
Hal Shashti Vrat: शनिवार को आस्था के साथ माताएं बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए कमरछठ (हलषष्ठी) का व्रत रखेंगी। घर जाकर पूजा के बाद अपने बच्चों के पीठ पर छह बार पीली पोती मारकर उनके दीर्घायु जीवन की कामना करेंगी। शुक्रवार को बाजार में हलष्ठी पर्व को लेकर खासी रौनक रही। पसहर के चावल समेत छह प्रकार के भाजी व पूजा सामानों की महिलाओं ने खरीदारी की।
कमरछठ (हल षष्ठी) छत्तीसगढ़का प्रमुख त्योहार है। घरों के आंगन सहित सेक्टर्स सहित पटरीपार के गली-मोहल्लों में महिलाएं सगरी बनाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर कमरछठ की कहानी सुनेंगी। इस मौके पर महिलाएं मिट्टी की नाव बनाकर सगरी में छोड़ेंगी। शाम को सूर्य डूबने के बाद वे पसहर चावल और भाजी व दही खाकर अपना व्रत का पारणा करेंगी।
महंत यज्ञानंद ब्रहचारी ने बताया कि हलषष्ठी पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का जन्म हुआ था। उन्हे शस्त्र के रूप हल मिला था। इसलिए इस पर्व को हलषष्ठी कहा जाता है।
बघेरा निवासी नीरा साहू ने बताया कि हलषष्ठी पर्व पर महिलाएं व्रत पूरा करने के बाद बिना हल चले हुए जमीन से उपजे अनाज (पसहर चावल) का सेवन करेंगी। इस व्रत में गाय के दूध, दही, घी का सेवन करना भी मना है। इसलिए इस दिन भैंस के दूध, दही, घी का सेवन किया जाता है। छत्तीसगढ़ में कमरछठ के दिन हल को छूना तो दूर हल चली जमीन पर भी महिलाएं पैर नहीं रखती और हल चले अनाज को भी ग्रहण नहीं करती।
हल षष्ठी व्रत पर यदि संभव हो तो महुआ की दातून करना चाहिए। हलषष्ठी व्रत का पारण भी महुआ, पसहर के चावल और भैंस के दूध से किया जाता है। हलषष्ठी व्रत में भैंस के दूध का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। हलछठ व्रत में गाय के दूध या उससे बनी चीजों के सेवन की मनाही है। हलछठ व्रत में हल से जोते हुए किसी भी खाद्य पदार्थ या फल आदि का सेवन नहीं किया जाता है।
Updated on:
03 Dec 2024 01:25 pm
Published on:
24 Aug 2024 01:11 pm
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