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इस वर्ष रथ यात्रा 23 जून से प्रस्तावित थी। यह 29 दिन का उत्सव होता है। आठ से दस लाख भक्त देश विदेश से रथयात्रा के दौरान आते हैं। मिली जानकारी के अनुसार ओडिशा विकास परिषद नामक एनजीओ की ओर से रथयात्रा पर रोक लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि रथयात्रा में आठ से दस लाख लोग हिस्सा लेते हैं, ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा है। इस पर सुप्रीमकोर्ट के चीफजस्टिस एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कोविड-19 महामारी के कारण रथयात्रा के आयोजन पर निर्णय दिया।चीफजस्टिस ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यदि वह जगन्नाथ रथयात्रा की अनुमति देते हैं तो भगवान जगन्नाथ भी माफी नहीं देंगे। इस तरह सुरक्षा की दृष्टि से इस बार रथयात्रा के आयोजन पर रोक लगा दी गई है। रथयात्रा पर सुप्रीमकोर्ट के आदेश आते ही ओडिशावासियों को तगड़ा झटका लगा है। पुरी में तो साधु सन्यासी, सेवायतों की आंखों से अश्रू बहने लगे।
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा का महत्व, पुण्य और इतिहास: जानिये इस बार क्यों लगी रोकी?
500 साल के इतिहास पर डाले नजर…
पिछले 500 साल के इतिहात में 32 बार विभिन्न कारणों से रथयात्रा स्थगित करनी पड़ी है। किसी महामारी ने पहली बार रथयात्रा का रास्ता रोका है। इसके अलावा विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के कारण पांच बार ऐसे मौके भी आए जब रथयात्रा ओडिशा में ही पुरी से बाहर आयोजित करनी पड़ी। सेवकों की ओर से चतुर्धा विग्रहों (श्रीजगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा और सुदर्शन चक्र) को चुपके से बाहर ले जाकर पुरी और खोरदा जिलों के गांवों में रथयात्रा आयोजित की गई।
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आक्रांताओं के हमले के समय यूं निकली रथयात्रा…
काला पहाड़ के आक्रमण के कारण वर्ष 1568 से 1577 तक 9 साल तक रथयात्रा नहीं हुई थी। 1611 में मुगल सेनापति कल्याण मल के हमले के कारण एक साल रथयात्रा नहीं हुई। 1622 में अहमद बेग के चलते रथयात्रा रोकी गई। 1692 से लेकर 1704 के दौरान मुस्लिम आक्रांता इकराम खान के कारण 13 बार रथयात्रा नहीं हो सकी थी। फिर 1601 में मिर्जा खुर्रम आलम के कारण एक बार, 1607 में हाशिम खान के हमले के चलते एक बार, 1735 में तकी खान के आक्रमण के चलते तीन साल रथयात्रा नहीं हुई थी। यह सूचना श्रीजगन्नाथ जी के इतिहास की पुस्तिका में दर्ज बताई जाती है। बताते हैं कि सेवक विग्रहों को अन्यत्र ले जाते थे। यह भी बताया जाता है कि विदेशी आक्रांताओं से जगन्नाथ संस्कृति और पुरी जगन्नाथ मंदिर की रक्षा के लिए शंकराचार्य की ओर से पुरी में नागा साधुओं का एक मठ स्थापित किया गया था। मंदिरों की सुरक्षा इन नागा साधुओं के जिम्मे थी।
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गौरतलब है कि मंदिर समिति की ओर से रथ यात्रा के तैयारियां पूरी तरह से चल रही थी। कुशल कारीगरों से रथ का निर्माण कराया जा रहा था। सभी कारीगरों की रहने की व्यवस्था अलग से की गई थी। इनका कोविड—19 टेस्ट भी किया जाता रहा। सोशल डिस्टेंसिंग व अन्य नियमों की पालना करते हुए यह रथ का निर्माण करते रहे। अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से रोक लगाने के बाद इनकी मेहनत पर भी पानी फिर गया है। इससे पहले मंदिर समिति प्रतीकात्मक तौर पर रथ यात्रा निकालने पर विचार कर रही थी। यह रथ यात्रा बिना भक्तों के होती। इसमें सेवायतों की ओर से ही रथ को खींचकर गुंडिचा मंदिर तक ले जाए जाने का प्रस्ताव रखा गया था।