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अपने पिता की दर्दनाक मौत देखकर, संजय लीला भंसाली को आया था इस फिल्म का आइडिया

locationनई दिल्लीPublished: Nov 19, 2021 04:10:09 pm

Submitted by:

Satyam Singhai

संजय लीला भंसाली वह डायरेक्टर हैं जिनका विवादों से लंबा नाता रहा है। साल 2017 में आई उनकी फिल्म पद्मावत का विरोध पूरे देश भर में देखा गया। हालांकि फिल्म सक्सेसफुल रही। इससे पहले उनकी फिल्म रामलीला आई यह भी अपने के चलते देशभर में विवादों में रही। आज हम लेकर संजय की फिल्मों से जुड़ा एक ऐसा ही रोचक किस्सा।

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अपने पिता की दर्दनाक मौत देखकर, संजय लीला भंसाली को आया था इस फिल्म का आइडिया

संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में अक्सर भव्य सेटों और साज सज्जा का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा वे डांस के लिए भी उनकी फिल्मों में विशेष स्थान होता है। एक इंटरव्यू में संजय ने बताया था कि इसकी प्रेरणा उन्हें उनकी मां से मिलती है। उनकी मां एक नर्तकी थीं।
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12 जुलाई 2002 में संजय लीला भंसाली की फिल्म देवदास रिलीज हुई। यह फिल्म मुख्यत शरतचंद्र चट्टोपध्याय के उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में शाहरूख खान और संजय लीला भंसाली पहली बार साथ काम कर रहे थे। संजय ने शाहरूख को इस फिल्म की कहानी सुनाते वक्त ही कह दिया था। कि फिल्म तभी बनेगी जब वे यानि शाहरूख इसके लिए हां कहेंगे। शाहरूख ने फिल्म के लिए मना नहीं किया। और फिल्म बनाई गई।
संजय ने एक से अधिक बार बताया है कि उनकी पिता से कभी नहीं बनी। उनके पिता प्रोड्यूसर थे। लेकिन उनकी फिल्में ज्यादा नहीं चलीं थी। जिसके चलते वे शराब के नशे में लिप्त रहने लगे। उन्हें अपने परिवार तथा बच्चों की कोई परवाह नहीं थी। वह केवल शराब पीकर पड़े रहते थे।
संजय ने बताया कि उनकी मां साबुन की टिकिया बेचकर बच्चों का पालन पोषण करती और परिवार का खर्च चलाती। इसी दौरान उऩके पिता को लीवर की गंभीर बीमारी हो गई। जिसके चलते वो कोमा में चले गए। जब वह कोमा से बाहर आए तो उनकी मौत निकट थी। अपने अतिंम समय में उन्होनें संजय की मां लीला को पास बुलाया। उनसे प्यार का इजहार किया। लेकिन जैसे ही लीला ने उनका हाथ थामा उनकी मृत्यु हो गयी।
कुछ इसी तरह की कहानी हमें देवदास फिल्म में देखने को मिलती जहां देवदास अपने अंतिम समय में पारो के घर तक पहुंचता है लेकिन जब तक पारो उसके पास आती है उसकी मौत हो जाती है।
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इसके अलावा फिल्म का एक सीन हैं जहां देवदास अपने पिता के श्राद्ध पर शराब के नशे में पहुंचते हैं। और अपनी मां के बगल में बैठकर एक अंजान आदमी की तरह सहानुभूति देता है। दरअसल यह सीन भी संजय की निजी जिंदगी से ही जुड़ा है। एक बार संजय के घर में उनकी दादी का श्राद्ध चल रहा था। तभी उनके पिता शराब पीकर पहुंचे। शराब का नशा इतना था कि संजय के पिता वहीं बेहोश हो गए। जिसके बाद संजय की मां ने उन्हें संभाला।
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