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वन्यजीवों के मूवमेंट के साथ जैव विविधता का खजाना, अमरकंटक में अभयारण्य की दरकार

अनूपपुर. जिले की पवित्र नगरी अमरकंटक में अभ्यारण बनाए जाने को लेकर लंबे समय से मांग उठ रही है, लेकिन आज तक स्थानीय स्तर पर इसके लिए कोई भी कदम नहीं उठाए गए जिस कारण यहां वन्यजीवों का विचरण सुगम नहीं हो पा रहा है। हाल ही में इसको लेकर के पुष्पराजगढ़ विधायक ने भी […]

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अनूपपुर. जिले की पवित्र नगरी अमरकंटक में अभ्यारण बनाए जाने को लेकर लंबे समय से मांग उठ रही है, लेकिन आज तक स्थानीय स्तर पर इसके लिए कोई भी कदम नहीं उठाए गए जिस कारण यहां वन्यजीवों का विचरण सुगम नहीं हो पा रहा है। हाल ही में इसको लेकर के पुष्पराजगढ़ विधायक ने भी राज्य शासन को पत्र लिखते हुए संज्ञान में लाने का प्रयास किया था। इसके बाद एक बार फिर से इसकी मांग जिले में जोर पकड़ रही है। अमरकंटक में अभ्यारण के लिए अनुकूल वातावरण है चारों तरफ जंगलों से घिरे हुए मैकल पर्वत हमेशा से ही वन्यजीवों के लिए सुरक्षित स्थल रहा है। वर्तमान में अमरकंटक के जंगल 8525.810 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले हुए हैं जिसमें पर्याप्त वन संपदा स्थित है। साथ ही यहां जंगली शूकर, चीतल, भालू, बंदर, लंगूर की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके साथ ही तेंदुआ, बाघ तथा हाथी यहां मेहमान के रूप में आते रहे हैं। पूर्व से यहां पर अभ्यारण घोषित किए जाने के लिए मांग चली आ रही है लेकिन स्थानीय स्तर पर इस मांग को लेकर के वरिष्ठ कार्यालय से कोई प्रक्रिया प्रारंभ नहीं हो पाई। जल स्रोत व विचरण क्षेत्र भी मौजूद इस मामले पर अमरकंटक के वन परिक्षेत्र अधिकारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि अमरकंटक में अभ्यारण के लिए अनुकूल माहौल है। वन्यजीवों के लिए यहां पर्याप्त जल की व्यवस्था है यहां से कई नदियों का उद्गम है, जिस कारण वन्यजीवों के लिए पेयजल की व्यवस्था यहां साल के 12 माह बनी रहती है। साथ ही वन क्षेत्र भी यहां पर पर्याप्त मात्रा में है, जिसको लेकर के वन्यजीवों के विचारण के लिए पर्याप्त क्षेत्रफल होने के कारण यहां अभ्यारण बनाए जाने सभी व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। इन सभी विविधताओं को देखते हुए अभयारण बनाने मांग उठ रही है।

असहजता महसूस करते हैं वन्यजीव

अ भ्यारण क्षेत्र में ज्यादा बसाहट नहीं होनी चाहिए। साथ ही लोगों का आवागमन भी सीमित होना चाहिए लेकिन अमरकंटक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल होने के कारण यहां हजारों की संख्या में लोग प्रतिदिन देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं। ऐसे में लोगों की ज्यादा उपस्थित से वन्य जीव स्वयं को असहज महसूस करते हैं। शशिधर अग्रवाल, वन्य जीव संरक्षक