यहां चोरी करना मजबूरी है..
आप सोच रहे होंगे कि चोरी करना क्यों मजबूरी है, लेकिन हम आपको बताते हैं कि यहां चोरी करने के बिना काम नही चल सकता।

आप सोच रहे होंगे कि चोरी करना क्यों मजबूरी है,लेकिन हम आपको बताते हैं कि यहां चोरी करने के बिना काम नही चल सकता। दरअसल बारां जिले में सिंचाई परियोजनाओं के बावजूद टेल पर पानी नहीं पहुंच रहा। किसान अपने खेतों को पानी पिलाने के लिए मजबूरन पानी चोरी करते हैं। जहां से नहर निकल रही है वहां पर किसान पम्प लगा कर पानी की चोरी कर लेते हैं। इससे उनकी फसल को पानी मिल जाता है।बारां.जिले में कृषि का रकबा तो बढ़ता चला गया लेकिन सिंचाई की सुविधाएं उस गति से नहीं बढ़ी।खेतों के कंठ सूखे है. सिंचाई के लिए आज भी कई क्षेत्रों के किसान निजी साधनों पर आश्रित हैं। ऐसे में उन्हें खेतों की प्यास बुझाने के लिए न केवल भागदौड़ करनी पड़ती है बल्कि आर्थिक भार भी झेलना पड़ता है।
हर सीजन में ऐसे किसान फसलों को सींचने पर हजारों रुपए खर्च करते हैं। इसके बाद भी जब प्रकृति की मार से फसलों में खराबा होता है तो उन्हें दोगुनी पीड़ा झेलनी पड़ती है। जिले में कई सिंचाई परियोजनाएं फाइलों में दबी पड़ी है। इन्हें अगर मंजूरी मिले तो सम्बंधित क्षेत्र भी सरसब्ज होंगे।
लम्बा हो रहा इंतजार
महत्वाकांक्षी परवन वृह्द सिंचाई परियोजना से बारां जिले की बारां, अन्ता, अटरू, मांगरोल व छीपाबड़ौद तहसीलों के 194 गांवों को फायदा मिलना है, लेकिन यह परियोजना भी अब तक अधर में है। इसके अलावा रकसपुरिया लिफ्ट सिंचाई परियोजना से बारां एवं मांगरोल तहसील के 22 गांवों की 6916 हैक्टेयर भूमि सिंचित होनी थी। वहीं दीपपुरा लिफ्ट सिंचाई परियोजना से बारां एवं अन्ता तहसील के 19 गांवों की6992 हैक्टेयर भूमि सिंचित करने का प्रावधान था। ये दोनों परियोजनाएं भी परवन के चक्कर में ठंडे बस्ते में चली गई।
किसानों को नहरी पानी नसीब नहीं
सिंचित क्षेत्र में भी जहां नहरें है, वहां भी कई जगह अंतिम छोर तक के किसानों को नहरी पानी नसीब नहीं होता। कई क्षेत्रों में पास से गुजरती नदियों में इंजन सेट लगाकर किसान पाइपों से दूर खेतों तक पानी ले जाते हैं।जिले के बड़े रकबे में असिंचित क्षेत्र के किसानों को खेतों की प्यास बुझाने के लिए निजी सिंचाई साधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में जिले में नलकूपों की संख्या लगातार बढ़ी। कई असक्षम किसान दूसरे किसानों के नलकूपों से पानी लेने को मजबूर रहते हैं। सिंचित क्षेत्र में भी जहां नहरें है, वहां भी कई जगह अंतिम छोर तक के किसानों को नहरी पानी नसीब नहीं होता। कई क्षेत्रों में पास से गुजरती नदियों में इंजन सेट लगाकर किसान पाइपों से दूर खेतों तक पानी ले जाते हैं।
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