
बड़ी खबर : आचार्य विनम्रसागर का बयान : 700 से ज्यादा श्रद्धालु के सामने कही ये बात.....
भिण्ड । अपनी नियमित धर्मसभा में गुरुवार को आचार्य विनम्रसागर ने भक्तामर के 25वें छन्द को समझाते हुए कहा कि हे भगवन आपके अन्दर सम्पूर्ण ज्ञान होने से आपको बुद्ध कहते हैं, आप सुख शांति देने वाले हैं इसलिए आपको शंकर भी कहा जाता है, आप मोक्षमार्ग की राह दिखाने वाले हो इसलिए आप ब्रह्या भी हो और अंत में पुरुषों में भी आप सर्वश्रेष्ठ हो अत: आपको पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। आपके अन्दर अंनत गुण विद्यमान हैं इसलिए आपके अंनत नाम हैं।
आचार्य ने कहा कि दो तरह की दृष्टि होती है एक दिमाग की दृष्टि दूसरी आंख की दृष्टि। दिमाग की दृष्टि अन्तंरग की ओर ले जाती है आत्मा की ओर ले जाती है। आंख की दृष्टि बाहरी पदार्थ मोह, माया, कषाय, राग, द्वेष की भावना पैदा करती है। ऑख की दृष्टि मिथ्यात्व की ओर ले जाती है, दिमाग की दृष्टि सही सोच पैदा करती है। जैनी लोग बुद्धिमान समझदार होते हैं, वे पागल नहीं होते। जो पागल होते हैं वे जैनी नही हैं ।
हम नाम के जैनी नहीं काम के जैनी बनें। उन्होंने कहाकि नाम से कोई महान नहीं बनता। नाम के साथ गुण होने से व्यक्ति महान व पूज्य होता है, कोई भी पत्थर भगवान नहीं होता है गुणों से भगवान होता है। पत्थर में ईश्वर के गुण विद्यमान किए जाते हैं तब वह पूज्य होपाता है अन्य किसी पत्थर को पूजा नहीं जाता। कपड़ों को उतार देने से कोई मुनि नहीं बनता जो सही तरीके से रत्रय की प्राप्ति कर लेता है वही मुनि हो पाता है ।
उपवास व तप व्रत ऐसी चीज है जिसे करने से स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। आचार्य का पादप्रक्षालन, शास्त्रभेंट, चित्र अनावरण व भक्तामर विधान करने का सौभाग्य महेन्द्र कुमार जैन शक्कर वाले व उनके परिवार को मिला। धर्म सभा में रमेशचन्द्र जैन, डॉ. दिनेश चन्द्र जैन, निर्मल चन्द्र जैन, संजीव कुमार जैन बल्ल प्रमोद जैन, विनोद जैन, मंगल जैन आदि सहित 700 से ज्यादा श्रद्धालु उपस्थित थे।
Published on:
31 Aug 2018 04:07 pm
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