
उत्तराखंड की राह पर उदयपुर और माउंटआबू (फोटो- पत्रिका)
उदयपुर: पानी का बेकाबू सैलाब, टूटी सड़कें, बहते मकान, बेघर होते लोग…ये तस्वीर सिर्फ उत्तराखंड, हिमाचल या कश्मीर की नहीं हैं। राजस्थान के माउंटआबू और झीलों की नगरी उदयपुर भी उसी खतरनाक मोड़ पर खड़े हैं। उदयपुर की पहचान उसकी झीलें और पहाड़ हैं। लेकिन पेराफेरी के कैचमेंट एरिया में रिसॉर्ट और होटलों की बाढ़ ने जल निकासी का प्राकृतिक ढांचा नष्ट कर दिया है।
वहीं, दूसरी ओर माउंटआबू के नालों पर कंक्रीट की दीवारें खड़ी कर दी गई हैं। गुरुशिखर जैसे संवेदनशील इलाकों में भी निर्माण ने संतुलन बिगाड़ दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि दोनों स्थानों पर उत्तरकाशी जैसे हालात बन रहे हैं। जब पहाड़ अपनी सांस खो देते हैं, तो बारिश महाप्रलय में बदल जाती है। ऐसे में सवाल यह है कि या पर्यटन और कमाई की अंधी दौड़ हमें वही भयावह त्रासदी दिखाएगी, जो उत्तराखंड में देखी गई?
उदयपुर शहर और उसके आसपास के पेराफेरी क्षेत्र में भूमाफिया ने झील, तालाब, पहाड़ों को पूरी तरह छलनी करते हुए यहां पर प्राकृतिक तंत्र बुरी तरह से प्रभावित कर दिया। उदयपुर अब एक भयावह बदलाव की ओर बढ़ रहा है। झीलों और पहाड़ों की गोद में बसा यह शहर भूमाफिया की लालसा का शिकार बनता जा रहा है। रघुनाथपुरा से लेकर पिंडवाड़ा हाइवे तक बुलडोजर की गूंज ने प्रकृति की शांति को चीर दिया है।
रघुनाथपुरा, अंबेरी, बडग़ांव, कैलाशपुरी, नाई, सीसारमा, सरे, रामा, झिंडोली, नाई, बुझड़ा, कोडियात, मोरवानिया, उमरड़ा, डाकनकोटड़ा और लकड़वास जैसे पहाड़ी इलाकों में पहाड़ों को समतल कर भूखंडों की प्लानिंग की जा रही है। खातेदारी की आड़ में पंचायतों ने आवासीय स्वीकृतियां दे दीं।
मदार, कदमाल और रूपसागर जैसे जलस्रोतों के कैचमेंट क्षेत्र में फॉर्म हाउस और रिसोर्ट खड़े कर दिए गए हैं। नतीजा झीलों तक पानी पहुंचाने वाले प्राकृतिक रास्ते बंद हो गए हैं। मानसून में पानी रुकता है, फिर अचानक बहता है, जिससे आपदा का खतरा कई गुना बढ़ गया है। जिम्मेदार विभाग इस खतरे की अनदेखी कर रहे हैं।
रघुनाथपुरा में तो पहाड़ को बीच से काटकर तलहटी में कॉलोनी बसा दी गई है। यह सिर्फ निर्माण नहीं, बल्कि एक पूरे इकोसिस्टम की हत्या है। जब यहां बसावट हो रही थी, तब जिम्मदारों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
उत्तराखंड की बाढ़ ने देश को चेताया था कि प्रकृति से छेड़छाड़ की कीमत बहुत भारी होती है। लेकिन लगता है माउंटआबू ने उस चेतावनी को अनसुना कर दिया है। राजस्थान का यह एकमात्र हिल स्टेशन, जो कभी सुकून और शांति का प्रतीक था, अब यह अवैध निर्माणों की बाढ़ में डूबता जा रहा है।
माउंटआबू को इको सेंसिटिव जोन घोषित करते हुए हाईकोर्ट और एनजीटी ने 2009 में नए निर्माणों पर पूर्ण रोक लगाई थी। लेकिन रसूख और लालच के आगे ये आदेश दम तोड़ते दिख रहे हैं। हेटमजी, माच गांव, ओरिया और गुरुशिखर जैसे इलाकों में बरसाती नालों के ऊपर ही निर्माण हो रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे उत्तरकाशी में बाढ़ से पहले हुआ था।
पुराने जर्जर घरों की मरम्मत के लिए बनी सरकारी कमेटी का काम था टोकन जारी करना, लेकिन मिलीभगत ने इसे भ्रष्टाचार का टूल बना दिया। मरम्मत की आड़ में बहुमंजिला होटल तक खड़े कर दिए गए।
पिछले तीन वर्षों में माउंटआबू में अवैध निर्माणों की बाढ़ आ गई है, जिस तरह उत्तराखंड में बाढ़ ने जनजीवन को तबाह किया, उसी तरह माउंटआबू भी एक टिक-टिक करता टाइम बम बनता जा रहा है।
पारिस्थितिकी तंत्र में आ रहे बदलाव से माउंटआबू में भूकंपीय घटनाएं बढ़ रही हैं। हालांकि, अभी तक तेज भूकंप नहीं आया, लेकिन गत दो सालों में करीब 12 बार भूकंप के झटके महसूस हो चुके हैं।
-22 किमी लंबा और 9 किमी चौड़ा एक चट्टानी पठार है आबू पर्वत
-1,120 मीटर (4,003 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है माउंटआबू
-290 वर्ग किमी क्षेत्र में है माउंटआबू अभयारण्य
Published on:
25 Aug 2025 10:20 am
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