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मुलायम के गढ़ में फेल हो सकता है मायावती का दांव, अपने ही जाल में उलझी बसपा

locationआजमगढ़Published: Oct 28, 2017 03:19:28 pm

Submitted by:

Ashish Shukla

टिकट को लेकर नहीं कर पा रही फैसला, सुधीर सिंह पर पार्टी लगा सकती है दांव

Mayawati bet may fail in municipal elections

मायावती का चुनाव

आजमगढ़. मुलायम सिंह यादव का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ में निकाय चुनाव को लेकर सरमर्गी चरम पर पहुंच गयी है। खासतौर पर बसपा में टिकट को लेकर शुरू हुई घमासान के बाद यह और भी बढ़ गई है। पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष शीला श्रीवास्तव बसपा से प्रबल दावेदार मानी जा रही थी लेकिन चर्चा है कि बसपा टिकट सुधीर सिंह पपलू को देने जा रही है।
इसी बीच शीला का जो नय पोस्टर सोशल मीडिया पर जारी हुई है उससे नीला रंग गायब है। सूत्रों की माने तो उन्हें एहसास हो गया है कि अब टिकट नहीं मिलेगा। इसलिए वे निर्दल मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। शीला के साथ जहां सहानभूति है वहीं उनके पास वोट बैंक भी है। पपलू के साथ उनके पिता का नाम है जो जिले के बड़े नेताओं में गिने जाते थे लेकिन इनके पास अपना बहुत अधिक जनाधार नहीं है। ऐसे में बसपा की मुसीबत बढ़ती दिख रही है।
बता दें कि सुधीर सिंह और शीला को राजनीति विरासत के रूप में मिली है। सुधीर के पिता सूर्य कुमार सिंह 1933 से 53 तक आजमगढ़ नगरपालिका के चेयरमैन रहे। इसके अलावा वे जिला पंचायत अध्यक्ष सहित कई पदों पर रहते हुए समाज के लिए काम किये।
उनके बाद उनके पुत्र सुधीर सिंह राजनीति में सक्रिय है। सुधीर सिंह बसपा में लंबे समय से हैं और उन्हें पूर्व सासंद लालगंज डा. बलिराम का काफी करीबी माना जाता है। अब सुधीर सिंह नगर पालिका चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। सूत्रों पर विश्वास करे तो इनका टिकट भी लगभग पक्का है। कारण कि संगठन और पूर्व सांसद उनकी पैरवी कर रहे है।
रहा सवाल शीला श्रीवास्तव का तो वे भी अपने पति की विरासत संभाल रही है। इनके पति स्व. गिरीश चंद श्रीवास्तव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत नगरपालिका से की। सबसे पहले वे सभासद चुने गये। इसके बाद 2000 से 12 जून 2010 तक नगर पालिका चेयरमैन रहे। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में शीला श्रीवास्तव नगर पालिका चेयरमैन चुनी गयी। पिछले चुनाव में शीला फिर लड़ी लेकिन उन्हें भाजपा की इंदिरा जायसवाल से हार का सामना करना पड़ा था।
चुंकि उपचुनाव जीतने के बाद शीला बसपा में शामिल हो गयी थी इसलिए इस बार वे फिर टिकट की दावेदारी कर रही है। वहीं दूसरी तरफ बसपा से सुधीर सिंह भी टिकट की दावेदारी कर रहे है।
दोनों की ही राजनीतिक पृष्ठभूमि काफी मजबूत है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि शीला लगातार मैदान में रही और सुधीर पहली बार जनता के बीच उतर रहे है। सपा के कुछ नाराज नेता भी भीतरखाने से शीला की मदद कर रहे हैं। ऐसे में शीला का दावा ज्यादा मजबूत माना जा रहा है।
बसपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत टिकट न मिलने के बाद भी शीला का मैदान में डटे होना होगा। शीला हर हाल में चुनाव लड़ेगी। गिरीश की दलितों में पैठ को देखते हुए यह माना जा रहा है कि बसपा के मतों का विखराव होगा जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ सकता है। कारण कि गिरीश दोनों बार निर्दल प्रत्याशी के रूप चुनाव जीतकर अध्यक्ष चुने गये थे।
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