26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

खुशखबरी : फेस मास्क लगाने वाले खुद विकसित कर लेते कोरोना की एंटीबॉडी, जानिए कैसे

शोध में खुलासा, फेस मास्क लगाने वाले खुद विकसित कर लेते कोरोना की एंटीबॉडी।

3 min read
Google source verification
news

खुशखबरी : फेस मास्क लगाने वाले खुद विकसित कर लेते कोरोना की एंटीबॉडी, जानिए कैसे

भोपाल/ कोरोना संकट के बीच नियमित रूप से फेस मास्क लगाने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है। हालही में हुए एक शोध में दावा किया गया है कि, जो लोग नियमित रूप से फेस मास्क पहनते हैं, खासकर किसी सार्वजनिक स्थल पर जाते समय उनके शरीर में कोरोना वायरस काफी कम मात्रा प्रवेश कर पाता है। शरीर में वायरस लोड कम होने के कारण शरीर अपने आप ही एंटीबॉडी विकसित होने लगती है। इस सिद्धांत को वैरियोलेशन कहा जाता है। अब तक की जांच में ये भी सामने आया है कि, जिन इलाकों में लोग मास्क का नियमित इस्तेमाल कर रहे हैं, वहां कोरोना के लक्षण वाले मरीज काफी कम हैं।

पढ़ें ये खास खबर- ATM में रुपये डालने की बजाय कर्मी ही कर देते थे गायब, बैंक को पता ही नहीं चला ये चुरा चुके थे करोड़ों रुपये


इस तरह दिया शोध का विवरण

इंटरनेशनल रिसर्च जर्नल न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की हाल ही में प्रकाशित एक ताजा शोध में ये दावा किया गया है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, फेसमास्क काफी हद तक वैक्सीन जैसा ही काम कर रहा है। क्योंकि, नियमित रूप से फेसमास्क पहनने वाले लोगों के शरीर में 90 फीसदी या उससे अधिक संक्रमण नहीं पहुंच पाता। संक्रमण शरीर में कम मात्रा में पहुंचने से शरीर का इम्यून सिस्टम ही संक्रमण से लड़कर उसे खत्म करता है और आगे उससे लड़ने के लिए शरीर एंटीबॉडी भी डेवलप करने लगता है।

पढ़ें ये खास खबर- तेजी से बिगड़ रहे हैं हालात, अब इस तकनीक से दोगुनी स्पीड में होगा कोरोना मरीजों का इलाज


नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हेल्थ ने की ये बात

शोध पर अपना नजरिया रखते हुए आईसीएमआर के भोपाल स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायर्नमेंटल हेल्थ (निरेह) के निदेशक और एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. आरएन तिवारी ने बताया कि, जब से कोविड महामारी की शुरुआत हुई, तभी से इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि, संक्रमण से बचे रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना है और मास्क का इस्तेमाल करना है। एक्सपर्ट्स पहले से ही जानते थे कि, मास्क का इस्तेमाल सामाजिक वैक्सीन के रूप में कार्य करेगा, जिसपर हालिया शोध ने मोहर लगाई है। उन्होंने कहा कि, मास्क, संक्रमित मनुष्य से, वायरस को वातावरण में फैलने से बहुत हद तक रोकता है। कोरोना से लड़ते हुए अब तक ये अनुभव रहा है कि, ज्यादातर संक्रमितों में कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं उनमें वायरस लोड काफी कम होता है।

पढ़ें ये खास खबर- उपचुनाव की तैयारी : मीटिंग छोड़ मैदान में उतरे कमलनाथ, 40 साल की राजनीति में पहली बार कर रहे ऐसे प्रचार


मास्क का इस्तेमाल ही सबसे कारगर

माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट और डायरेक्टर एम्स,भोपाल के डॉ. सरमन सिंह ने बताया कि यह पहली स्टडी है जो वैरियोलेशन पर बात करते हुए बताती है कि कोरोना का 10 से 20 फीसदी तक मामूली संक्रमण होना भी इससे बचाव का तरीका है। यानी थ्री-प्लाई मास्क जो वायरस से 70 से 80 फीसदी तक बचाव करता है, वह भी बेहतर है। एन-95 मास्क संक्रमण से 95 फीसदी तक बचाव करता है। जापान, कोरिया व सिंगापुर जैसे देशों ने बिना वैक्सीन मास लेवल पर फेस मास्क के इस्तेमाल से कोरोना को काबू किया है।

पढ़ें ये खास खबर- युवती ने मॉल से लगाई थी छलांग, बयान लेने कुर्सी पर बैठी SI तो चिल्लाते हुए बोली युवती- 'वहां मेरे पति बैठे हैं, उनकी गोद से उठो'

18वीं शताब्दी के वैरियोलेशन सिद्धांत पर आधारित शोध

वैरियोलेशन सिंद्धात को वैक्सीन का जनक माना जाता है। 18वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड के डॉक्टर एडवड जैनर ने स्मालपॉक्स (छोटी माता) के इलाज के जरिए इस सिद्धांत का पता लगाया गया था। निरेह भोपाल के एपिडियोमोलॉजिस्ट डॉ. योगेश साबदे के मुताबिक, वैक्सीन के से पहले स्मॉलपॉक्स के संक्रमण से लोगों को बचाने इस बीमारी से ठीक हो चुके लोगों शरीर से निकली सूखी त्वचा के मामूली हिस्से को स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा पर रगड़ा जाता था। इससे स्वस्थ व्यक्ति में स्मालपॉक्स वायरस का मामूली संक्रमण होता था और वायरस के खिलाफ इम्युनिटी विकसित हो जाती था, इस कारण वह व्यक्ति बाद में बीमार नहीं पड़ता था।