
UP Election 2022 चुनाव में अंगुली से नहीं मिटती नीली स्याही क्यों, जानें वजह
यूपी में इस वक्त नई सरकार चुनने के लिए विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। लोकतंत्र के लिए चुनाव एक पर्व माना जाता है। यूपी चुनाव 2022 के दो फेज की वोटिंग पूरी हो चुकी है। 20 फरवरी को विधानसभा चुनाव 2022 के तीसरे फेज की वोटिंग होने जा रही है। वोट डालने से पहले आपकी किसी भी अंगुली के पोरों पर सरकारी कर्मचारी नीले रंग की स्याही लगा देता है। और उसे आप माना भी नहीं कर पाते हैं। और फिर यह नीले रंग की स्याही छूटने में कई दिन लगा जाते हैं। पर इस स्याही को दिखाकर आप गर्व से कहते हैं कि मैंने वोट दिया है। पर कभी सोचा है कि आखिरकार यह नीले रंग की स्याही क्यों लगाई जाती है। और यह किस चीज की बनी होती है की तुरंत क्यों नहीं मिटती है।
इलेक्शन इंक किस चीज की बनती है जानें
उंगली में वोट देने से पहले लगने वाली स्याही आसानी से क्यों नहीं मिटती है और यह किस चीज की बनी होती है। आइए इसका उत्तर तलाशते हैं। इस स्याही का प्रयोग इसलिए शुरू किया गया है कि वोटिंग के दौरान बहुत ही घपला होता था। दबंग वोट देने के बाद भी दोबारा से वोट दे देते थे। जिससे चुनाव परिणाम प्रभावित होता था। जब सरकार को प्रत्याशियों की इस कारगुजारी का पता चला तो इसे रोकने के लिए उसने एक योजना बनाई।
धांधली रोकने में मददगार इलेक्शन इंक
उसने वोट किए व्यक्ति की पहचान के लिए एक इंक बनाई। जिसे पोलिंग बूथ पर वोट देने से ठीक पहले उंगली पर लगाई जाती है। उंगली पर लगने वाली यह स्याही लंबे समय तक मिटती नहीं है। इस तरकीब से दोबारा वोट देने वाले केसों में भारी कमी आई है। भारत में इस स्याही को सिर्फ एक ही कंपनी बनाती है। मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) इस चमत्कारी नीली स्याही का उत्पादन करती है। साल 1937 में इस कंपनी की स्थापना हुई थी। उस समय मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्णराजा वडयार ने इसकी शुरुआत की थी।
एमवीपीएल का उत्पाद है इलेक्शन इंक
मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (एमवीपीएल) कंपनी की यह स्याही आम दुकानों पर नहीं मिलेगी। इस स्याही को प्रयोग करने का अधिकार सिर्फ सरकार या फिर चुनाव से जुड़ी एजेंसियां के पास ही है। एमवीपीएल कंपनी, भारत में इस फुलप्रूफ स्याही का एकमात्र अधिकृत आपूर्तिकर्ता है। राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम ने वर्ष 1962 में इसके लिए कम्पनी को विशेष लाइसेंस दिया है। इस स्याही की आपूर्ति के लिए वर्ष 1962 में, ईसीआई ने केंद्रीय कानून मंत्रालय, राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला और इस निगम के सहयोग से चुनावों के लिए स्याही की आपूर्ति का समझौता किया था।
कैसे बनता है इलेक्शन इंक जानिए ?
चमत्कारी नीली स्याही सिल्वर नाइट्रेट केमिकल के इस्तेमाल से बनाया जाता है। स्याही लगने के बाद इसमें मौजूद सिल्वर नाइट्रेट शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है। जब सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता है तो त्वचा के सम्पर्क में आता है। जैसे ही स्याही पानी के संपर्क में आती है, इसका रंग बदलकर काला हो जाता है और फिर यह मिटाने पर भी नहीं मिटता है।
इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक का रंग है जोरदार
इस स्याही को मिटाने में वैसे तो कम से कम 72 घंटे लगते हैं। उससे पहले काफी कोशिशों के बाद भी इस इंक को नहीं मिटाया जा सकता है। जैसे जैसे त्वचा के सेल पुराने हो जाते हैं, और वो उतरने लगते हैं तो स्याही का रंग भी फीका पड़ने लगता है। इस स्याही को लोग इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक के नाम से जानते हैं।
दूसरे देशों में भी है इलेक्शन इंक की सप्लाई
चुनाव आयोग ने रिवोटिंग रोकने के लिए अमिट स्याही का प्रयोग शुरू किया था। चुनाव 1962 से इलेक्शन इंक का प्रयोग किया जा रहा है। एमवीपीएल कंपनी भारत के अलावा कई दूसरे देशों में भी चुनावी स्याही की सप्लाई करती है।
Published on:
19 Feb 2022 12:29 pm
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