
किशोरियों में एनीमिया और पोषण संबंधी चुनौतिया : क्वीन मैरी हॉस्पिटल का बड़ा अध्ययन (फोटो सोर्स : Whatsapp)
Anemia Awareness: किशोरावस्था जीवन का सबसे संवेदनशील और परिवर्तनकारी दौर माना जाता है। इसी समय भविष्य की नींव मजबूत होती है, लेकिन किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से जुड़े क्वीन मैरी हॉस्पिटल द्वारा किए गए एक व्यापक अध्ययन ने गंभीर स्थिति उजागर की है। अध्ययन से पता चला कि शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में किशोरियां एनीमिया और कुपोषण की शिकार हैं।
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एडोल्सेंट हेल्थ एंड डेवलपमेंट (CoE-AHD), क्वीन मैरी हॉस्पिटल ने यह अध्ययन विभागाध्यक्ष प्रो. अंजू अग्रवाल के संरक्षण और डॉ. सुजाता देव (नोडल ऑफिसर) व काउंसलर सौम्या सिंह के नेतृत्व में किया। इसमें 150 किशोरियों को शामिल किया गया।
अध्ययन में सामने आया कि करीब 89% किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं। इनमें से 26.6% हल्के, 42.6% मध्यम और 19.3% गंभीर एनीमिया की शिकार पाई गईं। खास बात यह रही कि यह समस्या केवल गरीब या ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी किशोरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों की लड़कियाँ भी इससे प्रभावित हैं।
प्रो. अंजू अग्रवाल बताती हैं कि समस्या की जड़ केवल गरीबी नहीं है। खानपान की आदतें और बदलती जीवनशैली इस स्थिति को और गंभीर बना रही हैं।
डॉ. सुजाता देव कहती हैं कि किशोरावस्था के दौरान पोषण की कमी से न केवल शारीरिक विकास बाधित होता है, बल्कि पढ़ाई, एकाग्रता, भविष्य की कार्यक्षमता और मातृत्व स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
अध्ययन में शामिल कई किशोरियों ने स्वीकारा कि वे थकान, चक्कर, बार-बार बीमार पड़ना और मानसिक एकाग्रता की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। कुछ ने यह भी बताया कि स्कूल और घर के भोजन की बजाय बाहर के खाने की लत लग गई है। काउंसलर सौम्या सिंह ने बताया कि अध्ययन में 12 से 18 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों को शामिल किया गया। इनमें से अधिकतर को यह तक नहीं पता था कि उनके शरीर में कितना हीमोग्लोबिन होना चाहिए।
Updated on:
28 Sept 2025 11:58 pm
Published on:
28 Sept 2025 11:56 pm
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