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mahakal daily darshan : यहां करें महाकाल के आज के दर्शन

आप भी करें महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन होने वाली आरतीयों और अनूठे शृंगारों के दर्शन।

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उज्जैन. धर्म की राजधानी कहलाने वाले इस शहर के राजा हैं भगवान महाकाल। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी भगवान महाकालेश्वर का मंदिर करीब 5 हजार साल पुराना है। यहां प्रतिदिन कभी भांग तो कभी चंदन से अनूठा शृंगार किया जाता है। दिनभर में पांच आरतीयां होती हैं। अनूठे व आकर्षक शृंगार में भूतभावन बाबा महाकाल अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। हर दिन यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। विशेष पर्व के समय यहां की रंगत देखते ही बनती है।

सबसे पहले होती है भस्म आरती
राजाधिराज भगवान महाकालेश्वर के दरबार में दिन की शुरुआत तड़के 4 बजे से होती है। भौर की प्रथम किरण फूटने से पहले बाबा भस्मी से स्नान करते हैं। प्राचीन समय में श्मशान की राख लाई जाती थी, जिससे बाबा की भस्म आरती होती थी, लेकिन समय के साथ-साथ इसमें बदलाव हुआ, अब गौशाला में बंधी हुई गायों के गोबर से बने हुए कंडों की राख से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती बाकी अन्य आरतीयों में सबसे प्रसिद्ध और अलग है। इस आरती के दर्शन के लिए भक्त हर समय लालायित रहते हैं। कहा जाता है, कि हर व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक बार बाबा महाकाल की भस्म आरती के दर्शन अवश्य करने चाहिए। यह आरती लगभग दो से ढाई घंटे चलती है। आरती के दौरान एक क्षण ऐसा भी आता है, जब महिला दर्शनार्थियों से घूंघट निकालने का आग्रह पंडे-पुजारियों द्वारा किया जाता है। यह इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उस समय बाबा महाकाल निर्वस्त्र स्वरूप में होते हैं, जिसे महिलाएं नहीं देखती हैं। भव्य शृंगारित प्रतिमा की जब भस्म आरती उतारी जाती है, तब कुछ देर के लिए लाइटें बंद की जाती हैं। सिर्फ दीपकों की टिमटिमाती हुई लौ में जब बाबा दर्शन देते हैं, वह क्षण अतिमनभावन होता है। भक्त भी करतल ध्वनि के साथ बाबा की इस आरती में झूम उठते हैं।

दूसरी आरती प्रात:कालीन के नाम से प्रसिद्ध है
बाबा महाकालेश्वर की दूसरी आरती प्रात: 7 बजे होती है। इस आरती में बाबा का चंदन, पुष्प और बिल्व पत्रों से शृंगारित कर आरती उतारी जाती है। इसमें बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित होते हैं। प्रात:कालीन आरती के दौरान शंख-झालर और डमरुओं की गूंज होती है।

तीसरी आरती में लगता है बाल भोग
बाबा की तीसरी आरती सुबह 10.30 बजे होती है। यह आरती बाल भोग आरती के रूप में की जाती है। इसमें भगवान को बड़े जतन से भोजन परोसा जाता है। यह भोजन मंदिर प्रांगण में मौजूद महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा हर दिन तैयार किया जाता है। भोजन की थाली वहीं से सजकर बाबा के समक्ष आती है। कहा जाता है कि इस भोजन को अखाड़े से जुड़े लोग ही ग्रहण कर सकते हैं, बाकी अन्य दूसरा व्यक्ति नहीं। क्योंकि शिव का निर्माल्य खाने का अधिकार सिर्फ साधु को ही होता है। इसे पंडे-पुजारी नहीं खाते हैं।

चौथी संध्याकालीन आरती में भांग शृंगार
बाबा महाकाल की चौथी आरती संध्याकालीन आरती के नाम से प्रसिद्ध है। इस आरती से पहले बाबा को ड्रायफ्रूट्स और भांग से शृंगारित किया जाता है। भांग शृंगार में अलग-अलग स्वरूप सजाए जाते हैं। शृंगार में करीब 5 किलो भांग और 2 किलो ड्रायफ्रूट का उपयोग होता है।

पांचवीं शयन आरती
इस आरती के बाद बाबा शयन करते हैं। इसलिए इसे शयन आरती कहते हैं। शयन आरती में मशाल जलाई जाती है। जितना महत्व सुबह 4 बजे होने वाली भस्म आरती का है, उतना ही भव्य स्वरूप शयन आरती का भी रहता है। इस महाआरती में भी बड़ी संख्या में भक्तगण शामिल होते हैं।

शिवरात्रि पर होती है दिन में भस्म आरती
वर्ष में एक बार ही ऐसा अवसर आता है, जब तड़के 4 बजे होने वाली भस्म आरती दोपहर 12 बजे होती है, यह दिन होता है शिवरात्रि का। जी हां, इस दिन बाबा को सवा क्विंटल फूलों का सेहरा या पुष्प मुकुट चढ़ता है। इसकी तैयारी रात से ही शुरू हो जाती है। यही वजह है कि सुबह की भस्म आरती अगले दिन सेहरा उतरने के बाद की जाती है।

महाकाल से ही आरंभ होते हैं हर त्योहार
इस शहर में जितने भी तीज-त्योहार या पर्व होते हैं, वे बाबा महाकाल मंदिर में सर्वप्रथम मनाए जाते हैं, इसके बाद ही शहर के अन्य मंदिरों में उत्सवों को मनाने की शुरुआत होती है। दीपावली, मकर संक्रांति, रक्षाबंधन, होली या अन्य कोई त्योहार हो, सबसे पहले महाकाल मंदिर में ही मनाया जाता है।

सावन में उमड़ता भक्तों का सैलाब
सावन भादौ मास भगवान शिव के अतिप्रिय है। चार माह तक भगवान विष्णु अपना कार्यभार शिव के हाथों सौंपकर शयन करने जाते हैं। यही वजह है कि इन चार माहों में भगवान शिव के भक्त उनकी भक्ति में लीन रहते हैं। सावन में भक्तों का सैलाब यहां उमड़ता है। धार्मिक नगरी में गांव-गांव से भक्त पहुंचते हैं। इस नगरी में सभी धर्म-संप्रदाय के लोग सौहाद्र्र के साथ रहते हैं। सावन में बड़ी संख्या में आने वाले कावडिय़ों और सिर पर कलश धारण कर नगर में आने वाली महिलाओं का सभीजन मिलकर स्वागत करते हैं।

कोटितीर्थ कुंड की ये है महिमा
अकेले महाकाल मंदिर में ही करीब 40 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं। इनके दर्शन के लिए भी श्रद्धालु रोज यहां पहुंचते हैं। मंदिर में ही कोटितीर्थ कुंड बना हुआ है, जो काफी गहरा है। बताया जाता है कि जब भगवान श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक होने वाला था, तो महर्षि में पवित्र तीर्थ स्थलों का जल लाने को कहा, तब हनुमानजी उज्जैन भी आए थे, और इस कुंड का जल लेकर गए थे।

प्रतिदिन हजारों लोग खाते हैं नि:शुल्क खाना
महाकाल मंदिर में प्रतिदिन हजारों लोग नि:शुल्क भोजन करते हैं। मंदिर प्रबंध समिति की ओर से यहां अन्न क्षेत्र चलाया जाता है। दूर-दराज से आने वाले भक्त पहले बाबा महाकालेश्वर का दर्शन लाभ लेते हैं, इसके बाद वे अन्नक्षेत्र की रसीद प्राप्त कर भोजन का आनंद लेते हैं।

मरीजों और दिव्यांगों के लिए ये है व्यवस्था
महाकाल पहुंचने वाले दिव्यांगों और बुजुर्गों के लिए मंदिर के मुख्य गेट पर ही ट्राइसिकल की नि:शुल्क व्यवस्था है। इसी तरह यहां एंबुलेंस और मरीजों के लिए इमरजेंसी डिस्पेंसरी सर्वसुविधायुक्त छोटा अस्पताल है, जहां नियमित रूप से चिकित्सक मौजूद रहते हैं। इसके अलावा नि:शुल्क शव वाहन भी मंदिर समिति द्वारा चलाया जाता है।

उज्जैन में इन प्रसिद्ध मंदिरों के भी करें दर्शन
बाहर से आने वाले दर्शनार्थी और पर्यटक उज्जैन आकर सिर्फ महाकाल दर्शन तक ही सीमित न रहें, बल्कि यहां काल भैरव, पाताल भैरवी, गढ़कालिका मंदिर, चारधाम मंदिर, चिंतामण गणेश मंदिर, इस्कॉन मंदिर, कृष्ण-सुदामा की विद्यास्थली सांदीपनि आश्रम, हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर, सम्राट विक्रमादित्य का आलीशान दरबार जहां 32 पुतलियों की गाथा का उल्लेख मिलता है, भूखी माता मंदिर, भर्तृहरि गुफा, मंगलनाथ मंदिर, ऋणमुक्तेश्वर धाम आदि ऐसे अनेक प्राचीन तीर्थ स्थल हैं, जहां परिवार के साथ घूमने जाया जा सकता है।

कैसे पहुंचें उज्जैन
उज्जैन आने के लिए बस, कार या अन्य साधनों से पहुंचा जा सकता है। यहां से 60 किलोमीटर दूरी पर इंदौर है, यहां तक हवाई जहाज से आकर उज्जैन पहुंचा जा सकता है। लंबी दूरी की ट्रेनों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक बाबा के दर्शन करने आते हैं।