
हाथी में होती हैं इंसानों से ज्यादा खूबियां, 3 घंटे सोता है और 16 घंटे खाता है खाना
शुभम सिंह बघेल
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में पांच साल पहले आए जंगली हाथियों ने वापसी नहीं की है। जंगली हाथियों का कुनबा बढ़ता गया और अब 50 की संख्या पार हो गई है। झारखंड छत्तीसगढ़ के रास्ते पहले भी बांधवगढ़ में जंगली हाथी आते थे, लेकिन वापसी कर जाते थे। इस बार भोजन और अच्छे रहवास की वजह से इन्होंने वापसी नहीं की है। कई बार हाथी मानव द्वंद्व की स्थिति बनती है, लेकिन अब दोनों ने एक दूसरे के साथ रहना सीख लिया है। इधर, बांधवगढ़ के पालतु हाथी भी जंगली हाथियों के साथ रहना सीख गए हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं, हाथी दो साल में इंसानों की एक्टिविटी समझ जाता है। इंसानों की आदतों को भी सीखने की कोशिश करता है। बांधगवगढ़ क्षेत्र में 50 से ज्यादा जंगली हाथियों ने अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है। वहीं, बांधवगढ़ के भी 18-20 पालतु हाथी हैं।
-हाथ के इशारे भी समझते हैं, अंकुश को कान के पास लगाकर कंट्रोल करते हैं।
-पार्क के हाथियों की परवरिश में भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
-महावत इन्हें अपने परिवार की तरह रखते हैं।
बांधवगढ़ के महावत नीलम सिंह बताते हैं कि, 3 से 5 साल की उम्र में इनकी ट्रेनिंग शुरू हो जाती है। शुरुआत की ट्रेनिंग मां के सहयोग से ही दी जाती है। रोज नहलाते हैं, और फिर जंगल से वापस भी लाते हैं। हाथियों को कंट्रोल करने के लिए अंकुश रहता है। अंकुश कोड़े की तरह रहते हैं। कभी हाथी बेलगाम हो जाते हैं तो अंकुश को कान के पास लगाकर कंट्रोल करना पड़ता है। कई बार हाथ के इशारों से भी हाथी समझते हैं। जंगल की ओर जाते हैं तो बेड़ियां खोल दी जाती हैं। हमारी राह देख हाथी साथ-साथ चलते हैं। ये सिर्फ साथ में रहने वाले महावतों के साथ ऐसे रहते हैं, दूसरे पर अटैक भी कर देते हैं।
-हाथी अपने दूसरे साथियों को धुर्र-धुर्र करके इंडिगेट करता है।
-पूछ खड़ी करने पर अटैक की स्थिति में आ जाता है।
-खास शब्द समझते हैं हाथी, गाड़ी की तरह कंट्रोल में रहते हैं।
नीलम सिंह के अनुसार, हाथियों को ट्रेनिंग देने के लिए विशेष शब्दों का प्रयोग किया जाता है। ये भाषा हाथी और महावत ही समझ पाता है। ये भाषा महावतों की पीढ़ियों से चली आ रही है। समबैठ बोलने पर बांधने की स्थिति में बैठ जाते हैं। मल कहने पर हाथी खड़ा हो जाता है और चलने लगता है। कई बार गंदा हो जाता है और नहलाना पड़ता है तो त्रे कहते हैं, इससे हाथी पूरी तरह नदी में लेट जाता है। बाद में धत कहने पर खड़ा हो जाता है। महावत बताते हैं कि, वाहन की तरह इनका भी कंट्रोल रहता है।
रेस्क्यू के वक्त हम मचिया में ऊपर बैठ जाते हैं, लेफ्ट ओर मुड़ना है तो राइट पैर से सिर पर इशारा करते हैं। राइट मुड़ना है तो लेफ्ट पैर से हाथी के सिर पर इशारा करते हैं। पैर की अंगुली से दबा देने पर ब्रेक लग जाता है और हाथी रुक जाता है। कई बार बाघ और अन्य वन्यजीवों का रेस्क्यू करते वक्त गन और निशाना लगाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में हाथी पूरा सहयोग करता है कि, निशाना न चूके। हाथी के ऊपर बैठकर दोनों पैर से दबा देते हैं, ऐसे में हाथी हिलता नहीं है और निशाना सही लगता है।
-भोजन: 10 किलो आटे से बनती हैं 10 रोटी
-नमक नहीं मिला तो खाते हैं गिली मिट्टी
बांधवगढ़ के हाथी रोटी और गुड़ खाते हैं। पन्ना के हाथियों का भोजन और भी अलग तरह से खास है। महावत बताते हैं कि, एक हाथी के लिए 10 किलो आटे से एक पाव नमक मिलाकर रोटियां बनाई जाती है। इसे गुड़ के साथ खिलाया जाता है। कई बार अस्वस्थ होने पर हाथी खाना छोड़ देते हैं। कई बार गिली मिट्टी खाते हैं, जब भोजन में ज्यादा नमक चाहिए होता है। इसी तरह जब पेट में कीड़े होते हैं तो सूखी मिट्टी खाने लगते हैं।
बांधवगढ़ में तूफान और अनारकली की कहानियां हमेशा याद रखी जाती हैं। बताया जाता है कि, कई बार बाघ और अन्य वन्यजीवों ने जंगल में महावतों पर हमले की कोशिश भी की थी, लेकिन तूफान और अनारकली ने सामने आकर उनकी जान बचा ली थी।
-दो किमी में साथी की तलाश
-मिट्टी व पानी भी पसंद
-पर्यावरण में भी भूमिका
बांधवगढ़ में जंगली हाथियों का समूह गांव और जंगल के हर क्षेत्र की विशेषता को पहचानता है। पुराने हाथियों को मालुम है कि, गांव और जंगल में कब कहां और किस समय में क्या भोजन मिलेगा। धान के समय में गांव की ओर बढ़ जाते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं, इन्हें पांच कि.मी से पता चल जाता है कि, कहां पर पानी और भोजन की व्यवस्था है। इसी तरह पैरों की धमक से अपने साथियों को समझ सकता है कि, दो किमी दूर बी उनका दूसरा साथी कहां हैं। इनकी चमड़ी मोटी होने की वजह से इन्हें गर्मी ज्यादा लगती है। इस वजह से मिट्टी और पानी में खेलना भी पसंद है। ये पर्यावरण में भी भूमिका निभाते हैं।
गोबर में बीज से पौधे लग जाते हैं। बारिश में खेतों में चलने पर गड्ढे हो जाते हैं, जहां से पानी रिचार्ज होता है। पहले साथियों को सुरक्षित करता है, फिर छिपकर चकमा देता है। वर्षों से जंगली हाथियों का रेस्क्यू कर रहे जिला मानसेवा वन्यप्राणी अभिरक्षक पुष्पेन्द्र द्विवेदी बताते हैं कि, पिछले कई दिनों से जंगली हाथियों का झुंड अनूपपुर में मूवमेंट कर रहा है। इसमें एक टस्कर त्रिदेव हाथी है जो काफी समझदार है। ये पहले गु्रप को सुरक्षित करता है, जब तक साथी नहीं भाग जाते, तबतक अपने स्थान पर खड़ा रहता है। फिर छिपकर खुद को सुरक्षित करता है।
ये भी विशेष
- हाथी दो साल में इंसानों की एक्टिविटी समझ जाता है।
- हाथी छोटे हाथी को सिखाता है, वे ही दीवार तोड़ घुसता है और अनाज व अन्य सामान लेकर आता है।
- ट्रेन की पटरियों में पैर रखकर ट्रेन का मूवमेंट देखता है।
- हाथियों के झुंड की सबसे मादा बुजुर्ग हाथी नेतृत्व करती हैं और अन्य बच्चों की भी देखरेख करती है।
- हाथी 12 से 16 घण्टे खाता है, फिर बेहद कम समय रुक रुककर सोता है।
- हाथी हमले कम दिखावा ज्यादा करता है। 100 में 90 बार चार्ज का दिखावा करता है।
- हाथी साफ पानी पीता है, जरूरत पडऩे पर सोर्स भी बनाता है।
- सुबह 4 से 7 सोता है, भगाने के लिए इस समय डिस्टर्ब करते हैं, जिससे खुद चला जाता है।
Published on:
12 Aug 2023 04:12 pm
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