सुबह से दोपहर दो—ढाई बजे तक बेचते हैं फल
दोपहर में करीब दो घंटे तक बांटते हैं खाने के पैकेट
रोज की कमाई से आधा हिस्सा लगाते हैं मदद करने में
बिजनौर। कोरोना (Corona) के बचाव के लिए पूरे देश में 14 अप्रैल (April) तक लॉकडाउन (Lockdown) लागू है। इस दौरान गरीबों और जरूरतमदों की मदद के लिए कई लोग आगे आए हैं। सभी अपने—अपने सामर्थ्य के अनुसार दूसरों की मदद कर रहे हैं। कई संस्थाएं और प्रशासन दिहाड़ी मजदूरों को खाना खिला रहे हैं। ऐसे में बिजनौर (Bijnor) के शकील अहमद भी लोगों को खाने के पैकेट बांट रहे हैं। खास बात यह है कि शकील अहमद फलों की ठेली लगाते हैं। वे अपनी दिनभर की कमाई में से आधे रुपये लोगों की मदद में लगा रहे हैं।
परिवार भी रहता है साथ फलों की ठेली लगाने वाले शकील अहमद आजकल दोपहर के समय बिजनौर रेलव स्टेशन (Bijnor Railway Station) और बस अड्डे वाली रोड पर एक ठेली में खाने के पैकेट लिए दिख जाएंगे। उनके साथ उनका परिवार भी इस नेक काम में मदद करता है। शकील के साथ उनका बेटा व बेटी, भाभी और एक मासूम बच्चा ठेली के साथ में रहते हैं। रास्ते में ये आवाज लगाते हुए जाते हैं कि अगर किसी को खाने की जरूरत हो तो पैकेट ले लें। इससे जो भी जरूरतमंद इनके पास आता है, ये उसको खाने का पैकेट दे देते हैं।
करीब 600 रुपये की होती है आमदनी शकील अहमद कोतवाली शहर बिजनौर के मोहल्ला लडापुरा के रहने वाले हैं। लॉकडाउन से पहले वह बस अड्डे पर फलों की ठेली लगाकर परिवार का पेट पालते थे। अब प्रशासन ने सबको क्षेत्र बांट दिए हैं। इस वजह से अब शकील बस अड्डे और रेलवे स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों में फल बेच रहे हैं। इस तरह से शकील को रोजाना करीब 600 रुपये की आमदनी हो जाती है। इनमें से आधी कमाई लगभग 300 रुपये से वह लोगों को खाना खिला रहे हैं। इसके लिए वह अपने घर पर ही खाना बनवाते हैं और फिर रोजाना करीब 25—30 पैकेट जरूरतमंदों को देते हैं। शकील सुबह से लेकर दोपहर दो—ढाई बजे तक तो फल बेचते हैं। इसके बाद वह करीब दो घंटे ठेली पर लोगों को लंच पैकेट बांटते हैं।
शकील बोले— एक—दूसरे का ख्याल रखेंगे तो इस विपदा से भी निपट पाएंगे शकील अहमद का कहना है कि आज देश कोरोना वायरस की वजह से विपदा में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों को इस मुसीबत से निकालने के लिए प्रयास कर रहे हैं। लोग परेशानी में हैं। हम सभी का दायित्व बनता है कि जिससे जो हो सके, वह एक—दूसरे की मदद करता रहे। अगर हमने एक—दूसरे की मदद नहीं की तो हालात बिगड़ जाएंगे। अगर हम इस मुसीबत के समय में एक—दूसरे का ख्याल रखेंगे तो इस विपदा से भी निपट पाएंगे। शकील अहमद के परिवार के लोग खुद खाना बनाते हैं और खुद ही पैकिंग करके लोगों को बांटते हैं।