देश के मथुरा में कंस वधोत्सव की परंपरा का निर्वहन प्राचीन समय से किया जाता रहा है, वहीं मथुरा के बाद शाजापुर में करीब 267 वर्षों से यह आयोजन हो रहा है। शाजापुर में भव्य पैमाने पर यह आयोजन किया जाता है। कंस वधोत्सव समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार एवं समिति पदाधिकारी अजय उदासी ने बताया कि कंस के पुतले को कंस चौराहे पर बैठा दिया गया है। इस बार कार्तिक माह की दशमी 14 नवंबर को रहेगी, इसी दिन कंस वध किया जाएगा।
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समिति संयोजक भावसार ने बताया कि कंस वधोत्सव का कार्यक्रम दशमी पर होता है। दशमी की शाम को देव व दानव की वेषभूषा में कलाकार तैयार होते हैं। इसके पश्चात देवव दानवों का जुलूस निकलता है। यह जुलूस बालवीर हनुमान मंदिर से धानमंडी चौराहा, किलारोड, छोटा चौक होते हुए आजाद चौक में पहुंचता है। यहां पर रात 1 बजे तक देव व दानवों में चुटीले संवादों का वाक युद्ध होता है।
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पारंपरिक वेषभूषा में सजे धजे कलाकार देर रात तक वाक युद्ध करते हैं। इस दौरान लोग वाक युद्ध का काफी लुत्फ लेते हैं। रात 11 बजे कलाकार आजाद चौक से सोमवारिया बाजार में कंस चौराहा पर पहुंचते हैं। कंस चौराहा पर भी वाकयुद्ध होता है। इसके पश्चात रात 12 बजते ही कंस वध किया जाता है। पारंपरिक वेषभूषा में श्रीकृष्ण बने कलाकार द्वारा कंस के पुतले का वध किया जाकर उसे सिंहासन से नीचे गिराया जाता है।
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यहां पर पहले से ही हाथ में लाठी और डंडे लिए हुए तैयार हक समाजजन लाठियों से पीटते हुए कंस के पुतले को घसीटते हुए ले जाते हैं। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष कोरोना संकट को देखते हुए आयोजन को सीमित कर दिया गया था। कुछ देर के लिए ही कंस चौराहा पर सांकेतिक वाकयुद्ध हुआ था। शोभायात्रा का आयोजन भी नहीं किया गया था। इस बार शासन प्रशासन के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही समिति द्वारा आयोजन की आगामी रूपरेखा तैयार की जाएगी।
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कंस के सीने पर लिखा “मैं”
कंस का इस बार जो पुतला तैयार किया गया है उसके एक हाथ में तलवार तो एक हाथ में ढाल है। वहीं उसके सीने पर एक तख्ती लगी हुई है, जिस पर ‘में’ लिखा हुआ है। उल्लेखनीय है कि कंस अत्याचारी व घमंडी था। वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसके स्वभाव में ही था। इसी मैं के कारण भगवान ने उसका वध किया था। कंस के अहंकार को दर्शाते हुए इस बार उसके पुतले पर मैं लिखा गया है।