After Gangrape-Murder, LUCKNOW Fails Again: लखनऊ में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ बढ़ते अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे। आलमबाग में गैंगरेप और हत्या के ढाई महीने बाद एक बार फिर मासूमों के साथ दरिंदगी की घटनाएं सामने आईं। पुलिस की कार्रवाई सीमित और अस्थायी रही है। सिस्टम की नाकामी एक बार फिर उजागर हुई है।
Crime Against Women Justice For Victims: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ बढ़ती जघन्य घटनाएं न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती हैं, बल्कि सिस्टम की सुस्ती और संवेदनहीनता को भी उजागर करती हैं। आलमबाग, सरोजनीनगर, मड़ियांव, बीकेटी और मदेयगंज जैसे क्षेत्रों से लगातार सामने आ रहीं बलात्कार और हत्या की घटनाएं पुलिस की लापरवाही और सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल रही हैं। इन घटनाओं के बाद भी अफसरों और पुलिस महकमे में गंभीरता और संवेदनशीलता का अभाव दिखता है।
18 मार्च 2025 को लखनऊ के आलमबाग बस अड्डे से शुरू हुई एक युवती की दर्दनाक दास्तां ने पूरे राज्य को हिला दिया था। अयोध्या की रहने वाली युवती आलमबाग से एक आटो में सवार हुई, लेकिन वह उसकी आखिरी सवारी साबित हुई। आटो सवार दरिंदों ने उसे अगवा कर गैंगरेप किया और बाद में उसकी हत्या कर दी। इस अमानवीय वारदात के बाद शव को मलिहाबाद इलाके में फेंक दिया गया। इस जघन्य घटना के बाद जनता ने भारी आक्रोश व्यक्त किया था। पुलिस ने कुछ समय तक ऑटो चालकों के खिलाफ जांच और चेकिंग अभियान चलाया, लेकिन कुछ दिन बाद ही यह अभियान ठंडे बस्ते में चला गया।
इस दर्दनाक घटना के ढाई महीने बाद भी आलमबाग पुलिस ने कोई ठोस रणनीति नहीं अपनाई। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कोई स्थायी और मजबूत इंतजाम नहीं किए गए। आलमबाग जैसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले इलाके में अपराधियों की पकड़ मजबूत होती जा रही है, और पुलिस की पकड़ कमजोर।
आलमबाग मेट्रो स्टेशन, बस अड्डा और उससे सटी अंडरग्राउंड पार्किंग में नशेड़ियों, स्मैकियों और अराजक तत्वों का खुलेआम जमावड़ा देखा जा सकता है। देर रात यहां कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं दिखाई देती। पुलिस चौकियां पास में होते हुए भी गश्त न के बराबर होती है। महिलाओं और बच्चियों के लिए यह इलाका अब असुरक्षित हो चुका है। यह बात गंभीर चिंता का विषय है कि ऐसे महत्वपूर्ण परिवहन केंद्रों पर न तो पर्याप्त सीसीटीवी निगरानी है और न ही नियमित पुलिस गश्त। ऐसे में अपराधियों के लिए यह इलाका "सॉफ्ट टारगेट" बन चुका है।
हर बड़ी घटना के बाद पुलिस और प्रशासन की सक्रियता अचानक बढ़ जाती है। जगह-जगह बैरिकेडिंग लगती है, चेकिंग अभियान शुरू होते हैं, मीडिया बाइट्स दिए जाते हैं। लेकिन जैसे-जैसे मामला ठंडा पड़ता है, वैसे-वैसे सारी सक्रियता खत्म हो जाती है। न कोई स्थायी योजना बनती है, न निगरानी तंत्र में सुधार होता है। यह रवैया न केवल पीड़ितों के साथ अन्याय है, बल्कि अपराधियों को खुली छूट देने जैसा है।
बार-बार एक ही इलाके में, एक जैसे पैटर्न पर, अलग-अलग बच्चियों और महिलाओं के साथ हुए दुष्कर्म की घटनाएं दर्शाती हैं कि सिस्टम पूरी तरह असफल हो चुका है। क्या एक घटना के बाद भी दोबारा ऐसा कुछ न हो, इसका कोई इंतजाम नहीं किया जा सकता? राजधानी के बीचो बीच, जहां दिन-रात हजारों लोगों की आवाजाही होती है, वहां से बच्ची का अगवा होना, गैंगरेप कर हत्या करना या उसे फेंक देना, यह दर्शाता है कि पुलिस की मौजूदगी बस नाममात्र है।
समर्थ नारी संगठन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरा वर्षा कहा कि हर घटना के बाद न्याय की मांग की जाती है और वह जरूरी भी है। लेकिन न्याय तब अधूरा रह जाता है, जब ऐसी घटनाएं बार-बार दोहराई जाती हैं। जरूरी है कि समाज, सरकार और प्रशासन मिलकर एक ऐसा सिस्टम बनाएं, जिसमें कोई भी मासूम अगली शिकार न बने। लखनऊ की घटनाएं केवल आंकड़े नहीं, हमारी व्यवस्था की असफलता की कहानियां हैं। जब तक सुरक्षा नीति में सुधार नहीं होता, गश्त प्रणाली मजबूत नहीं होती और दोषियों को तुरंत सजा नहीं मिलती, तब तक मासूमों की चीखें इस व्यवस्था की गूंगी दीवारों से टकराती रहेंगी।