदाई के दौरान मिली कलाकृतियों में मिले क्रोमाइट और क्रोमियम के निशान की खोज के दौरान हुई थी। आर्कियोलॉजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार स्लैग से बरामद चारकोल के कई टुकड़ों पर रेडियोकार्बन डेटिंग का उपयोग करने पर पता चला कि यह निशान 11वीं या 12 वीं शताब्दी के बीच के हैं। स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप इमेजिंग ने क्रोमाइट के निशान का पता लगाया और क्रूसिबल स्लैग में 1 से 2 फीसदी क्रोमियम स्टील के कणों के बीच पाया गया। हालांकि आज के स्टेनलैस स्टील और टूल स्टील में 11 से 13 प्रतिशत तक क्रोमियम का उपयोग किया जाता है।

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