
सरकार की सख्ती पर भारी कुप्रथा, कुपोषण से मुक्ति दिलाने मासूम बच्चों के पेट और गले पर दागी जाती हैं गरम सलाखें
उमरिया/ एक तरफ जहां देश विकास की ऊंचाइयों को छूने की तैयारी कर रहा है। मेडिकल साइंस द्वारा लगातार की जा रही रिसर्चों के ज़रिये लगभग हर बीमारी का इलाज आज भारत में संभव है। इसी तरह बच्चों को होने वाले कुपोषण के इलाज के लिए चिकित्सकीय परामर्श के साथ साथ उचित खानपान की जरूरत होती है। वहीं, समाज में फैली कुप्रथाओं के खिलाफ कई समाज सेवी संस्थाएं और सरकार कई जागरूकता अभियान भी युद्ध स्तर पर छेड़े हुए है, बावजूद इसके कई कुप्रथाएं खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। ऐसी ही एक कुप्रथा मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में आज भी कायम है। यहां शून्य से छह साल तक के बच्चों को कुपोषण से मुक्त कराने के नाम पर लोहे की गरम सलाखों से दागा जाता है।
कलेक्टर ने दिये सख्त निर्देश
हालांकि, इसपर शासन भी सख्त है। बावजूद इसके इस कुप्रथा को रोकने में वो अब तक नाकाम है। पिछले साल दिवाली पर जिले में इससे जुड़े कई मामले सामने आये थे, जिसपर शिकंजा कसने के लिए इस बार कलेक्टर ने इलाके में धारा 144 लागू कर दी है। साथ ही, अधिकारियों और पुलिस से इसके खिलाफ सख्ती से निपटने के निर्देश भी दिये हैं। इसके अलावा, जिलेभर के सभी सरपंचों को पत्र लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की अपील भी की है।
महिला एवं बाल विकास ने छेड़ी मुहिम
अब तक शासन के अलावा इस कुप्रथा को रोकने के लिए महिला एवं बाल विकास भी चिंतित नज़र आ रहा है। क्योंकि, प्रथा के अनुसार, मासूम बच्चों के पेट, पैर और गले मे गर्म सलाख दागी जाती है। इस कुप्रथा को लेकर महिला एवं बाल विकास ने कई दस्तावेज भी तैयार कर रखें हैं। साथ ही, कई भयावह तस्वीरें भी जुटाई हैं। विभाग के मुताबिक, उसके पास इस कुप्रथा से संबंधित करीब साढ़े 6 सौ तस्वीरें हैं, जिससे साबित होता है कि, प्रशासन की सख्ती के बावजूद लोग अब भी इसपर विश्वास करते हुए अपने पहले से ही कमजोर और मासूम बच्चे की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।
कोई मानता है टोटका तो कई पुरानी परंपरा
इलाके लोगों के मुताबिक, कुपोषण का इसके अलावा कोई इलाज ही नहीं है। लोगों का मानना है कि गरम सलाखों से दागने से न बच्चे रोगमुक्त होते हैं बल्कि कमजोरी और पेट बढ़ने की समस्या से भी निजात मिलती है। कुछ लोग इसे टोटका मानते हैं, तो कुछ इसे पुरानी चली आ रही परंपरा। खास बात ये है कि, अंधविश्वास का ये खेल त्योहारों के सीजन में खासतौर पर दिवाली के सीज़न में शुभ माने जाते हैं। हालांकि, इसके पीछे किसी तरह का वैज्ञानिक लाभ नहीं है। जानकारों का मानना है कि, ये कुप्रथा सिर्फ जागरूकता के आभाव में मासूम और कमजोर बच्चों को भुगतनी पड़ रही है।
कलेक्टर ने छेड़ी कुप्रथा को जड़ से खत्म करने की मुहिम
जिला कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी कुप्रथा से जुड़े आंकड़े सामने आने के बाद हैरान रह गए। उन्होंने गंभीरता से लेते हुए कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए उन्होंने कई सख्त कदम निर्देश भी जारी कर दिये हैं, जो तत्काल ही लागू भी कर दिये गए हैं। कलेक्टर क मुताबिक, क्योंकि एक बार फिर दिवाली का समय काफी नज़दीक है। ऐसे में परंपरा के अनुसार, मासूम बच्चों के साथ हैवानियत का खेल फिर से खेला जाएगा। इसलिए ये समय किसी तरह की सख्त कार्रवाई करने के लिए सबसे बढ़िया है।
Published on:
14 Oct 2019 03:45 pm
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