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जब सुनील दत्त ने सुनाई बंटवारे की दर्दनाक दास्तां, बिछड़ गया था पूरा परिवार

Last Interview of Legendary Actor Sunil Dutt: सुनील दत्त साहब की जिंदगी हमेशा सुर्खियों में रही कभी पत्नी को लेकर तो कभी बेटे को लेकर। चलिए आज उनके आखिरी इंटरव्यू की कुछ हैरान कर देने वाली बातों के बारे में जानते हैं।

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मुंबई

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Rashi Sharma

Sep 12, 2025

Legendary Actor Sunil Dutt

जब सुनील दत्त ने सुनाई बंटवारे की दर्दनाक दास्तां। (फोटो सोर्स: @duttsanjay and X)

Last Interview of Legendary Actor Sunil Dutt: सुनील दत्त, सिर्फ नाम ही काफी है, जिन्हें इंडस्ट्री के लोग दत्त साहब भी कहते थे। सुनील दत्त अपनी रील और रियल दोनों लाइफ के हीरो थे। उनकी चाल हो या बात करने का अंदाज दोनों के ही लोग मुरीद थे। परेश रावल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘मैंने मदर टेरेसा को नहीं देखा लेकिन दत्त साहब को देखा है’ तो वहीं अमिताभ बच्चन ने अपने बेटे से कहा था कि ‘अगर चलना सीखना है तो दत्त साहब की तरह चाल चलना सीखो वो एक पैंथर की तरह चलते हैं।‘ दत्त साहब की लाइफ हमेशा सुर्खियों में रही कभी पत्नी को लेकर तो कभी बेटे संजय दत्त को लेकर। चलिए उनकी लाइफ के कुछ और किस्सों के बारे में जानते हैं।

सुनील दत्त का आखिरी इंटरव्यू (Last Interview of Legendary Actor Sunil Dutt)

सुनील दत्त का असली नाम बलराज दत्त था और वर्तमान पाकिस्तान के खुर्द गांव के रहने वाले थे। सुनील दत्त ने अपने जीवन के अंतिम इंटरव्यू में भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan) के विभाजन के समय की कहानी को साझा किया कि वो कैसे भारत आए। उन्होंने रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि, ‘विभाजन के समय उनकी मां और भाई, बहन की जान एक मुस्लिम ने बचाई थी, जो उनके पिता का दोस्त था जिनका नाम याकूब था और वो हमारे घर से डेढ़ मील दूर रहते थे, उन्होंने हमें झेलम, भागने में मदद की थी।‘

अंतिम संस्कार और शादी दोनों होते देखा

‘वो समय बहुत भयानक था। मैं अपने भाई, बहन और मां के साथ अंबाला के एक रिफ्यूजी कैम्प में था. जहां मैंने अंतिम संस्कार और शादी दोनों होते देखा। मैं पांच साल का था तब मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी और मुझे अपनी मां और दो भाई-बहनों के साथ भारत आना पड़ा, लेकिन वो सब मुझसे अलग हो गए। बहुत ढूंढने पर भी वो मुझे जब नहीं मिले तो मैंने सोच लिया कि उनके साथ भी वही हुआ होगा जो बाकी लोगों के साथ हुआ था।‘

और एक आवाज आई, 'बलराज'

‘मैं अम्बाले में था तो एक तांगा मेरे पास से गुजरा और एक आवाज आई, 'बलराज', तो मैंने कहा यहां कौन जानता है मुझे, वो मेरा एक रिश्तेदार था वहां पर वो तांगे में जा रहा था। वो मुझे अपने चाचा के पास ले गया जो अंबाले के एसपी थे, जिनके वजह से वो सही सलामत था तो हम उन्हीं की यानि बाली साहब की कोठी में चले गए. जब मैं तांगे से उतरा तो मैंने सामने देखा कि मेरी मां खड़ी है, वही मैले कुचैले कपड़े पहने हुए, जो कई महिनो से धोए नहीं होंगे। मेरा भाई शॉर्ट्स पहने खड़ा है, मेरी बहन गंदे से कपड़े पहने खड़ी हुई है।‘

आपको बता दें, दत्त साहब ने शांति और सद्भाव का प्रचार करने के लिए पंजाब में 500 किलोमीटर पैदल यात्रा की थी। उन्हें साल 1968 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। साल 2005 में 75 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था।