पिछले पन्द्रह साल से अब्दुल कयूम बेलिम की दिनचर्या का ज्यादातर वक्त परिंदों और पेड़- पौधों की देखभाल और उनके संवर्धन में ही खप रहा है। ऐसा करते परिंदों से उनका ऐसा गहरा रिश्ता बन गया है कि दोनों को एक दूसरे के पास आए बिना चैन नहीं मिलता।आज करीब पांच सौ परिंदों की रोज देखभाल कर रहे हैं। रोजाना सुबह 6 बजे पहले घर की छत पर इंतजार करते परिंदों के बीच पहुंच जाते हैं और उन्हें दाना पानी देते हैं। इसके बाद पुराने कब्रिस्तान की ओर रुख करते हँै जहां उनकी बाइक की आवाज मात्र से परिंदों को उनके आने की आहट मिल जाती है और उनके शोर से कब्रिस्तान गूंज उठता है। इंसान और परिंदों का यह रिश्ता असीम सुकून बिखेरता है। कय्यूम सब के लिए अलग-अलग दाना डालते हैं और सकोरों में पानी भरते हैं। काफी समय परिंदों के बीच गुजारतें है। वे इन परिंदों के दाना पानी पर रोज 100 से 150 रुपए खर्च कर रहे हैं। इस पहल को अन्य लोगों की भी मदद मिल रही है।
City Of Hundred Island : सरहद पार भी पंसद की जा रही बांसवाड़ा की खूबसूरती, पाकिस्तानी चैनल ने की वाहवाही और… कब्रिस्तान बन गया परिंदों का आवासकयूम ने करीब 250 से 300 नीम आदि पेड़ लगाए। फूलों के पौधे लगाए। आज कब्रिस्तान पेड़ पौधों से हरा भरा हो गया जिसमें 200 मोर, बुलबुल, मेना, चिडिय़ा, तोता, , कोयल, गिलहरी, बटेर आदि कई सैकडों परिंदों और अन्य प्राणियों का बसेरा हो गया। फूलों की बागवानी भी की। कयूम की इच्छा है कि उनके मरने के बाद परिजन आत्मा की शांति के लिए कोई और खर्चा न कर परिंदों के दाना पानी पर खर्च करे।
यों आया परिंदो पर मन
कयूम के मुताबिक एक समय था जब वह रोजाना शिकार किया करते थे। इससे रिश्तेदार और क्षेत्र के लोग पापी कहकर पुकारने लग गए थे। इस शब्द ने उन्हें बेचैन कर दिया और उसी दिन से शिकार बंद कर दिया और न किसी को करने दिया। पापी का दाग मिटाने के लिए परिंदों की सेवा का मार्ग अपनाया। आज अपनों से ज्यादा परिंदे उसके लिए अहम हो गए हैं।