इसे भी पढ़ें : VIDEO : पौधरोपण कर शहरवासियों ने लिया संकल्प, बोले पौधों की प्रतिदिन करेंगे देखभाल हर किसी को इस बात का डर रहता है कि कहीं उसके साथ धोखा तो नहीं हो रहा है,लेकिन ज्वेलरी पर हॉलमार्क की मुहर के बाद उसकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है। प्रदेश भर में जहां 80 से अधिक हॉलमार्क सेंटर काम कर रहे हैं वहीं ग्वालियर संभाग में इनकी संख्या सिर्फ एक ही है। वहीं ग्वालियर संभाग के सराफा कारोबारियों की संख्या 2 हजार से अधिक है।
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20 कैरेट को मान्यता मिले
सरकार की ओर से सोने और चांदी के गहनों की हॉल मार्किंग में 14 कैरेट (58 फीसदी),18 कैरेट (75 फीसदी) और 22 कैरेट (91.6 फीसदी) को मान्यता है। कारोबारी चाहते हैं कि 20 कैरेट (83.30 फीसदी) को भी मान्यता दी जानी चाहिए। शहर में हॉल मार्किंग सेंटर पर एक बार जांच कराने के 200 रुपए तक वसूले जा रहे हैं वहीं दूसरी जगहों पर ये जांच 10 से 12 रुपए में हो जाती है।
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हॉल मार्किंग में किसी उत्पाद को तय मापदंडों पर प्रमाणित किया जाता है। भारत में बीआईएस वह संस्था है, जो ग्राहकों को उपलब्ध कराए जा रहे गुणवत्ता स्तर की जांच करती है। यदि सोना-चांदी हॉलमार्क है तो इसका मतलब है कि उसकी शुद्धता प्रमाणित है। लेकिन कई ज्वैलर्स बिना जांच प्रकिया पूरी किए ही हॉलमार्क लगा रहे हैं।
ऐसे में यह देखना जरूरी है कि हॉलमार्क ओरिजनल है या नहीं। असली हॉलमार्क पर भारतीय मानक ब्यूरो का तिकोना निशान होता है। उस पर हॉलमार्किंग सेंटर के लोगो के साथ सोने की शुद्धता भी लिखी होती है। उसी में ज्वैलरी निर्माण का वर्ष और उत्पादक का लोगो भी होता है।
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मप्र सराफा ऐसोसिएशन के हुकुमचंद सोनी ने बताया कि प्रदेश भर में करीब 80 हॉलमार्किंग सेंटर काम कर रहे हैं। इनके सेंटर बढाए जाना जरूरी है क्योंकि आने वाले समय में सरकार सभी को लाइसेंस लेना अनिवार्य करने वाली है। ग्वालियर संभाग में अभी केवल दो ही सेंटर हैं। हॉलमार्किंग कराने से विश्वसनीयता बढ़ती है।