
बुरहानपुर. वर्ल्ड हैरिटेज डे (world heritage day) के मौके पर आपको बताते हैं एक ऐसे अभेद..अजेय किले के बारे में जिसे कभी भी किसी भी शासक ने अपने सैन्य बल की ताकत से जीतने की कोशिश की तो उसे मुंह की खानी पड़ी। ये किला है असीरगढ का,बुरहानपुर जिला मुख्यालय से इंदौर-इच्छापुर हाइवे पर 20 किलोमीटर दूर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला पर बने असीरगढ़ के किले में सैकड़ों कहानियां दफन हैं। यह किला तीन भागों में विभाजित है जिनमें से ऊपरी हिस्सा असीरगढ़, बीच का कमरगढ़ और निचला मलयगढ़ कहलाता है।
world heritage day पर PATRIKA.COM पर जानिए असीरगढ़ किले के रोचक किस्से...
बिना छल के कभी नहीं जीता जा सका असीरगढ़ किला
असीरगढ़ किले का इतिहास जानने से पहले ये जान लीजिए कि जितने भी शासकों ने असीरगढ़ के किले पर विजय हासिल की वो छल कपट से ही इस किले को जीत पाए। जब कभी भी किसी शासक ने इसे सैन्य बल की ताकत से जीतने की कोशिश की तो उसे कामयाबी नहीं मिली। जमीन से 750 मीटर ऊंचाई पर करीब 60 एकड़ में फैले असीरगढ़ के किले के बारे में जब अकबर को पता चला तो वो भी इस पर कब्जा करने का मन बना बैठा। तब अकबर का स्रामाज्य पूरे देश में था, उस समय असीरगढ़ बहादुरशाह फारूखी के कब्जे में था। जब बहादुरशाह फारूखी को अकबर के मंसूबों के बारे में जानकारी लगी तो उसने किले की व्यवस्था इतनी दुरुस्त और शक्तिशाली तरीके से की कि किले में 10 साल तक खाने की वस्तुएं उपलब्ध हो सकतीं थीं। ऐसे में अकबर को छह महीने तक इस किले के नीचे खड़ा रहना पड़ा था। सम्राट कहे जाने वाले अकबर ने असीरगढ़ पर आक्रमण तो किया लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद अकबर ने एक रणनीति तैयार की और बहादुरशाह को संदेश भेजकर बातचीत करने के लिए बुलाया। बहादुरशाह अकबर पर विश्वास कर बातचीत करने के लिए आया तो उस पर धोखे से पीछा हमलाकर अकबर ने उसे घायल कर बंदी बना लिया इस तरह से 1601 ई. को असीरगढ़ के किले पर अकबर का कब्जा हुआ। उसके बाद भी शासक आए लेकिन अंत में 1904 ई. में इस पर अंग्रेज़ी सेना ने निवास किया।
किले के इतिहास की अलग अलग कहानियां
इस किले का निर्माण कब हुआ इसके बारे में अलग अलग कहानियां हैं। कुछ लोग इसे अश्ववत्थामा की पूज्य स्थली बताते हैं तो कुछ इसे एक सूफी संत का स्थान बताते हैं वहीं कुछ लोग इसे आशा अहीर नाम के व्यक्ति से जुड़ा बताते हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि से आशा अहीर नाम के व्यक्ति ने इसे बनाया था। बताया जाता है कि आशा अहीर के पास अनगिनत पशु थे। जिनकी सुरक्षा के लिए उसने इस स्थान को चुना था लेकिन तब यहां एक तेजस्वी सूफी संत रहा करते थे। जिनका नाम था हजरत नोमानन चिश्ती था सूफी संत से आशा अहीर ने मिन्नत की थी और अपने परिवार व पशुओं की सुरक्षा करने का निवदेन किया था। संत मान गए जिसके बाद आशा अहीर ने यहां अपना और ठिकाना बनाया। जिसे बाद में छल से फिरोजशाह तुगलक के एक सिपाही मलिक ख़ां के पुत्र नसीर ख़ां फारूकी ने अपने कब्जे में ले लिया। आदिलशाह फारूकी के मरने के बाद असीरगढ़ पर बहादुरशाह फारूखी ने कब्जा किया।
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अश्वत्थामा के भटकते रहने की चर्चाएं
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि अश्वत्थामा लगभग पिछले पांच हजार सालों से यहीं भटक रहे हैं। और किले के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में अश्वत्थामा अमावस्या और पूर्णिमा पर भगवान शिव की उपासना करने आता है। हालांकि, ये सिर्फ लोगों की मान्यता है। अब तक कहीं से भी इस मान्यता की पुष्टि नहीं हुई है।
यहां कैसे पहुंचे ?
असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है। 20 किमी का यह छोटा सफर आप स्थानीय परिवहन साधनों की मदद से पूरा कर सकते हैं। बुरहानपुर का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। रेल मार्ग के लिए आप बुरहानपुर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं।
Published on:
16 Apr 2021 09:25 pm
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