Mahendra Singh Tikait किसान आंदोलन में बाबा टिकैत के बाद नहीं दिखी वो धार। आज से दस साल पहले हुआ था देहावसान। बाबा की खाली जगह को नहीं भर पाया कोई किसानों के दिलों में आज भी हैं जिंदा
पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क
मेरठ. वर्ष 2011 की 15 मई जब किसानों की लाठी कहे जाने वाले महेंद्र सिंह टिकैत ( Mahendra Singh Tikait ) की आवाज हमेशा-हमेशा के लिए खामोश हो गई। उसी दिन से किसान अनाथ सा हो गया। आज बाबा टिकैत को गए पूरे 10 साल हो गए लेकिन कोई भी उनकी ( Mahendra Singh Tikait ) खाली जगह को भरने में सक्षम नहीं रहा। उनकी विरासत को उनके दोनों बेटे चौधरी नरेश टिकैत ( naresh tikait ) और राकेश टिकैत ( rakesh tikait ) संभाले हुए हैं लेकिन जो तेवर किसान आंदोलन के दौरान बाबा टिकैत के होते थे वे तेवर देखने केा नहीं मिलते।
एक हुंकार पर लाखों की भीड़ और हिलती थी सरकारें
मेरठ के किसान और भाकियू से ताल्लुक रखने वाले बिनोद जिटौली कहते हैं कि बाबा टिकैत एक अलग ही शख्सियत थे। उनके आहवान पर लाखों की भीड जुट जाती थी और एक हुंकार से सरकारें हिल जाती थी। उनकी छवि एक अक्खड, ठेट, देहाती किसान नेता की थी, यानी जो जिद पर टिक जाए वो टिकैत।
कई प्रधानमंत्री पहुंचे टिकैत की चौखट
80 के दशक मे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की लोकप्रियता और जलवे चरम पर थे। कई प्रधानमंत्री किसानों की चौखट पर आने को बाध्य हो गए और किसानों की मांग सुननी पड़ी। बाबा टिकैत जब भी अपनी पैतृक गांव सिसौली में हुक्के की गड़गड़ाहट के बीच कोई ब्यान जारी करते थे तो लुटियन्स दिल्ली के वातानुकूलित कमरों में बैठे लोगों को पसीने शुरू हो जाते थे। उन्होंने अपने घर आए प्रधानमंत्री तक को करवे से पानी पिला दिया। चाहे भ्रष्टाचार हो या बढ़ी बिजली दरें बाबा टिकैट ने किसानों के साथ हर प्रकार के शोषण को रोका।
1988 की दिल्ली की उस बोट रैली ने लुटियनस में रहने वाले विद्वानों को हिला दिया था जब ट्रैक्टर भर-भर हज़ारों नहीं कई लाखों किसानों ने दिल्ली घेर ली और दिल्ली मे डेरा डाल दिया। तब दिल्ली ही नहीं सरकार के भी पसीने छूट गए थे। वह रैली आजाद भारत की सबसे बड़ी किसान रैली थी। बाबा टिकैट जाट-गुर्जर, मुसलमान, दलित एकता के सूत्रधार थे। जब राजस्थान मे गुर्जर आरक्षण संघर्ष चल रहा था तब टिकैट ने बेझिझक किरोड़ीमल बैंसला जी को अपना समर्थन दे दिया और समर्थन में सिसौली से राजस्थान की तरफ कूच किया था। वह भी दिन थे जब एक मुसलमानी लड़की का अपहरण हो गया था और बाबा टिकैट ने 20 दिन भोपा नहर पर उस नाबालिग लड़की को इंसाफ दिलाने के लिए आंदोलन किया था। बाबा टिकैट की रैली में मुसलमान भारी संख्या मे होते थे और उनमें बेहद विश्वास रखते थे। उनकी रैली मे जब मंच से हर-हर महादेव का नारा लगता था, तब भीड़ से अल्लाह हू अकबर की आवाज आती थी और जब मंच से अल्लाह हू अकबर का नारा लगता था। तब भीड़ से हर हर महादेव की आवाज आती थी।
टिकैत की विरासत संभालने की कोशिश आज टिकैत के न रहने से उनके खाली स्थान को भरने की भरसक कोशिश कई राजनैतिक दलों और नेताओं ने की लेकिन वो सफल नहीं हो सके। टिकैत के जाने के बाद किसान आज भले ही अपने आप को अनाथ समझता हो लेकिन वो बाबा की विरासत के रूप में नरेश टिकैत और राकेश टिकैत को आज भी अपना नेता मानता है। बाबा टिकैत के जाने के बाद भाकियू भी कई भागों में बंट चुकी है लेकिन बाबा के नाम पर आज भी किसान और गुट एक मंच पर आ खड़े होते हैं। आज बाबा की वो आवाज तो नहीं रही लेकिन किसानों के बीच महेंद्र सिंह टिकैत नाम ही उनमें उत्साह और उर्जा भरने के लिए काफी है।