scriptकांग्रेस का इन सीटों पर है एकछत्र राज! भाजपा ने लगातार खाई है मात | vidhan sabha chunav ka ye rahega result | Patrika News

कांग्रेस का इन सीटों पर है एकछत्र राज! भाजपा ने लगातार खाई है मात

locationभोपालPublished: Oct 12, 2018 04:34:52 pm

चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के इस गढ़ से हैं खास उम्मीदें…

results of assembly election 2018

कांग्रेस का इन सीटों पर है एकछत्र राज! भाजपा ने लगातार खाई है मात

भोपाल। मध्यप्रदेश में अगले महीने यानि 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसका रिजल्ट 11 दिसंबर को आ जाएगा। ऐसे में चुनाव को लेकर इन दिनों गणित लगाना राजनीतिक पंडितों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

जानकारों के अनुसार जहां एक ओर भाजपा अन्य दलों से काफी मजबूत स्थिति में है वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि भाजपा से जनता की नाराजगी इस बार उसे सत्ता से बेदखल कर सकती है। वहीं मालवा मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा क्षेत्र और भाजपा का सबसे बड़ा गढ़ है। लेकिन इस बार के चुनाव में यहां मतदाता किसके साथ जाएंगे यह अभी भी एक सवाल बना हुआ है।

कुल मिलाकर हर बार की तरह इस बार भी mp में मुख्यरूप से भाजपा की टक्कर कांग्रेस से है। खैर आज हम आपको यहां मप्र में कांग्रेस के ऐसे किलों के बारे में बता रहे हैं, जिनको भाजपा तमाम कोशिशों के बावजूद भेद नहीं पाई है यानि कांग्रेस का यहां तकरीबन एकछत्र राज है…

1. राघोगढ़
गुना जिले की राघोगढ़ विधानसभा सीट का भाजपा आज तक कोई तोड़ नहीं निकाल पाई है। राघोगढ़ को कांग्रेस का अभेद किला कहा जाता है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का इस सीट पर दबदबा माना जाता है। 2003 चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को दिग्विजय सिंह ने मात दी थी। फिलहाल इस सीट पर दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह का कब्जा हैं।

2. भोपाल उत्तर
कहा जाता है कि भाजपा इस सीट को पिछले चार विधानसभा चुनावों से हर हाल में जीतना चाहती है। यहां से कांग्रेस के आरिफ अकील विधायक हैं और मुस्लिमों का सबसे मजबूत चेहरा माने जाते हैं। हालांकि पिछले चुनाव में यहां जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला था।

3. चुरहट
चुरहट विधानसभा कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की परम्परागत सीट मानी जाती है। सीधी जिले में आने वाली चुरहट सीट कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ कहा जाता है। यहां जीत हासिल करने के लिए भाजपा हर चुनाव में अपना प्रत्याशी बदलती है, लेकिन नाकाम रहती है।

4. लहार
भिंड जिले की लहार विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीटों में अहम मानी जाती है। पिछले छह चुनावों से कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉक्टर गोविंद सिंह लगातार इस सीट पर अपनी जीत बनाए रखे हुए हैं। जानकारों के मुताबिक इस बार भाजपा की कोशिश होगी कि गोविंद सिंह के खिलाफ यहां से दमदार प्रत्याशी उतारे ताकि कांग्रेस के एकछत्र राज को खत्म किया जा सके।

5. पिछोर
शिवपुरी जिले में आने वाली पिछोर से कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह 1993 से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। पिछले चुनाव में भी केपी सिंह ने भाजपा के उम्मीदवार को करारी मात दी थी।

6. विजयपुर
श्योपुर जिले में आने वाली विजयपुर सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ है। पिछले पांच बार से रामनिवास रावत यहां से जीत हासिल कर रहे हैं। रामनिवास रावत ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी भी माने जाते हैं। भाजपा पूरी ताकत से यहां मैदान पर उतरती है, लेकिन फिर भी उसे जीत नहीं मिल पाती।

7. राजनगर
कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नातीराजा पिछले तीन चुनावों से बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर में आने वाली राजनगर सीट से जीत रहे हैं। 2013 के चुनाव में भाजपा नेता रामकृष्ण कुसमरिया को मात दी थी।

8. राजपुर
बड़वानी जिले की राजपुर सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है। प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बाला बच्चन यहां से विधायक हैं। 2003 में भाजपा राजपुर सीट जीतने में सफल हुई थी, लेकिन इसके बाद पुन: कांग्रेस ने ये सीट अपने कब्जे में ले ली।

इस बार कांग्रेस को यहां से भी है उम्मीद…
भाजपा के सबसे बड़े गढ़ और मध्यप्रदेश के सबसे बड़े क्षेत्र मालवा की जनता का मिजाज भी इस बार कुछ अलग तरह का दिख रहा है। ऐसे में इस बार के चुनाव में यहां के मतदाता किसके साथ जाएंगे यह अभी भी एक सवाल बना हुआ है।

कहा जा रहा है कि इस चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में भाजपा खुद को सहज महसूस नहीं कर रही है। वहीं कांग्रेस भी इस बार बाजी पलट देने की उम्मीद में है। मालवा क्षेत्र के कुछ किसानों का कहना है कि इस बार कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि इस बार चुनाव कौन जीतेगा। उनका कहना था कि भाजपा के गढ़ मालवा क्षेत्र में राजनीति पिछले एक साल में खासतौर पर मंदसौर में गोलीकांड की घटना के बाद काफी हद तक बदल गई है।

बता दें पिछले साल जून में छह किसानों की मौत हो गई थी जब पुलिस ने बेहतर कीमतों की मांग कर रहे किसान प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं। इसके अलावा सूखे से प्रभावित इस क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के कई मामले दर्ज किए गए हैं।

जिसके बाद से यहां की राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। वहीं जानकारों के अनुसार इस घटना से न केवल मंदसौर जिले में किसानों का गुस्सा भड़का बल्कि पूरे मालवा क्षेत्र और कुछ हद तक निमाड़ क्षेत्र में भी इसका असर पड़ा। मालवा क्षेत्र में अगर, देवास, धार, इंदौर, झाबुआ, मंदसौर, नीमच, राजगढ़, रतलाम, शाजापुर, उज्जैन जिले शामिल हैं।

जानकारी के अनुसार मालवा क्षेत्र में कुल 50 विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें पिछले दो चुनावों में भाजपा ने अधिकांश सीटें जीती हैं। यहां भाजपा ने 2008 के चुनावों में इस क्षेत्र में 50 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं। और 2013 के चुनावों में 45 सीटों पर जीत दर्ज कराई थी।

जिसके चलते 2013 के चुनावों में भाजपा ने प्रदेश की 230 सीटों में से 165 जीती थीं, जो पिछले चुनावों के मुकाबले में लगभग 22 सीटें ज्यादा थीं। जीती गई अतिरिक्त 22 सीटों में से 18 सीटें मालवा क्षेत्र से जीती गईं थी।

इसलिए है विरोध:
राजनीति के जानकार डीके शर्मा की माने तो सत्ता विरोध लहर के अलावा भाजपा जिन बातों से सबसे ज्यादा परेशान है वो इस प्रकार हैं- बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत, प्रदेश में अपराध का बढ़ता ग्राफ, कृषि मुद्दों और सबसे बढ़कर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम का मुद्दा। ऐसे में जहां प्रदेश में भाजपा कमजोर होती दिख रही है, वहीं कांग्रेस इसका सीधे तौर पर फायदा उठाने की कोशिशों में जुटी दिखती है।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो