सीकर में इसलिए हार गई कांग्रेस
-महरिया की खुद की टीम आगे रही और कांग्रेस टीम पीछे। ऐसे में कांग्रेस के कार्यकर्ता महरिया के साथ मन नहीं जुड़ पाए।
-जाट बहुल सीकर जिले में जाटों ने महरिया का विरोध किया।
-भाजपा छोडकऱ कांग्रेस में शामिल हुए महरिया को कांग्रेस ने मन से नहीं स्वीकारा।
-वाहिद चौहन जो हमेशा कांग्रेस के सामने रहे आखरी समय पर साथ लेने से कांग्रेस में नाराजगी रही।
-लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी की रैली से भी कांग्रेस के वोटर्स पर असर पड़ा।
-कहा जा सकता है कि यही कारण है कि राज्य की सबसे मजबूत सीट मानी जा रही सीकर सीट को भी कांग्रेस ने खो दिया।
तीन बार रहे सांसद
साल 1996 में भाजपा के सुभाष महरिया को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1998, 1999 व 2004 के चुनाव में महरिया ने जीत दर्ज की। 1952 से हुए 16 लोकसभा चुनाव में से 7 बार कांग्रेस, 4 बार भाजपा ने जीत दर्ज की। सीकर में हमेशा कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है, लेकिन पिछले चुनाव में चली मोदी लहर में यहां भी कांग्रेस का गढ़ ढह गया और भाजपा के उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती ने जीत दर्ज की।