सबसे पहले बात दिग्विजय सिंह और उमंग सिंघार के विवाद को लेकर करते हैं। दिग्विजय सिंह की चिट्ठी के बाद वन मंत्री उमंग सिंघार ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सिंघार ने दिग्विजय सिंह पर पर्दे के पीछे से सरकार चलाने का आरोप लगाकर कांग्रेस की अंदरूनी फसाद को और बढ़ा दिया। मंत्री उमंग सिंघार यहीं नहीं रुके, उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक चिट्ठी लिखी और दिग्विजय सिंह की शिकायत की। दिग्विजय सिंह सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन आपके मन में सवाल यह जरूर उठ रहा होगा कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ अचानक से मंत्री उमंग सिंघार ने मोर्चा क्यों खोल दिया। लेकिन सियासत में अचानक से कुछ होता नहीं है। सबकुछ एक प्लानिंग के तहत होती है। सवाल यह भी है कि बुआ की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे उमंग सिंघार भी क्या जमुना देवी की राह पर ही चल रहे हैं। जमुना देवी भी दिग्विजय सिंह के खिलाफ मुखर थीं।
मैं दिग्विजय सिंह की तंदूर में जल रही हूं अभी जो विवाद चल रहे हैं, उससे यह तो जाहिर हो गया है कि कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। लेकिन दिग्विजय सिंह और सिंघार के विवाद को समझने के लिए आपको थोड़ा फ्लैशबैक में चलना होगा। उमंग सिंघार की बुआ भी मध्यप्रदेश कांग्रेस की कद्दावर नेत्री रही हैं। जमुना देवी मध्यप्रदेश की उपमुख्यमंत्री रही हैं। दिग्विजय सिंह के सीएम रहते हुए उन्होंने कहा था कि मैं दिग्विजय सिंह की तंदूर में जल रही हूं। उस वक्त भी इस बयान को बड़ा भयानक माना गया था।
इसलिए चुप हैं कमलनाथ?
दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि इस पूरे मामले को सोनिया गांधी और कमलनाथ देखें। लेकिन कमलनाथ बिल्कुल खामोश हैं। लेकिन कमलनाथ के चुप रहने के भी दो फायदे हैं। इस तरह के हमले से दिग्विजय सिंह कमजोर होंगे और जब वे कमजोर होंगे तो सरकार में उनकी दखलदांजी कम हो जाएगी। क्योंकि पूरी सरकार में दिग्विजय सिंह का सबसे ज्यादा दखल है। वो खुद को किंग मेकर मानते हैं। दिग्विजय सिंह मानते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार उन्होंने बनवाई है।
दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि इस पूरे मामले को सोनिया गांधी और कमलनाथ देखें। लेकिन कमलनाथ बिल्कुल खामोश हैं। लेकिन कमलनाथ के चुप रहने के भी दो फायदे हैं। इस तरह के हमले से दिग्विजय सिंह कमजोर होंगे और जब वे कमजोर होंगे तो सरकार में उनकी दखलदांजी कम हो जाएगी। क्योंकि पूरी सरकार में दिग्विजय सिंह का सबसे ज्यादा दखल है। वो खुद को किंग मेकर मानते हैं। दिग्विजय सिंह मानते हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार उन्होंने बनवाई है।
दिग्विजय सिंह की सरकार में दखलदांजी
कांग्रेस के अंदर पावर वॉर में पहले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को साइड कर दिया गया है। उनको प्रदेश की राजनीति से दूर किया गया। ऐसे में अगर उमंग सिंघार के जरिए दिग्विजय सिंह का दखल कम होता है तो सीएम कमलनाथ को इसमें कोई आपत्ति नहीं है। शायद यही वजह है कि इस पूरे विवाद पर कमलनाथ चुप्पी साधे हुए हैं। साथ ही उमंग सिंघार जो चाह रहे थे वो होता रहा और विवाद सुलझाने के लिए सोनिया गांधी को बीच में आना पड़ा।
कांग्रेस के अंदर पावर वॉर में पहले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को साइड कर दिया गया है। उनको प्रदेश की राजनीति से दूर किया गया। ऐसे में अगर उमंग सिंघार के जरिए दिग्विजय सिंह का दखल कम होता है तो सीएम कमलनाथ को इसमें कोई आपत्ति नहीं है। शायद यही वजह है कि इस पूरे विवाद पर कमलनाथ चुप्पी साधे हुए हैं। साथ ही उमंग सिंघार जो चाह रहे थे वो होता रहा और विवाद सुलझाने के लिए सोनिया गांधी को बीच में आना पड़ा।
सिंघार विवाद से मंत्रियों की खुल गई कलई
दिग्विजय सिंह और उमंग सिंघार विवाद से मध्यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों की कलई खुल गई। सिंघार ने आवाज बुलंद किया तो सरकार के कई विधायकों ने अपने मंत्रियों के खिलाफ हल्ला बोल दिया। कईयों पर संगीन आरोप लग गए। विधायकों ने मंत्रियों पर काम के बदले पैसे लेने के आरोप लगाएं।
दिग्विजय सिंह और उमंग सिंघार विवाद से मध्यप्रदेश सरकार के कई मंत्रियों की कलई खुल गई। सिंघार ने आवाज बुलंद किया तो सरकार के कई विधायकों ने अपने मंत्रियों के खिलाफ हल्ला बोल दिया। कईयों पर संगीन आरोप लग गए। विधायकों ने मंत्रियों पर काम के बदले पैसे लेने के आरोप लगाएं।
मोहरा बन रहे हैं सिंघार?
अभी तक तो विवाद है, उससे तो यहीं लगता है कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ उमंग सिंघार मोहरा बने हैं। क्योंकि राजनैतिक हैसियत की बात करें तो सिंघार और दिग्विजय सिंह की कोई तुलना नहीं है। क्योंकि सिंघार ने जिस तरीके से सरकार में पावर की लड़ाई को लेकर मोर्चा खोला है, अगर ऐसा बीजेपी में होता तो अब तक नेता के ऊपर कार्रवाई हो जाती। लेकिन सिंधिया के खिलाफ सब मौन हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि प्रदेश के दिग्गज नेताओं का इसमें मौन समर्थन है।
अभी तक तो विवाद है, उससे तो यहीं लगता है कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ उमंग सिंघार मोहरा बने हैं। क्योंकि राजनैतिक हैसियत की बात करें तो सिंघार और दिग्विजय सिंह की कोई तुलना नहीं है। क्योंकि सिंघार ने जिस तरीके से सरकार में पावर की लड़ाई को लेकर मोर्चा खोला है, अगर ऐसा बीजेपी में होता तो अब तक नेता के ऊपर कार्रवाई हो जाती। लेकिन सिंधिया के खिलाफ सब मौन हैं। ऐसे में माना जा सकता है कि प्रदेश के दिग्गज नेताओं का इसमें मौन समर्थन है।
सिंघार को विवाद से हो रहा फायदा
इस विवाद को हवा देकर उमंग सिंघार को यह फायदा जरूर हो रहा है कि वह खुद को दिग्विजय विरोधी खेमे के नेता के रूप में खुद को स्थापित कर रहे हैं। क्योंकि मध्यप्रदेश में अभी तीन खेमा चल रहा है, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया , दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का है। अब चौथा खेमा उमंग सिंघार है। अंदर की कहानी यह है कि ये दोनों खेमा सिंघार खेमे को पीछे से पुश कर रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो खुद भी उनका समर्थन किया है।
इस विवाद को हवा देकर उमंग सिंघार को यह फायदा जरूर हो रहा है कि वह खुद को दिग्विजय विरोधी खेमे के नेता के रूप में खुद को स्थापित कर रहे हैं। क्योंकि मध्यप्रदेश में अभी तीन खेमा चल रहा है, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया , दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का है। अब चौथा खेमा उमंग सिंघार है। अंदर की कहानी यह है कि ये दोनों खेमा सिंघार खेमे को पीछे से पुश कर रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो खुद भी उनका समर्थन किया है।
प्रदेश कांग्रेस का BOSS कौन?
अब मध्यप्रदेश कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए भी खींचतान चल रही है। इसमें भी तीन गुट सक्रिय है। लेकिन एक गुट अपनी दावेदारी डंके की चोट पर जता रही है। वो गुट है ज्योतिरादित्य सिंधिया का। सिंधिया समर्थक खेमे के मंत्री लगातार यह मांग कर रहे हैं महाराज के हाथों में प्रदेश की कमान सौंपी जाए।
अब मध्यप्रदेश कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए भी खींचतान चल रही है। इसमें भी तीन गुट सक्रिय है। लेकिन एक गुट अपनी दावेदारी डंके की चोट पर जता रही है। वो गुट है ज्योतिरादित्य सिंधिया का। सिंधिया समर्थक खेमे के मंत्री लगातार यह मांग कर रहे हैं महाराज के हाथों में प्रदेश की कमान सौंपी जाए।
सिंधिया कोई नहीं चाहता है
अंदर की बात यह है कि प्रदेश की राजनीति में जितने भी कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं, वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं चाहते हैं। चुनाव वक्त सिंधिया को डिप्टी सीएम का ऑफर मिला था लेकिन वह सीएम बनना चाहते थे। प्रदेश में लड़ाई सीएम की कुर्सी को लेकर है। ऐसे में सिंधिया चाहते हैं कि हम नंबर टू नहीं बने। अब उनकी चाहत यह है कि सत्ता के दूसरे केंद्र का बॉस बनें यानी कि प्रदेश में संगठन का चीफ। इस बार के लोकसभा चुनाव भी सिंधिया हार चुके हैं लेकिन पार्टी में उनके पास कोई दमदार जिम्मेदारी नहीं है।
बनेगा नया पॉवर सेंटर
ज्योतिरादित्य सिंधिया अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में वापसी करते हैं। तो प्रदेश में फिर पॉवर सेंटर की लड़ाई शुरू हो जाएगी क्योंकि सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दो पॉवर का दो केंद्र हो जाएगा। ऐसे में सब इन्हें किनारा लगाना चाहता है। कमलनाथ चाहते हैं कि बाला बच्चन बनें, दिग्विजय सिंह अजय सिंह को चाहते और ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को चाहते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया अगर मध्यप्रदेश की राजनीति में वापसी करते हैं। तो प्रदेश में फिर पॉवर सेंटर की लड़ाई शुरू हो जाएगी क्योंकि सिंधिया के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद दो पॉवर का दो केंद्र हो जाएगा। ऐसे में सब इन्हें किनारा लगाना चाहता है। कमलनाथ चाहते हैं कि बाला बच्चन बनें, दिग्विजय सिंह अजय सिंह को चाहते और ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद को चाहते हैं।