scriptफाल्गुन मास में होली का पर्व 7-8 मार्च को, देश के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने की हैं अलग-अलग परम्परा, कभी आपने खेली है गुलाल गोटों से होली…? | Falgun Month Start- When will celebrate Holi , Interesting Facts | Patrika News

फाल्गुन मास में होली का पर्व 7-8 मार्च को, देश के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने की हैं अलग-अलग परम्परा, कभी आपने खेली है गुलाल गोटों से होली…?

Published: Feb 06, 2023 12:36:34 pm

Submitted by:

Sanjana Kumar

मथुरा बरसाने की होली से तो आप वाकिफ होंगे ही, पर देश में ऐसे और भी स्थल हैं जहां होली मनाए जाने की परम्परा अलग है…आइए जानते हैं उन मशहूर स्पॉट्स के नाम और कैसे मनाते हैं यहां होली…

holi_interesting_facts_holi_celebration.jpg


फाल्गुन माह आज से शुरू हो चुका है। इस महीने के प्रमुख त्योहारों में है महाशिवरात्रि तथा होली। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं होली से जुड़े रोचक फैक्ट्स। होली का त्योहार इस बार 7 और 8 मार्च को मनाया जाएगा। होली ऐसा त्योहार है जिसे लोग धूम-धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। देशभर में जगह-जगह इसकी धूम दिखाई देती है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग परम्परा और रीति-रिवाज से होली का पर्व मनाया जाता है। वहीं आपको बता दें देश में कई जगह ऐसी हैं, जहां की होली देश के साथ ही दुनिया भर में मशहूर है। स्थिति यह है कि इन स्थलों पर दुनिया भर से लोग होली खेलने यहां जुटते हैं। मथुरा बरसाने की होली से तो आप वाकिफ होंगे ही, पर देश में ऐसे और भी स्थल हैं जहां होली मनाए जाने की परम्परा अलग है…आइए जानते हैं उन मशहूर स्पॉट्स के नाम और कैसे मनाते हैं यहां होली…

barsana_lathmar_holi.jpg

लठमार होली, मथुरा-वृंदावन
उत्तर प्रदेश में बसी है श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा। यहां की होली दुनिया भर में मशहूर है। यहां लठमार होली मनाए जाने की परम्परा है। होली में मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर और वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का पर्व देखने लायक होता है। लठमार होली की परंपरा के मुताबिक महिलाएं लठ यानी डंडों से लड़कों को खेल-खेल में मारती हैं और उन्हें रंग लगाती हैं।

यह है लठमार होली की दिलचस्प कहानी
दरअसल लठमार होली मनाने की परंपरा यहां आज या कल की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। यहां लठमार होली महिला सशक्तिकरण के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है। इस होली का महत्व श्रीकृष्ण से जुड़ा है। दरअसल माना जाता है कि श्रीकृष्ण महिलाओं की रक्षा के लिए हमेशा उनकी मदद करते थे। लठमार होली के जरिए महिलाएं लाठी डंडों से पुरुषों को मारती हैं। मजे और खेल में निभाई जाने वाली यह परम्परा वास्तव में महिलाओं के आत्मबल का प्रदर्शन है।

barsana_ki_chhadimar_holi.jpg

बरसाना की लड्डू और छड़ीमार होली
बरसाना की होली भी मथुरा की लट्ठमार होली की तरह ही खेली जाती है। बरसाने की होली में महिलाएं प्रतीकात्मक तौर पर पुरुषों को लठ या छड़ी से मारती हैं। वहीं पुरुष ढाल से अपनी रक्षा करते नजर आते हैं। इसके अलावा यहां होली से कुछ दिन पहले लड्डू होली मनाई जाती है। इसमें पंडित भगवान कृष्ण को लड्डू का भोग लगाते हैं और फिर उन्हीं लड्डूओं को भक्तों की ओर फेंकते हैं। इसके बाद अबीर गुलाल और फूलों की होली खेले जाने की परम्परा है।

holi_in_hampi.jpg

हंपी में दो दिन की होली
कर्नाटक में दो दिन तक होली का पर्व मनाया जाता है। इस होली को मनाए जाने का अंदाज भी बड़ा निराला और अनोखा है। हंपी में मनाई जाने वाली इस होली में दूर-दराज से लोग यहां आते हैं और नाचते गाते हुए एक-दूसरे का रंग लगाकर होली मनाते हैं। हंपी की ऐतिहासिक गलियों में ढोल नगाड़ों की थाप के साथ जुलूस निकाले जाते हैं। कई घंटों तक रंग खेलने के बाद लोग तुंगभद्रा नदी और उसकी सहायक नहरों में स्नान करने जाते हैं।

holi_in_keral.jpg

मंजुल कुली और उक्कुली, केरल
केरल की होली भी अपने आप में महत्वपूर्ण मानी जाती है। केरल में रंगों का यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यहां होली को मंजुल कुली या उक्कुली के नाम से पुकारा जाता है।

 

holi_in_assam.jpg

डोल जात्रा, असम
असम में भी होली को अलग नाम और खास तरीके से मनाया जाता है। यहां होली को डोल जात्रा कहा जाता है। असम में भी होली का पर्व दो दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन लोग मिट्टी की बनी झोपड़ी को जलाकर होलिका दहन की परम्परा को निभाते हैं। वहीं दूसरे दिन रंग और पानी से भीग-भीग कर होली का उत्सव मनाया जाता है।

जयपुर में गुलाल गोटों की होली
राजस्थान के जयपुर में गुलाल गोटों से खेली जाने वाली होली काफी मशहूर है। गुलाल गोटों से खेली जाने वाली होली की परम्परा आज से नहीं बल्कि राजा-महाराजाओं के समय से चली आ रही है। वहीं गुलाल गोटों से होली खेलने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं।

गुलाल गोटे क्या हैं
दरअसल गुलाल गोटे लाख से बनाए जाते हैं। लाख को गर्म कर उसमें रंगों का यूज कर अलग-अलग रंगों की लाख तैयार कर, मटके की जैसी शेप देकर उन्हें फुग्गी से फुलाया जाता है और ठंडे पानी में डाल दिया जाता है। ठंडा होने के बाद उन्हें हल्के हाथों से कपड़े से पोछकर सुखा लिया जाता है। फिर इनके अन्दर सूखी गुलाल भर कर इन्हें ऊपर से कवर कर दिया जाता है। वहीं कच्चे-पक्के गीले रंग भी इनमें भरकर इन्हें कवर किया जाता है। फिर खरीदार इन्हें ले जाते हैं और होली के दिन इन्हें एक-दूसरे पर फेंकते हैं। जैसे ही इन्हें किसी पर फेंका जाता है ये उस व्यक्ति पर फूट जाते हैं और उसे रंग से भिगो देते हैं या गुलाल से रंग देते हैं। कहा जाता है कि राजा-महाराजा महारानियों के साथ इन्हीं गुलाल गोटों से होली खेला करते थे। देखने में यह काफी छोटे और खूबसूरत होते हैं, वहीं वजन में एकदम हल्के, जिससे ये किसी को चोट नहीं पहुंचाते।

jaipur_holi_festival.jpg

यहां होते हैं ये आयोजन भी
जयपुर में राजघरानों से होली उत्सव की धूम देखी जाती रही है। होली पर्व से ठीक एक दिन पहले यानी होली दहन वाले दिन यहां स्थित चौगान स्टेडियम में हर साल होली उत्सव का आयोजन किया जाता है। इसमें विदेश से आने वाले लोग भी हिस्सा लेते हैं। हाथियों और घोड़ों पर बैठकर पोलो खेला जाता है और खेल-खेल में गुलाल और रंगों से होली का पर्व मनाया जाता है। लोक गीतों और नृत्यों से सजी झांकी का आयोजन किया जाता है। इस झांकी में सुंदर तरीके से सजाए गए हाथी, घोड़ों और ऊंटों का देखना ही आनंद से भर देता है। इस उत्सव को देखने दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो