
NSS Day 2021
विद्यार्थी शैक्षणिक कार्यक्रम से इतर समाज से जुड़े, इनकी रचना, संरचना को समझें और सहभागी बनें, यही राष्ट्रीय सेवा योजना का आधार है। आज मध्य प्रदेश में डेढ़ लाख से ज्यादा विद्यार्थी इस योजना से जुड़े हैं जो निरंतर समाज में अपना योगदान दे रहे हैं।
आज यह बात भी दृढ़ता से कही जा सकती है कि राष्ट्रीय सेवा योजना भारत में विद्यार्थियों का सबसे बड़ा विद्यार्थी संगठन है। इस योजना की 52वें वर्षगांठ पर, लगभग तीन दशक से एनएसएस से जुड़े राहुल सिंह परिहार (जो इंदिरा गांधी एनएसएस पुरस्कार एवं राज्य स्तरीय सम्मान प्राप्त होने के साथ ही वर्तमान में मुक्त इकाई के कार्यक्रम अधिकारी भी हैं) का इस योजना का विश्लेषण करते हुए कहना है कि राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ना ना केवल व्यक्तित्व विकास में सहायक है बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी कारगर है।
यह बात एनएसएस से जुड़े व्यक्ति बखूबी जानते हैं। इस योजना का मूल विचार भी तो यही था । महात्मा गांधी का विद्यार्थियों के प्रति यह अभिमत था कि वे संस्थाओं से पढ़कर निकलने के बाद समाज से जुड़े और सामाजिक विकास में भागीदार हो।
देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरु की भी आकांक्षा थी कि स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हर एक विद्यार्थी को लगभग 1 वर्ष तक गांवों में रहकर भारत को समझने का अवसर दिया जाना चाहिए। इस पर गंभीर मंथन हुआ और यह निर्णय लिया गया कि विद्यार्थी का 1 वर्ष तक गांव में रहकर सेवा करना व्यवहारिक नहीं है लेकिन उसे गांव में समाज से अवश्य जोड़ा जाना चाहिए बस यही मूल विचार भारत में एनएसएस का आधार है।
संस्था परिसर से समुदाय ( कैंपस टू कम्युनिटी ) तक पहुंच की संकल्पना पर ही गांधी शताब्दी वर्ष (1969 )से पूरे देश के साथ-साथ मध्य प्रदेश के 2 विश्वविद्यालयों, इंदौर और सागर के 470 छात्र-छात्राओं के माध्यम से एनएसएस को लागू किया गया । मध्यप्रदेश में 1969 के महज 470 विद्यार्थियों के साथ बोया गया यह बीज आज उच्च शिक्षा के 7 परंपरागत विश्वविद्यालयों के माध्यम से लहलहा रहा है और इससे लगभग डेढ़ लाख से अधिक विद्यार्थी जुड़ चुके हैं ।
जब यह योजना शुरू हुई थी तब भारत सरकार की इस योजना के प्रति बहुत स्पष्ट दृष्टि नहीं थी । शुरुआत में तो समाज की वास्तविकताओ को समझने के लिए ही कुछ कार्यक्रम निश्चित किए गए थे लेकिन आज पूरे देश में एनएसएस के विद्यार्थी हर परिस्थिति में समाज के साथ खड़े दिखते हैं ।
आज यह बात भी दृढ़ता से कही जा सकती है कि राष्ट्रीय सेवा योजना भारत में सबसे बड़ा युवा संगठन है। एक ओर तो यह योजना समाज तक शासकीय योजनाएं सरलता से पहुंचाती है वहीं दूसरी ओर युवा पीढ़ी को एक सचेत और जागृत नागरिक बनाने में सहायक है।
विद्यार्थी समाज की आवश्यकताओं का अनुभव करें उनकी कठिनाइयों को समझें और यथासंभव समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय हो । यह बात भी यहां ध्यान में रखने योग्य है कि एनएसएस केवल विद्यार्थियों को समाज से जोड़ने भर की योजना नहीं है बल्कि यह एक विस्तृत शिक्षा का कार्यक्रम है।
कोरोना काल में जब पूरे देश में तालाबंदी थी और लोग अपने घरों में कैद थे, देश के माननीय प्रधानमंत्री के आह्वान पर एनएसएस के स्वयं सेवक मैदान में थे । एक ओर तो स्वयंसेवक ताला बंदी को सफल बनाने में लगे थे, वहीं दूसरी ओर जरूरतमंदों को खाना बांटने से लेकर मास्क बनाने और लोगों को जागरुक करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे।
यहां तक कि इस दौर में चिकित्सा व्यवस्था में सहयोग, प्लाज्मा डोनेशन, ऑक्सीजन व्यवस्था में सहयोग तथा रक्तदान जैसे अपने मूल विषयों पर भी काम करते रहे थे।प्रदेश भर में प्रशासन और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर उस वर्ग के साथ स्वयंसेवक खड़े थे जिन्हें जरूरत थी। स्वयंसेवक के इस अप्रतिम योगदान को लेकर तत्कालीन राज्यपाल, माननीय मुख्यमंत्री ,केंद्रीय मंत्री एवं अन्य प्रमुख जनप्रतिनिधियों ने कार्यो की सराहना की है।
एनएसएस के मूल प्रारंभिक शिविर( विशेष शिविर) जो कि ग्रामीण अंचलो या पिछड़ी दूरस्थ झुग्गी - झोपड़ियों में लगाए जाते हैं, वे निश्चित ही जागरूकता का संदेश यहां के रहवासियों तक पहुंचाने में सफल होते हैं। शिविरार्थी ना केवल यहां श्रमदान करते हैं वरन सामाजिक सरोकार (‘शिक्षा द्वारा समाज सेवा समाज सेवा द्वारा शिक्षा के लक्ष्य’ के साथ) से खुद को जोड़कर स्वयं कुछ सीखते हैं कुछ उन्हें सिखाते हैं इसके अलावा अन्य तरह के कई अवसर भी विद्यार्थियों को मिलते हैं।
एनएसएस का प्रतीक चिन्ह उड़ीसा कोणार्क मंदिर के सूर्य के रथ के पहिए से लिया गया है सूर्य मूलतः सृजन, संरक्षण, आवर्तन, गतिशीलता तथा ऊर्जा का प्रतीक है, जो काल और स्थान से परे जीवन को गतिशील बनाता है।
इस योजना का सिद्धांत वाक्य 'स्वयं से पहले आप' (Not Me But You) है। जिसका अर्थ है कि स्वयंसेवक निःस्वार्थ सेवा की महत्ता को प्रतिपादित करता है। यह दूसरे को दृष्टिकोण की सराहना करता है तथा संपादित कार्य का श्रेय स्वयं ना लेकर दूसरों को देता है । इस योजना के प्रतीक पुरुष स्वामी विवेकानंद है, जो की वर्ष 1985 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष में भारत सरकार द्वारा युवाओं के प्रेरणा पुरुष मान्य किए गए साथ ही इस योजना के प्रतीक पुरुष माने गए ।
मेरा इस योजना से जुड़े लगभग तीन दशक हो रहा है, मैं अपने अनुभव से यह बात निश्चित रूप से कह सकता हूं कि योजना से जुड़े छात्र-छात्राओं और शिक्षकों में ये भाव कभी नहीं आता कि वे बड़े -छोटे हैं। उनमें एकात्मभाव स्फूर्त होता है। योजना में अनुशासन नहीं सिखाया जाता बल्कि विद्यार्थी स्वानुशासित होते हैं।
आज हम इस योजना के 52 वें पायदान पर खड़े हैं। इसलिए आज हम इसका ईमानदार विश्लेषण करने की स्थिति में भी हैं । हमें यह महसूस होता है कि इस योजना से जुड़े लाखों युवा साथी समाज विकास में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं। किंतु समाज में महत्व के दृष्टिकोण से इस योजना की पकड़ थोड़ी ढीली होती जा रही है इस योजना के वित्तपोषण को लेकर भी सरकारों के मध्य अब खींचतान की स्थिति बन रही है। क्योकि पहले योजना केंद्र प्रवर्तित थी , राज्यो का भी वित्तीय व्यवस्था में अंशदान था।
अब भारत सरकार के शत-प्रतिशत अनुदान होने के कारण राज्य सरकार आर्थिक दृष्टि से अपने आप को भार मुक्त मानती हैं , इसलिए उन्हें नहीं लगता कि योजना के प्रति उनकी भी कोई शासकीय विशिष्ट जिम्मेदारी है।
परंतु जिन राज्यों द्वारा नवाचार व नवीन पहल की जाती है उनके प्रति भारत सरकार के कई अधिकारियों का कोई उचित नजरिया नहीं है क्योंकि उन्हें लगता है कि योजना को शत प्रतिशत अनुदान वह दे रहे हैं इसलिए उनके निर्देश मान्य होना चाहिए जबकि भारत सरकार द्वारा जारी मैनुअल में स्पष्ट है कि भारत सरकार राज्यों में गतिविधियों के परिस्थित अनुसार क्रियान्वयन के लिए सुझाव ( guideline) जारी करती है। इस विरोधाभास से उत्तम स्थिति के कारण रासेयो एक प्रक्रिया बनता जा रहा है ।
सत्तर अस्सी के दशक तक मध्यप्रदेश के नवाचारों और लीक से हटकर किए कार्य और गतिविधियों का संचालन और स्थाई परिसंपत्तियों की चर्चा दूर-दूर तक होती थी, जबकि उस समय ना तो चैनलों का इतना विस्तार था, ना ही सोशल मीडिया का, अखबार आदि में भी यदा-कदा ही स्थान मिल पाता था।
सवाल यह है कि फिर प्रचार-प्रसार कैसे होता था? क्योंकि मूल्यांकन में समुदाय की भागीदारी होती थी इसलिए उसका स्वामित्व था । परंतु अब यह कड़ी टूट गई है तो योजना के कार्यक्रम एक औपचारिकता भर बनते जा रहे है ।
हर्ष का विषय है कि मध्य प्रदेश एनएसएस में राज्य सरकार की पहल पर नवाचार और लीक से हटकर किए गए कार्यों की परंपरा से विगत एक दशक मे वृहत्तर विस्तार हुआ है, नए विषयों जैसे बाल संरक्षण एवं वित्तीय साक्षरता पर काम करना प्रारम्भ किया है, जो कि स्वयंसेवक को नई दृष्टि भी दे रहे है। अब इसको विस्तृत करने की आवश्यकता है इसको और मजबूत करना है ।
जिससे योजना एवं योजना से जुड़े स्वयंसेवको का आजादी के अमृत महोत्सव में और अधिक भागीदारी सिद्ध की जा सके।
आजादी के अमृत महोत्सव के इस वर्ष में यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश में नई शिक्षा नीति के अंर्तगत राष्ट्रीय सेवा योजना को वैकल्पिक विषय के रूप में प्रारंभ किया है । लेकिन अभी भी योजना में बढ़े हुए अवसरो, उपलब्धियों को अंतिम इकाई, अंतिम विद्यार्थी तक विस्तारित करने की आवश्यकता है।
जिससे शिक्षा विस्तार के अंतर्गत 24 सितम्बर 1969 से चल रही योजना का अपना प्रथक महत्त्व बना रहे व अकादमिक दृष्टि से प्रारंभ वैकल्पिक विषय के रूप में प्रारम्भ राष्ट्रीय सेवा योजना अपने आयाम भी गढ़ सके आज राष्ट्रीय सेवा योजना दिवस पर हम आशा करते है कि आजादी के साथ साथ एन एस एस का वैभव भी बना रहे और जुड़े सभी हितधारकों के जीवन में भी बदलाव आता रहे ।
Published on:
24 Sept 2021 09:35 am
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