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शोले का वो शानदार अभिनेता जो कपड़े सिलने का करता था काम, 52 साल की उम्र में रखा फिल्मों में कदम

AK Hangal: 50 साल पहले आई शोले का वो किरदार जिसका नाम था 'रहीम चाचा'। इस किरदार को निभाने वाले वेटरन एक्टर ए.के. हंगल, फिल्मों में आने से पहले स्वत्रंत्रता सेनानी रहे, दर्जी का कमा भी किया। 3 साल कराची की जेल में भी बंद रहे।

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मुंबई

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Rashi Sharma

Aug 28, 2025

AK Hangal

ए.के. हंगल की तस्वीरें। (फोटो सोर्स: X)

AK Hangal: बॉलीवुड फिल्मों में कई ऐसे किरदार होते हैं जो हमेशा के लिए यादगार बन जाते हैं। ऐसे किरदार लोगों के जेहन में सालों बाद भी रहते हैं। ऐसा ही एक किरदार था शोले में और उसका नाम था 'रहीम चाचा'। 50 साल पहले आई शोले के रहीम चाचा के किरदार को वेटरन एक्टर ए.के. हंगल ने निभाया था। फिल्म में रहीम चाचा का एक डायलॉग था, 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई…', काफी फेमस हुआ था। आज भी अकसर लोग ये डायलॉग बोलते नजर आते हैं।

स्वतंत्रता सेनानी थे ए.के. हंगल (Freedom Fighter AK Hangal)

किताब 'Life & Times of A K Hangal' में एक्टर की जिंदगी से जुड़े कई पहलुओं और किस्सों के बारे में बताया गया है। इस बुक में उनके अभिनय करियर की शुरुआत और अभिनय में आने से पहले की जिंदगी के बारे में भी बताया गया है। 1 फरवरी 1914 को ए.के. हंगल का जन्म पंजाब के सियालकोट में कश्मीरी पंडितों के घर में हुआ था। उनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल था। आजादी की लड़ाई के दौरन जब 16 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड की खबर देश में आग की तरह फैली तब हंगल साहब मात्र 15 साल के थे और उस छोटी सी उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का जुनून देखकर वो भी आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।

किया टेलरिंग यूनियन का गठन (AK Hangal Formed Tailoring Union)

धीरे-धीरे समय बीतता गया और 1946 में उनके पिता के रिटायर होने के बाद पूरा परिवार पेशावर से कराची आ गया। पिता के रिटायर होने के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी। और ए.के. हंगल के पिता के दोस्त ने उनको सिलाई का काम सीखने की सलाह दी। इसके बाद ही उन्होंने इंग्लैंड के एक दर्जी से सिलाई की कला भी सीखी। कुछ सालों तक दर्जी का काम भी किया। इतना ही नहीं उन्होंने पाकिस्तान में रहते हुए ही टेलरिंग यूनियन का गठन किया।

कराची की जेल में रहे 3 साल बंद

मगर ए.के. हंगल ने अभी भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना बंद नहीं किया। और आखिरकार देश आजाद हुआ, मगर आजादी मिलने के साथ ही देश के दो टुकड़े हो गए और दंगे भड़क गए मगर उनका परिवार कराची में ही रुका रहा। पेशावर में रहते हुए ही हंगल रंगमंच से जुड़ गए थे और ड्रामा में हिस्सा लेने लगे थे। कराची में भी उन्होंने रंगमंच नहीं छोड़ा और इंडियन पीपुल थिएटर एसोसिएशन (IPTA) जॉइन कर लिया, इसी दौरान उनकी मुलाकात कैफी आजमी और और बलराज साहनी से हुई। मगर उनकी विचाधारा की वजह से अंग्रेजों ने उनको पाकिस्तान स्थित कराची की जेल में बंद कर दिया। और आजादी मिलने के बाद भी वो 3 साल तक रहे।

जेल से निकलने के बाद छोड़ दिया पाकिस्तान

1949 में कराची की जेल से निकलने के बाद ए.के. हंगल अपने पूरे परिवार के साथ पाकिस्तान छोड़कर भारत आ गए और बॉम्बे के एक चॉल में रहने लगे। परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने टेलरिंग का काम शुरू कर दिया और यहां भी उन्होंने टेलरिंग वर्कर्स यूनियन का भी गठन किया। अब उनको थियेटर का शौक तो हमेशा से ही था इसलिए उन्होंने फिर से ड्रामा और रंगमंच से जुड़ने का फैसला किया। उन्होंने 1949 से 1965 तक कई बड़े-बड़े नाटकों में हिस्सा लिया।

52 साल की उम्र में फिल्मों में आए

एक दिन थियेटर में ए.के. हंगल पर डायरेक्टर बासु भट्टाचार्य की नजर पड़ी। उन्हें अभिनेता की अदाकारी इस कदर पसंद आई कि उन्होंने तुरंत उनको अपनी फिल्म तीसरी कसम में राज कपूर के बड़े भाई की भूमिका निभाने का ऑफर दे दिया। ए.के. हंगल ने भी बिना देरी किये हां कर दी। और करते भी क्यों नहीं जब रोल भी राज कपूर के बड़े भाई का मिल रहा था। उस समय उनकी उम्र थी 52 साल और 52 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में कदम रखा। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अपने 59 साल के फिल्मी करियर में ए.के. हंगल ने करीब 250 फिल्मों में करेक्टर आर्टिस्ट के रूप में काम किया। वो राजेश खन्ना के साथ भी कई फिल्मों में नजर आए। लोगों ने उनके अभिनय को बहुत पसंद किया। उनकी फिल्मों में ‘शोले’, ‘नमक हराम’, ‘आंधी’, ‘बावर्ची’, ‘लगान’ 'सात हिंदुस्तानी', 'किस्मत', 'जाग्रति', 'गुड्डी' और ‘शरारत’ जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं। ए.के. हंगल के किरदारों में खास बात ये थी कि वो फिल्मों में कभी चाचा तो कभी काका या फिर पिता और बड़े भाई के रोल में ही नजर आये थे।