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बर्ड पार्क : गिनती के परिंदे, पिंजरों में चूहों की धमाचौकड़ी, जान सांसत में

चारों ओर कबाड़, कृत्रिम पेड़ों में बिष्ठा, पिंजरों में भी अंधेरा, जमीन में चूहों के बिल, 11.49 करोड़ का बर्ड पार्क नहीं जीत पाया पर्यटकों का दिल, लौटते हैं निराश, पक्षियों की संख्या कम, कागजों में ही दिखा रखे हैं विभिन्न प्रजाति के पक्षी

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बर्ड पार्क

उदयपुर. शहर के हृदयस्थल गुलाबबाग में तीन साल पहले पर्यटकों को लुभाने के लिए बर्ड पार्क में भारी भरकम विशाल पिंजरे तो बना दिए लेकिन वहां गिनती के परिंदे होने से उनका दम घुटकर रह गया। यहां 25 रुपए का टिकट खर्च कर आने वाले हर पर्यटक अवाक रहकर बोलते हैं कि यहां कुछ भी नहीं है। हालात ऐसे हैं कि पिंजरों के चारों ओर बड़े-बड़े चूहों ने बिल खोद रखे हैं जो पक्षियों के पिंजरों तक जाते है। यानी गिनती के पक्षियों की नन्हीं जान तक तब सांसत में आ जाती है जब पक्षियों को चूहों से जान बचाने के लिए इधर-उधर भागना पड़ता है। चूहों के कारण सांप व नेवलों का भी विचरण आसपास रहता है, जो इन पक्षियों के लिए किसी भी सूरत में अनुकूल नहीं है। पिंजरों में धूप भी अपर्याप्त है।

गुलाबबाग उद्यान में कभी जन्तुआलय आबाद था। यह सज्जनगढ़, बायलोजिकल पार्क में शिफ्ट होने के बाद यहां बर्ड पार्क विकसित किया गया, लेकिन यह उस स्तर का मूर्त रूप नहीं ले सका जहां पर्यटक रुककर परिंदों को देख सके। सरकार ने भी इसे रचनात्मक पहल मानते हुए 11.49 करोड़ रुपए खर्च किए। विभाग ने वहां सात-आठ विशालकाय पिंजरे बनवा दिए। गिनती के देसी तोते, देसी मुनिया, काला मुर्गा और इक्का दुक्का विदेशी मुनिया को इन विशालकाय पिंजरों में कैद कर दिया। आलम यह है कि टिकट खरीदकर पक्षियों को देखने आने वाले पर्यटक यहां से निराश लौटते हैं।

चारों ओर कबाड़, कृत्रिम पेड़ों पर बिष्ठा

बर्ड पार्क में जगह-जगह कबाड़ के ढेर लगे है जहां नेवले और सर्प बहुतायत मात्रा में है। पिंजरों के मध्य पक्षियों के लिए लगाए कृत्रिम पेड़ भी पूरी तरह से बिष्ठा से सने हुए है। हालत ऐसे हैं कि नमी के कारण बदबू व फंगल वीरान पिंजरों से दूरी बनाए रखने का मजबूर करती है।

फैक्ट फाइल

11.49 करोड़ से बर्ड पार्क का निर्माण किया

5.11 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है गुलाबबाग

3.85 हेक्टेयर क्षेत्र में बर्ड पार्क का हुआ निर्माण

12 पक्षी प्रदर्शन कक्ष बनाए गए

44474 एक साल में यहां आए पर्यटक

957171 टिकट से हुई इनकम

पार्क में नहीं दिख रही इन पक्षियों की कहीं भी अठखेलियां

मकाऊ, काकाटू, सन कोंनुअर, सेनगल पैरेट, बैरा बैंड पैराकीट, रोक पेब्लर, किम्सन बिग, पिंक कुर्क, सेनेगल फायर फिंच, रेड चिकड़, कार्डन ब्लू, ब्लेक रम्पड वैक्स बिल, कैलिफोर्निया क्वेल, नार्थन बॉब व्हाइट, चाइनीज क्वेल, ग्रीन मुनिया आदि।

कागजों में दिखा रखे 28 प्रजाति के पक्षी और बहुत कुछ

कागजों में विभाग ने यहां पर्यटकों को 28 प्रजाति के पक्षियों के अलावा रोज रिंग पैराकीट, एलैक्जण्ड्रियल, या पेरेट, पल्म हेडड पैराकीट, मोर, बजरीघर, लव बर्ड, कोकाटेल, रोजी पेलिकन, कॉम डक, ग्रेलेग गुज, अमेरिकन पेकिन, सिल्वर फिजेंट आदि निहारने के दिखा रखा है लेकिन पार्क में ऐसा कुछ नहीं है।

इनका भारी अभाव

- पक्षियों के आवास विशाल लेकिन परिंदों की संख्या काफी कम

- पक्षी नैसर्गिक क्रियाएं नहीं कर पा रहे,कई पिंजरों में है अंधेरा

- पर्यटकों, पक्षी प्रेमियों, छात्रों, आमजन को यह पार्क नहीं दे पा रहा आनंद

वर्षपर्यंत पर्यटक आए जरुर, लेकिन लौटे मायूस

वर्ष पर्यंत इस पार्क में 44 हजार 474 पर्यटक आए। उनसे वन विभाग ने टिकट के नाम पर 9 लाख 57 हजार 171 की आय भी की, लेकिन उससे ज्यादा यहां खर्चा हो रहा है। यहां आने वाले पर्यटक एक बार आने के बाद सुविधा नहीं होने से वापस नहीं आते हैं। रिकॉर्ड पर नजर डालें तो अप्रेल से दिसम्बर 2024 तक यहां 34 हजार 516 पर्यटक आए। इस साल जनवरी से मार्च तक 9958 पर्यटक बर्ड पार्क मेंं पहुंचे, लेकिन अधिकांश पर्यटक नहीं लौटे। उन्हें न तो पक्षी दिखे और न ही बर्ड पार्क का अनुकूल वातावरण।

इनका कहना है...

बर्ड पार्क सेन्ट्रल जू ऑर्थोरिटी निर्देशन में पूरी तरह से नियमों के साथ बना है। हम शीघ्र ही इसे मॉडल बनाने के लिए सूरत में बर्ड पार्क की विजीट करेंगे। वहां किस तरह से क्या-क्या है, उसे देखकर इसे और बेहतरीन करने का प्रयास करेंगे।

कपिल कुमार, सहायक वन सरंक्षक

बर्ड पार्क पूरी तरह से नियमों के तहत बना है और इसमें अच्छे व जानकार लोगों को परामर्श रहा है। पार्क में मैनेजमेंट की कई तरह की जिम्मेदारी है इसमें पक्षियों की उचित व्यवस्था, चूहों का नियंत्रण, साफ सफाई आदि।, इसे सही करना चाहिए।

सतीश शर्मा, पक्षी विशेषज्ञ

बर्ड पार्क में गिनती के पक्षी है वो भी बड़े पिंजरों में कैद है। पर्यटकों अधिकांश दिखते भी नहीं है। इन पिंजरों के बाहर चूहों ने बड़े-बड़े गड्ढे कर रखे हैं। रखरखाव सही नहीं होने से पर्यटक भी यहां आने के बाद वापस नहीं आते।

देवेन्द्र श्रीमाली, पर्यावरणविद