scriptमम्मी से ज्यादा पापा खुश क्यों कारण खोज रहें वैज्ञानिक | father is more happire than mom, scientist tries to know why | Patrika News

मम्मी से ज्यादा पापा खुश क्यों कारण खोज रहें वैज्ञानिक

locationजयपुरPublished: Feb 15, 2019 05:44:50 pm

Submitted by:

manish singh

रिपोर्ट की मानें तो बच्चों के साथ खेलना ही खुशी का राज है। पिता बच्चों के साथ अधिक समय बिताते हैं, खेलते हैं और उनका पूरा ध्यान रखते हैं। बच्चों के बड़े होने पर मम्मी को गृहस्थी पर भी ध्यान देना होता है। माताएं बच्चों को लेकर अधिक गंभीर रहती हैं। घर की जिम्मेदारी,परिवार की देखभाल उनकी खुशी पर असर डालती है।

mother, father, happy, kids, research, report, kids, schoold children, stress

मम्मी से ज्यादा पापा खुश क्यों कारण खोज रहें वैज्ञानिक

माताओं की तुलना में पिता अधिक खुश क्यों रहते हैं? वैज्ञानिक इस रहस्य का सच जानने में जुट गए हैं। वैज्ञानिकों की टीम ने इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए 18 हजार लोगों पर शोध किया और उन कारणों को पहचाना जो पिताओं को खुशी देते हैं। इस पर अध्ययन जारी हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया-रिवर साइड के मनोवैज्ञानिकों ने तीन तरह के अध्ययन किए जिनमें कुल करीब 18 हजार लोग शामिल थे। ये रिपोर्ट हाल ही पर्सनालिटी एंड सोशल साइकोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि मां की तुलना में पिता बच्चे की देखभाल अच्छे ढंग से करते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिता बच्चों के साथ अच्छा समय गुजारते हैं और उनके साथ खेलते हैं जिससे बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ता है।

रिपोर्ट के माध्यम से अभिभावकों को बताया गया है कि उन्हें बच्चों के साथ खेलना चाहिए। इससे स्वास्थ्य बेहतर रहता है। रिपोर्ट के बाद एक मां ने तय किया कि वे हमेशा खुश रहेंगी। बच्चों के साथ देर तक खेलेंगी हालांकि वे ऐसा पहले से करती आ रही हैं। खासतौर पर तब जब पति दफ्तर में होते हैं तब बच्चों को वे पूरा समय देती हैं। इसके बाद इन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ के मनोविज्ञानी और असिस्टेंट प्रोफेसर कैथरीन नेलसन-कॉफे से बात की जिससे इस रिपोर्ट के बारे में सब कुछ पता चल सके। वे जानना चाहता चाहती थीं कि ‘आखिर रिसर्च करने वाली टीम ये क्यों चाहती है कि माताएं बच्चों के साथ अधिक समय तक खेलें’, या कोई दूसरा कारण है जिससे पिता माताओं की तुलना में अधिक खुश रहते हैं। कैथरीन ने इन्हें बताया कि ये रिपोर्ट तीन तरह के अध्ययन के आधार पर तैयार की गई है जिसके लिए बड़े पैमाने पर आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। पहले दो अध्ययन में पाया गया कि माता-पिता आमतौर पर बच्चों के लिए क्या सोचते हैं। पिता मां की तुलना में बच्चों को लेकर अधिक गंभीर रहते हैं। भले ही वे किसी तनाव या परेशानी से क्यों न गुजर रहे हों। तीसरी रिपोर्ट में ये जानने की कोशिश की गई कि माता-पिता बच्चों के लिए अपने स्तर पर सबकुछ बेहतर करते हैं और उनके मन में क्या चलता है? जब वे बच्चों से बात करते हैं तो उन्हें कैसा महसूस होता है।

जब कैथरीन ने बताई रिपोर्ट की कहानी

कैथरीन ने अपनी रिपोर्ट के माध्यम से बताया है कि जो लोग अपने बच्चों से बात करते हैं। उनके बारे में जानते हैं और उनके साथ खेलते हैं और बराबर समय देते हैं वे लोग अधिक खुश रहते हैं और इसमें बाजी ‘पिता’ ने मारी। शोध में जब ये पता चला कि पिता बच्चे की देखभाल को लेकर अधिक सक्रिय होते हैं तो वह नाटकीय लगा, लेकिन हकीकत यही थी कि पिता दिनभर कुछ भी करें पर जो खुशी उन्हें बच्चे के साथ समय बिताने और उसकी देखभाल में मिलती है उसकी कोई तुलना नहीं है। जबकि मां बच्चों की देखभाल को लेकर उतनी खुश नहीं दिखीं जितना वे दूसरे तरह के काम को करने पर खुश होती हैं।

देश में भी बच्चों को लेकर पिता चिंतित

अमरीका के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर क्रेक गारफिल्ड ने भारत को लेकर एक स्टडी में पाया कि प्रसव के बाद जिन बच्चों को आइसीयू या एनआइसीयू में रखा जाता है तो सबसे अधिक तनाव में बच्चे का पिता होता है। इस दौरान पिता के शरीर में तनाव पैदा करने वाले हॉर्मोन का स्तर अधिक रहता है, जब तक बच्चा अस्पताल से डिस्चार्ज न हो जाए। यह रिपोर्ट उन लोगों को लेकर तैयार की गई थी जिनके बच्चे एक से 14 दिन तक आइसीयू में रहे। मुंबई की एक संस्था ने 4800 पुरुषों पर शोध में पाया कि 70 फीसदी पिता बच्चों का पूरा खयाल रखते हैं जबकि 65 फीसदी पिता दो घंटे से अधिक समय बच्चों के साथ गुजारते हैं। अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन की डॉ. स्वाति पोपट कहती हैं कि इससे बच्चों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और बेहतर विकास होता है।

खेलने से मिलती है सकारात्मक ऊर्जा

नेलसन बताते हैं कि खेल से भावनात्मक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इससे बच्चे के साथ जुड़ाव गहरा होता है और व्यक्ति अच्छा महसूस करता है। ऐसे में जो मां बच्चों के साथ खेलती नहीं हैं वे एक बार ऐसा करके देखें। उन्हें अच्छा महसूस होगा और ज्यादा खुश भी रहेंगी। इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों के साथ खेलने को बोझ न समझें। थोड़ा वक्त निकालेंगे तो आपके साथ बच्चे की भी जिंदगी बदल जाएगी क्योंकि खुशी ही जीवन की सफलता और सेहत का राज है। खेलने का मतलब सिर्फ गेम्स नहीं होता है। इसमें बच्चे के साथ कविता पढऩा और गाना गाना या बच्चे के पैरों में गुदगुदी लगाना भी आता है। इससे आप और आपके बच्चे का जीवन औरों की तुलना में बेहतर होगा।

वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो