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दोस्‍त की ई-मेल से हैकर ने पूर्व CJI को लगाया चूना

locationनई दिल्लीPublished: Jun 03, 2019 02:23:00 pm

Submitted by:

Dhirendra

पहले हैकर्स ने लोढा के दोस्‍त रिटायर्ड जस्टिस बीपी सिंह की ई-मेल आईडी हैक की
दोस्‍त की ई-मेल से मैसेज भेज मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर मांगी मदद
पूर्व सीजेआई लोढा की ई-मेल पर बातचीत होती थी इसलिए उन्‍होंने संदेह नहीं किया

rm lodha
नई दिल्ली। अब हैकर्स की पकड़ से कोई भी अछूता नहीं है। ऐसे ही एक मामले में सेवानिवृत्त सीजेआई आरएम लोढा से हैकर्स ने एक लाख रुपए की ठगी कर ली। इस काम को अंजाम देने के लिए हैकर्स ने पहले लोढा के दोस्त सेवानिवृत्त न्‍यायाधीश बीपी सिंह की ई-मेल आईडी हैक की। इसके बाद दोस्‍त जज की ई-मेल आईडी से उन्हें मैसेज भेज मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर मदद मांगी। पूर्व सीजेआई की ई-मेल पर अपने दोस्‍त जज से बातचीत होती थी इसलिए उन्‍हें संदेह नहीं हुआ और उन्‍होंने पैसे ट्रांसफर कर दिए। बाद में पता चला कि हैकर्स ने उन्‍हें चूना लगा दिया।
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जांच में जुटी पुलिस

इस घटना के बाद लोढा ने दिल्‍ली पुलिस को दी शिकायत में बताया कि उस मेल आईडी के जरिए उनका अपने दोस्त से लगातार संवाद होता था। ऐसे में उन्होंने उसमें दिए गए बैंक अकाउंट में दो बार में रुपए ट्रांसफर कर दिए। बाद में पता चला कि वह खाता हैकर्स के कब्जे में था। यह घटना अप्रैल की है। बाद में जब सेवानिवृत्त जस्टिस सिंह ने बताया कि उनकी आईडी हैक हुई थी तो पूरा मामला खुला। मालवीय नगर पुलिस इसकी जांच कर रही है।
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41वें सीजेआई रहे हैं लोढा

आपको बता दें कि 69 साल के सेवानिवृत्त न्‍यायाधीश लोढा भारत के 41वें मुख्‍य न्‍यायाधीश रह चुके हैं। इससे पहले वह पटना हाईकोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश थे। उन्होंने राजस्थान और बॉम्बे हाईकोर्ट में भी जज के रूप में काम किया है।
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क्रिकेटनेक्‍स्‍ट के तरीके पर उठा थे सवाल

पूर्व सीजेआई आरएम लोढा को भारतीय क्रिकेट में स्पॉट फिक्सिंग विवाद के बाद बोर्ड में बदलाव की शुरुआत का श्रेय जाता है। जनवरी, 2019 में उन्‍होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीसीसीआई के लिए नियुक्त निकाय प्रशासकों की समिति (सीओए) की आंतरिक कार्यशैली पर सवाल उठाया था। इस बात को लेकर लोढा का कहना है कि यह वह तरीका नहीं है, जिस तरह सीओए काम करता है। यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त की गई निकाय है। इससे सामूहिक रूप से कार्य करने की उम्मीद है। यदि किसी मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होता है, तो इसे सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में लाना चाहिए। इसलिए तीसरे सदस्य को नियुक्त किया जा सकता है और बहुमत से निर्णय लिया जा सकता है। जब तक दो सदस्य हैं तब तक निर्णय एकमत से होना चाहिए।
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