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Anemia Girls: किशोरियों में एनीमिया का गहराता संकट: क्वीन मैरी हॉस्पिटल का चौंकाने वाला अध्ययन

89% Teenage Girls Anemic: किशोरियों में एनीमिया और कुपोषण की समस्या अब शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में गंभीर रूप ले चुकी है। केजीएमयू से जुड़े क्वीन मैरी हॉस्पिटल के अध्ययन में सामने आया कि 89% किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं। गलत खानपान, जंक फूड की लत और पोषण की कमी इसके प्रमुख कारण पाए गए।

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लखनऊ

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Ritesh Singh

Sep 28, 2025

किशोरियों में एनीमिया और पोषण संबंधी चुनौतिया : क्वीन मैरी हॉस्पिटल का बड़ा अध्ययन    (फोटो सोर्स : Whatsapp)

किशोरियों में एनीमिया और पोषण संबंधी चुनौतिया : क्वीन मैरी हॉस्पिटल का बड़ा अध्ययन    (फोटो सोर्स : Whatsapp)

Anemia Awareness: किशोरावस्था जीवन का सबसे संवेदनशील और परिवर्तनकारी दौर माना जाता है। इसी समय भविष्य की नींव मजबूत होती है, लेकिन किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) से जुड़े क्वीन मैरी हॉस्पिटल द्वारा किए गए एक व्यापक अध्ययन ने गंभीर स्थिति उजागर की है। अध्ययन से पता चला कि शहरी और ग्रामीण, दोनों ही क्षेत्रों में किशोरियां एनीमिया और कुपोषण की शिकार हैं।

सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर एडोल्सेंट हेल्थ एंड डेवलपमेंट (CoE-AHD), क्वीन मैरी हॉस्पिटल ने यह अध्ययन विभागाध्यक्ष प्रो. अंजू अग्रवाल के संरक्षण और डॉ. सुजाता देव (नोडल ऑफिसर) व काउंसलर सौम्या सिंह के नेतृत्व में किया। इसमें 150 किशोरियों को शामिल किया गया।

चौंकाने वाले आँकड़े

अध्ययन में सामने आया कि करीब 89% किशोरियां एनीमिया से पीड़ित हैं। इनमें से 26.6% हल्के, 42.6% मध्यम और 19.3% गंभीर एनीमिया की शिकार पाई गईं। खास बात यह रही कि यह समस्या केवल गरीब या ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी किशोरियों तक सीमित नहीं है, बल्कि आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों की लड़कियाँ भी इससे प्रभावित हैं।

प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

  • केवल 26% किशोरियां ही रोज़ हरी सब्जियाँ खाती हैं।
  • मात्र 16.6% किशोरियां ही विटामिन C का सेवन करती हैं।
  • 25% किशोरियां रोज़ जंक फूड खाती हैं, जबकि 71% ने स्वीकारा कि वे कभी-कभी नियमित भोजन की जगह जंक फूड खाती हैं।
  • 52.6% ने आयरन-फोलिक एसिड (IFA) टैबलेट और 43.3% ने अल्बेंडाज़ोल का सेवन किया।
  • 74% किशोरियां एनीमिया के बारे में जागरूक थी, बावजूद इसके वे इससे बच नहीं पाईं।

कारण और चुनौतियां

प्रो. अंजू अग्रवाल बताती हैं कि समस्या की जड़ केवल गरीबी नहीं है। खानपान की आदतें और बदलती जीवनशैली इस स्थिति को और गंभीर बना रही हैं।

  • हरी सब्जियों और विटामिन C की कमी।
  • नियमित रूप से IFA और अल्बेंडाज़ोल का सेवन न करना।
  • पिज़्ज़ा, बर्गर, चिप्स जैसे पोषणहीन जंक फूड का अधिक सेवन।
  • मासिक धर्म स्वास्थ्य की अनदेखी और इससे जुड़ी अनियमितताएँ।

डॉ. सुजाता देव कहती हैं कि किशोरावस्था के दौरान पोषण की कमी से न केवल शारीरिक विकास बाधित होता है, बल्कि पढ़ाई, एकाग्रता, भविष्य की कार्यक्षमता और मातृत्व स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।

किशोरियों की परेशानी

अध्ययन में शामिल कई किशोरियों ने स्वीकारा कि वे थकान, चक्कर, बार-बार बीमार पड़ना और मानसिक एकाग्रता की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। कुछ ने यह भी बताया कि स्कूल और घर के भोजन की बजाय बाहर के खाने की लत लग गई है। काउंसलर सौम्या सिंह ने बताया कि अध्ययन में 12 से 18 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों को शामिल किया गया। इनमें से अधिकतर को यह तक नहीं पता था कि उनके शरीर में कितना हीमोग्लोबिन होना चाहिए।

आईसीएमआर मानक

  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार किशोरियों में हीमोग्लोबिन का स्तर इस प्रकार होना चाहिए:
  • नॉर्मल: 12 ग्राम/डेसीलीटर से अधिक
  • माइल्ड एनीमिया: 11–11.9 ग्राम/डेसीलीटर
  • मॉडरेट एनीमिया: 8–10.9 ग्राम/डेसीलीटर
  • सीवियर एनीमिया: 8 ग्राम/डेसीलीटर से कम
  • क्वीन मैरी के अध्ययन में गंभीर एनीमिया से पीड़ित किशोरियों की संख्या चौंकाने वाली है।

विशेषज्ञों ने कुछ ठोस कदम सुझाए हैं:

  • स्कूल और समुदाय स्तर पर पोषण शिक्षा को अनिवार्य किया जाए।
  • किशोरियों को नियमित रूप से आयरन-फोलिक एसिड और अल्बेंडाज़ोल की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
  • परिवारों को संतुलित आहार और जंक फूड से बचने का महत्व समझाया जाए।
  • मासिक धर्म स्वास्थ्य को लेकर किशोरियों को काउंसलिंग दी जाए।
  • सरकारी स्तर पर एनीमिया मुक्त भारत अभियान को और तेज किया जाए।