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गर्मी की ये फसल बनी किसानों के लिए आय की ‘संजीवनी’, 7500 तक मिल रहे दाम

किसानों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बनी ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल...

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सीहोर. बुदनी, नसरुल्लागंज क्षेत्र के किसानों के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग अतिरिक्त आय का जरिया बन गई है। यह संभव हुआ है मां नर्मदा की कृपा से। पानी पर्याप्त होने के कारण यहां का किसान साल में तीन फसल ले रहा है। जिले में मूंग का रकबा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। कृषि विभाग ने साल 2022-23 में ग्रीष्मकालीन मूंग का रकबा 75 हजार हेक्टयर रखा था, जिसमें से करीब 60 हजार हेक्टेयर में बोवनी की गई है। राजस्व विभाग इसकी गिरदावरी भी करा रहा है। सीहोर जिले में यह पहला अवसर है, जब ग्रीष्मकालीन मूंग की गिरदावरी हो रही है।

गर्मी की मूंग से किसान कमा रहा मुनाफा
पिछले साल के अनुभव को लेकर कृषि और राजस्व विभाग गेहूं, सोयाबीन की तरह मूंग की भी गिरदावरी करा रहा है। पिछले साल सरकार ने समर्थन मूल्य पर ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी की। सीहोर जिले से सरकार ने 480 करोड़ रुपए की मूंग खरीदी। इस बार पिछले साल से मूंग का समर्थन मूल्य भी ज्यादा है। साल 2021-22 में सरकार ने 7196 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से मूंग खरीदी की, इस बार 7275 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य तय किया गया है। समर्थन मूल्य के अलावा भी किसान बाजार में मूंग बेचते हैं, इससे अच्छी आय हो रही है, किसान ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं ।

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एमएसपी रेट 7275 रुपए निर्धारित
सरकार ने इस बार मूंग का एमएसपी रेट 7275 रुपए निर्धारित किया है। हालांकि इस साल समर्थन केंद्र पर मूंग खरीदी को लेकर कोई दिशा निर्देश नहीं आया है, लेकिन कृषि उपज मंडियों में मूंग अच्छे भाव में बिक रहा है। अभी मंडियों में मूंग की आवक कम हो रही है, लेकिन जून में तेजी से बढ़ेगी। सीहोर, आष्टा और इछावर विकासखंड में भी पिछले साल से किसान मूंग की खेती करने लगे हैं। कृषि विभाग शत प्रतिशत बोवनी का दावा कर रहा है। साल 2019 में सीहोर जिले में मूंग का रकबा 39 हजार हेक्टेयर था, जो इस साल बढ़कर 75 हजार हेक्टेयर हो गया है। नर्मदा क्षेत्र के बुदनी, नसरुल्लागंज, रेहटी में सबसे अधिक करीब 65 हजार रकबा है, जबकि शेष 10 हजार रकबा अन्य जगह का है।

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एक एकड़ में 10 हजार का खर्च
कृषि विभाग के डीडीए रामशंकर जाट ने बताया कि मूंग की खेती बहुत कम समय की रहती है। कोई किसान मूंग की खेती करता है तो एक एकड़ पर 10 हजार रुपए का मात्र खर्चा आता है। बोवनी के समय ही 8 से 12 किलो बीज में काम हो जाता है। बोवनी बाद कीटनाशक दवा आदि का छिड़काव और तीन से चार बार सिंचाई करना पड़ती है। गर्मी के मौसम में जिन किसानों के पास पर्याप्त पानी के इंतजाम हैं, वह खरीफ और रबी के साथ तीसरी फसल में मूंग की पैदावार लेता है। यह फसल बोवनी के बाद 60 से 65 दिन में पककर तैयार हो जाती है, अभी 15 से 25 दिन की हो गई है। अधिकतम उत्पादन 15 क्विंटल तक होता है।

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