
पीड़िता की उम्र निर्धारण के लिए मैट्रिक का सर्टिफिकेट निर्णायक (Photo source- Patrika)
High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के दोषी की 10 साल की सजा को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत की पुष्टि की। कोर्ट ने कहा कि यदि मैट्रिक का प्रमाण पत्र उपलब्ध और प्रामाणिक है, तो पीड़िता की उम्र निर्धारित करने के लिए इसे निर्णायक सबूत माना जाएगा।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने आपराधिक अपील को खारिज कर कहा कि पीड़िता की सुसंगत गवाही दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी। चूंकि यह साबित हो गया था कि वह 18 साल से कम उम्र की थी, इसलिए इसलिए उसकी सहमति कानूनी रूप से निरर्थक थी।
मामले के आरोपी योगेश पटेल ने विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो अधिनियम), भानुप्रतापपुर, जिला उत्तर बस्तर कांकेर के 31 दिसंबर 2021 के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। इसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एन) के तहत दोषी ठहराया गया था और 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
पुलिस जांच में पीड़िता और आरोपी की मेडिकल जांच के साथ गवाहों के बयान दर्ज किए गए। उसकी उम्र सत्यापित करने के लिए पीड़िता के स्कूल रिकॉर्ड सहित अन्य दस्तावेज जब्त किए। अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि कानून और सबूतों के विपरीत थी। पीड़िता की उम्र और मेडिकल सबूतों से बलात्कार के आरोप साबित नहीं होते। पीड़िता की गवाही में विरोधाभास थे। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि पीड़िता और अपीलकर्ता लंबे समय से रिश्ते में थे।
High Court: हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान दस्तावेजी साक्ष्यों-स्कूल प्रवेश रजिस्टर, प्रगति रिपोर्ट और हाई स्कूल अंक-तालिका को निर्णायक मानते हुए पाया कि पीड़िता की जन्मतिथि 29 मई 2001 है। इस आधार पर फरवरी 2018 की घटना के समय उसकी उम्र लगभग 16 वर्ष 9 माह थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 18 वर्ष से कम उम्र में सहमति या असहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है। निचली अदालत का फैसला सही ठहराते हुए हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सजा बरकरार रखी। जेल में बंद अपीलकर्ता को शेष सजा पूरी करनी होगी।
Updated on:
28 Aug 2025 12:37 pm
Published on:
28 Aug 2025 12:36 pm
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