ठंडी हवाओं से बढ़ा संक्रमण
हाल ही जियोहैल्थ (Geo Health) में प्रकाशित एक शोध में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बेहद खराब जलवायु (Odd Influx of Climate) के कारण उस समय यह महामारी इतनी घातक बन गई। शोध के प्रमुख वैज्ञानिक हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के जलवायु विशेषज्ञ (Climate Scietist) अलेक्जेंडर मोर और उनके सहयोगियों ने आल्प्स पर्वत मालाओं (Alps Mountain) और दूसरे जलवायु साक्ष्यों का अध्ययन कर अनुमान लगाया कि 1918 से 1919 के बीच यूरोप में असामान्य ठंडी हवाओं (abnormal influx of cold air into Europe) ने पूरे महाद्वीप को अपनी चपेट में ले लिया था। जिसके चलते प्रथम विश्व युद्ध में निमोनिया और कड़ाके की ठंड से मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ।
कड़ाके की ठंड, मूसलाधार बारिश
यही खराब जलवायु पूरे यूरोप और दुनिया के अन्य देशों में इन्फ्लूएंजा महामारी के तेजी से प्रसार का कारण भी बनी। भयानक शीतलहर के असामान्य प्रवाह के कारण पूरे यूरोप में तापमान तेजी से नीचे गिर गया और युद्ध के दौरान जमकर बारिश हुई। वैज्ञानिक इसका कारण विश्व युद्ध के दौरान उत्पन्न धूल और विस्फोटकों से उत्पन्न धुंए को माना जिसने स्थानीय मौसम को प्रभावित कर संघनन (Condensation) प्रक्रिया को बढ़ा दिया जिससे वर्षा के हालात बने।
पक्षी प्रवास न होने से बढ़ी मुसीबत
अध्ययन में कहा गया कि इस प्रतिकूल जलवायु ने पक्षियों के प्रवास (Bird Migration) को भी बदल कर रख दिया था। एच1एन1 इन्फ्लूएंजा महामारी के मुख्य संवाहक मलार्ड बतख (Mallard Ducks, the main carriers of H1N1), खराब मौसम के कारण पश्चिमी यूरोप से रूस की ओर पलायन करने की बजाय वहीं रुके रहे। इन बत्तखों ने संभवत: पानी को संक्रमित (Water Infected by Mallard Ducks) कर दिया था जिससे वायरस इंसानों तक तेजी से पहुंच गया। संक्रमण के लिए अनुकूल हालात पाकर वायरस म्यूटेंट (Mutent of Virus) और ज्यादा घातक हो गया। निमोनिया, हाइपोथर्मिया और अन्य संक्रमण के कारण मरने वालों की तादाद तेजी से बढऩे लगी। शोधकर्ताओं ने चेतावनी देते हुए कहा कि उनका अध्ययन एक बानगी है कि मानव के कारण हो रहा जलवायु परिवर्तन भविष्य में कोरोना महामारियों जैसी आपदाओं में कैसे योगदान दे सकता है।